भ्रष्टाचार पर प्रहार: ध्वस्त हुए बिल्डर और अथॉरिटी की मिलीभगत से बने “करप्शन के टावर”, पर क्या खत्म होगी “करप्शन की पावर”?
भ्रष्टाचार को शिष्टाचार मानने वालों को ट्विन टावर के विध्वंस से सबक लेना चाहिए. पैसे, पावर और पॉलिटिक्स के बलबूते आप सच्चाई को हरा नहीं सकते हैं.
भ्रष्टाचार देश को दीमक की तरह अंदर ही अंदर खोखला कर रहा है लेकिन अब सरकार के अलावा आम लोगों को, अधिकारियों को, नेताओं को भ्रष्टाचार पर प्रहार करते रहना चाहिए तभी इस करप्शन के इस दीमक का अंत होगा.
सुपरटेक बिल्डर और नोएडा अथॉरिटी की मिलीभगत से बने “करप्शन के टावर” तो ध्वस्त हो गए, पर क्या खत्म होगी “करप्शन की पावर”?
आइए आपको बताते हैं सुपरटेक बिल्डर और नोएडा अथॉरिटी की मिलीभगत से बने “करप्शन के टावर” कैसे बने, कौन है सुपरटेक कंपनी का मालिक, हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट कैसे पहुंचा मामला और क्या टावर गिराना ही एक मात्र विकल्प था
क्या है ट्विन टावर बनने की कहानी?
ये कहानी 23 नंवबर 2004 से शुरू होती है, जब नोएडा अथॉरिटी ने सेक्टर-93ए स्थित प्लॉट नंबर-4 में ग्राउंड फ्लोर समेत 9 मंजिल के 14 टावर बनाने की अनुमति दी थी, इसके 2 साल बाद ही 29 दिसंबर 2006 को 9 की जगह 11 मंजिल तक फ्लैट बनाने की अनुमति दे दी गई। इसके साथ ही टावरों की संख्या भी बढ़ाकर 16 कर दी गई।
26 नवंबर 2009 को नोएडा अथॉरिटी ने फिर से 17 टावर बनाने का नक्शा पास कर दिया। इसके बाद भी ये अनुमति लगातार बढ़ती गई.
2 मार्च, 2012 को टावर नंबर 16 और 17 के लिए फिर से संशोधन किया गया। इन दोनों टावरों को 40 मंजिल तक करने की अनुमति दी गई। इनकी ऊंचाई 121 मीटर तय कर दी गई। वहीं दोनों टावरों के बीच की दूरी भी नौ मीटर रखी गई, जबकि यह 16 मीटर से कम नहीं होनी चाहिए।
अब सवाल है कि साल दर साल नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों ने बिल्डर को ये अनुमति क्यों दी तो जवाब है कि पैसे के बदले दी.
2 मार्च 2012 को दोनों टावर की ऊंचाई 40 मंजिल और 121 मीटर की ऊंचाई निर्धारित कर दी गई। नेशनल बिल्डिंग कोड के नियम मुताबिक दोनों टावरों के बीच में 16 मीटर की दूरी होनी चाहिए, लेकिन यह दूरी नौ मीटर से भी कम रखी गई। दोनों टावरों को लेकर करीब 13 वर्ष पहले आसपास के टावरों में रहने वाले लोगों ने विरोध शुरू कर दिया था।
कौन हैं सुपरटेक के मालिक?
सुपरटेक कंपनी को 7 दिसंबर, 1995 में आरके अरोड़ा द्वारा बनाया गया था, उनकी 35 और कंपनियां भी हैं। 1999 में आरके अरोड़ा की पत्नी संगीता अरोड़ा ने दूसरी कंपनी सुपरटेक बिल्डर्स एंड प्रमोटर्स प्राइवेट लिमिटेड नाम से कंपनी शुरू की।
सुपरटेक ने अब तक नोएडा, ग्रेटर नोएडा, मेरठ, दिल्ली-एनसीआर समेत देशभर के 12 शहरों में रियल स्टेट प्रोजेक्ट लांच किए हैं। नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने इसी साल कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया। कंपनी पर अभी करीब 400 करोड़ का कर्ज बकाया है।
कोर्ट कब पहुंचा मामला?
फ्लैट बायर्स ने 2009 में आरडब्ल्यू बनाया। इसी आरडब्ल्यू ने सुपरटेक के खिलाफ कानूनी लड़ाई की शुरुआत की। ट्विन टावर के अवैध निर्माण को लेकर आरडब्ल्यू ने पहले नोएडा अथॉरिटी मे गुहार लगाई। अथॉरिटी में कोई सुनवाई नहीं होने पर आरडब्ल्यू इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा। 2014 में हाईकोर्ट ने ट्विन टावर तोड़ने का आदेश जारी किया।
“करप्शन के टावर” को गिराने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लंबी लड़ाई लड़ी गई. सुपरटेक बिल्डर की तरफ से नामी वकील इस केस को लड़े लेकिन वह ध्वस्त होने से नहीं बचा सके.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुपरटेक सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट में सात साल चली लड़ाई के बाद 31 अगस्त 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को बरकार रखा। सुप्रीम कोर्ट ने तीन महीने के अंदर ट्विन टावर को गिराने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में नोएडा अथॉरिटी के सीनियर अधिकारियों पर सख्त टिप्पणी की थी. मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कह दिया था कि नोएडा अथॉरिटी एक भ्रष्ट निकाय है. इसकी आंख, नाक, कान और यहां तक कि चेहरे तक भ्रष्टाचार टपकता है.
योगी सरकार ने भी कराई जांच, 26 अधिकारियों पर गिरी गाज
नियमों को ताक पर रखकर बनाई गई इस गगनचुंबी इमारत के निर्माण में नोएडा विकास प्राधिकरण के कर्मचारियों और बिल्डर की मिलीभगत की बात साबित हुई है। मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने डेढ़ दशक पुराने इस मामले की गहन जांच कराई। सितंबर 2021 में सीएम योगी के आदेश पर 4 सदस्यों की समिति गठित की गई।
जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर प्रकरण में संलिप्त 26 अधिकारियों/कर्मचारियों और सुपरटैक लिमिटेड के निदेशक के खिलाफ कार्रवाई की गई है।
ध्वस्त होने पर बिल्डर क्या बोले?
ट्विन टावर गिराए जाने से कुछ समय पहले सुपरटेक बिल्डर्स ने बयान देकर कहा कि नोएडा अथारिटी को पूरा भुगतान किया गया फिर भी सुप्रीम ने तकनीकी आधार पर इस निर्माण को सही नहीं पाया और दोनों टावरों को गिराने का आदेश दिया तो हम माननीय कोर्ट का सम्मान करते हैं.
सुपरटेक बिल्डर्स दिवालिया हुए घोषित
एनसीएलटी ने इसी साल यूनियन बैंक आफ इंडिया की एक अर्जी पर सुनवाई करते हुए सुपरटेक को दिवालिया घोषित कर दिया था। यूनियन बैंक ने सुपरटेक पर 432 करोड़ रुपये का बकाया न चुकाने का आरोप लगाया था।
अब करप्शन के टावर तो ध्वस्त हो गए, टावर गिराने के बाद मलबा निकालने में 3 महीने का समय लगेगा लेकिन करप्शन का पावर खत्म होने में कितना समय लगेगा, ये बड़ा सवाल है?