महिला सशक्तीकरण: सुप्रीम कोर्ट ने मैरिड और अनमैरिड महिलाओं को दिया ‘ये’ बड़ा अधिकार…लिव-इन और मैरिटल रेप पर व्यक्त किए ‘ये’ विचार..!!
ऐश्वर्या जौहरी
नई दिल्ली. देश में महिला सशक्तीकरण की दिशा में सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि महिला अविवाहित है, सिर्फ इसकी वजह से उसे अबॉर्शन कराने के अधिकार नहीं रोका जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने की MTP ऐक्ट की व्याख्या
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने कहा कि अनमैरिड महिलाओं को एबार्शन से रोकना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हर महिला को कानूनी रुप से गर्भपात का हक है, चाहे उसकी वैवाहिक स्थिति कुछ भी हो। कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशनल ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) ऐक्ट की व्याख्या करते हुए ये बात कही।
MTP ऐक्ट के अनुसार, रजामंदी से बने संबंधों से ठहरे गर्भ को केवल 20 हफ्तों तक ही गिराया जा सकता है।
इस कानून के मुताबिक केवल बलात्कार पीड़िताओं, नाबालिगों, महिलाएं जिनकी वैवाहिक स्थिति गर्भावस्था के दौरान बदल गई हो और मानसिक रूप से बीमार महिलाओं को ही 24 हफ्ते यानि 6 महीने तक का गर्भ गिराने की अनुमति है।
दरअसल मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में साल 2021 में संशोधन किया गया था, जिसमें ‘पत्नी’ की जगह ‘पार्टनर’ शब्द का प्रयोग किया गया था.
MTP कानून में किया बदलाव
अब कोर्ट ने इस कानून में बदलाव करते हुए विवाहित और अविवाहित महिलाओं को कानूनी रूप से यह अधिकार दिया है कि वे 24 हफ्ते तक लीगल रुप से अबार्शन कराने की अनुमति दे दी हैं।
कोर्ट ने मैरिटल रेप और लिव-इन के बारे में क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने मैरिटल रेप के बारे में कहा कि यदि जबरन संबंध बनाने से कोई महिला प्रिगनेंट होती है तो उसे भी अबार्शन कराने का अधिकार है. इसके साथ ही लिव-इन में रहने वाले अनमैरि़ड लड़की को भी 24 सप्ताह तक गर्भपात करने का अधिकार है।
कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि लिव इन रिलेशनशिप से बाहर गर्भधारण करने वाली अविवाहित महिलाओं को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नैंसी से बाहर रखना असंवैधानिक है।