पीएम मोदी के जन्मदिन पर जानिए: संन्यास के सफर से सत्ता के शिखर तक कैसे पहुंचे?
अरुणेश कुमार
गरीबी में बीता बचपन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बचपन गरीबी में बीता. उनका जन्म 17 सिंतबर 1950 को गुजरात के वडनगर में एक बेहद गरीब परिवार में हुआ था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां का नाम हीराबेन और पिता का नाम दामोदरदास मूलचंद मोदी था.
उनके पिता की चाय की दुकान थी. बालक नरेंद्र गुजरात के महेसाणा रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने में अपने पिता की मदद करते थे. पीएम मोदी ने एक इंटरव्यु में बताया था कि 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान उन्होंने स्टेशन से गुजरने वाले जवानों को चाय पिलाई थी. स्थानीय सरकारी स्कूल में उन्होंने प्राइमरी एजुकेशन ली.
भाया नहीं गृहस्थ जीवन….संन्यासी हुआ मन
नरेंद्र मोदी जब 18 साल के हुए तो उनके पिता ने उनकी शादी करा दी पर उनका मन गृहस्थ जीवन में नहीं लगा. वे संन्यास की दिशा में मुड़ गए. उन्होंने अपना परिवार, घर-बार, सब छोड़ दिया और संन्यास के रास्ते पर चल पड़े.
अध्यात्म के ज्ञान के लिए वे स्वामी विवेकानंद के वेलूर मठ, असम में सिलिगुड़ी और गुवाहाटी, अल्मोड़ा के अद्वैत आश्रम और राजकोट के रामकृष्ण मिशन में उन्होंने अपना लंबा वक्त बिताया. वे भारत भ्रमण करते रहे. देश के अलग अलग हिस्सों में घूमते रहे.
किस्मत में नहीं था संन्यास
शायद नरेंद्र मोदी के किस्मत में संन्यासी बनना नहीं लिखा था तभी तो परिस्थितियां ऐसी बनी कि वे गुजरात वापस लौट आए. वे संघ से 1967 में जुड़े और संघ के प्रचारक बने.
वे 1967 से लेकर 1971 संघ के स्वयं सेवक के तौर पर काम करते रहे. साल 1971 में हुए दिल्ली में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में जनसंघ के सत्याग्रह में भी वे शामिल हुए थे. इसके बाद उनकी देश, समाज, सरकार, संस्कृति और सभ्यता के प्रति समझ विकसित होती गई.
जेल भी जाना पड़ा
इंदिरा गांधी ने 1975 में देश में इमरजेंसी लगाई तो नरेंद्र मोदी राजनीतिक तौर पर बेहद सक्रिय हो गए थे. वे लगातार इमरजेंसी के खिलाफ बोलते रहे, लिखते रहे और सरकार से छिपते भी रहे.
वे इस दौरान कभी संन्यासी बनते तो कभी कभी सिख, कांग्रेस सरकार के खिलाफ वे जनता तक अपनी बात पहुंचाते रहे. मोदी को राजनीतिक कैदी के तौर पर तिहाड़ जेल में भी कुछ दिन बिताने पड़े थे. इमरजेंसी ने पीएम मोदी के राजनैतिक जीवन को एक नई दिशा दी.
बीजेपी का गठन, मोदी का प्रदर्शन
भारतीय जनसंघ भारतीय जनता पार्टी यानि बीजेपी के रुप में सन 1980 में आया. संघ में मोदी के शानदार कार्य को देखते हुए उन्हें बीजेपी में काम करने भेजा गया.
साल 1987 में मोदी के नेतृत्व में अहमदाबाद नगर निगम चुनाव में बीजेपी को शानदार सफलता मिली इसके बाद बीजेपी में नरेंद्र मोदी का महत्व बढ़ता गया वे इसी साल गुजरात बीजेपी के संगठन सचिव बनाए गए.
लाल कृष्ण आडवाणी का हाथ, मोदी के साथ..!!
साल 1990 में जब बीजेपी के बड़े नेता लाल कृष्ण आडवाणी जी रथ यात्रा निकालने की प्लानिंग कर रहे थे तो उसकी कमान नरेंद्र मोदी ने ही संभाली. आडवाणी जी के नेतृत्व में मोदी राजनीति, सत्ता और संघर्ष को समझते चले गए.
1995 के चुनाव में मोदी ने अहम भूमिका निभाई, बीजेपी को चुनावों में जीत मिली तो नरेंद्र मोदी का भी प्रमोशन हुआ. अब उन्हें बीजेपी का राष्ट्रीय सचिव बनाया गया.
इसके बाद साल 1998 के चुनावों में बीजेपी की जीत के पीछे भी नरेंद्र मोदी की रणनीति काम कर गई इससे उनका पार्टी में कद बढ़ता चला गया.
फिर साल 2001 आया जब पहली बार नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रुप में शपथ ली और 2014 तक लगातार उन्होंने गुजरात की सत्ता संभाली.
गुजरात दंगों के दौरान अटल बिहारी बाजपेई ने मोदी को राजधर्म निभाने की सीख दी थी. वे दंगों के बहुत दुखी थे और मोदी को सीएम पद से हटाना चाहते थे लेकिन लाल कृष्ण आडवाणी का हाथ मोदी के साथ रहा. आडवाणी जी के आशीर्वाद से वे मुख्यमंत्री बने रहे.
दामन में लगा गोधरा दंगों का दाग..!!
नरेंद्र मोदी के दामन में कोई भी भ्रष्टाचार का दाग तो नहीं लगा लेकिन साल 2001 में हुए गोधरा दंगों का दाग जरूर लगा.
विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाया कि तत्कालीन मोदी सरकार गुजरात दंगों को रोक पाने में नाकाम रही, यहां तक कि मोदी सरकार ने दंगों को प्रायोजित किया. बाद में आयोग बने, जांच हुई, मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें इस मामले में निर्दोष करार दिया.
दिल्ली में सत्ता के शिखर तक पहुंचे मोदी
पहली बार वे सीएम से पीएम बनने जा रहे थे, बीजेपी की तरफ से पीएम पद के लिए उनके नाम का सिलेक्शन काफी माथा-पच्ची के बाद हुआ. ये फैसला बीजेपी के लिए वरदान साबित हुआ क्योंकि साल 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला. इसके बाद हुए 2019 के चुनाव में भी मोदी मैजिक खूब चला.
इस तरह से पहली बार देश में गैर-कांग्रेसी पार्टी की केंद्र में सरकार दो बार लगातर बनी. अब तो किसी भी राज्य में चुनाव हों, मोदी के चेहरे पर ही बीजेपी चुनाव में उतरती है और जीत हासिल करती है.
लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनावों तक बीजेपी मोदी फैक्टर से ही चुनाव जीत रही है. यूपी से लेकर गोवा तक बीजेपी अजेय बनी हुई है.
मोदी का 2024 में भी चलेगा मैजिक?
2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में मोदी मैजिक खूब चला, विपक्ष की सारी राजनीति धरी की धरी रह गई. मोदी फैक्टर के आगे विपक्ष के सारे फैक्टर फेल हो गए.
बीजेपी के कभी साथी रहे नीतिश कुमार अब विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि बीजेपी को 2024 के लोकसभा चुनावों हराया जा सके. ऐसे में अब मोदी का जादू 2024 में भी चलेगा या नहीं? ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा.