20 करोड़ लोग हैं गरीबी रेखा से नीचे, गरीबी ‘दानव’ जैसी चुनौती, जानिए सरकार के किस सहयोगी संगठन ने जताई चिंता?
पीटीआई.
एक तरफ देश में 5G तकनीकि से तरक्की आने के दावे किए जा रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ देश में गरीबों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. इस बार सरकार के सबसे बड़े सहयोगी संगठन संघ ने गरीबी और बेरोजगारी पर चिंता व्यक्त किया.
‘गरीबी…दानव जैसी चुनौती’
सरकार के सबसे बड़े सहयोगी आरएसएस यानि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने गरीबी और बेरोजगारी पर गंभीर चिंता व्यक्त किया है.
स्वदेशी जागरण मंच के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि आर्थिक असमानता और बेरोजगारी विकास के रास्ते पर सबसे बड़े रोड़े हैं। उन्होंने कहा कि गरीबी ‘हमारे सामने दानव जैसी चुनौती’ के रूप में सामने आ रही है।
होसबाले ने यह भी कहा कि सरकार इस चुनौती से निपटने के लिए लगातार प्रयास कर रही है लेकिन कुछ और ठोस किए जाने की आवश्यकता है।
संघ के स्वदेशी जागरण मंच के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि इतनी सारी विकास योजनाओं के बाद भी 20 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं, वहीं 23 करोड़ लोगों की प्रतिदिन की आय 375 रुपये से भी कम है।
गरीबी हमारे सामने एक दानव जैसी चुनौती है। हम सबको मिलकर इस दानव को खत्म करना होगा. उन्होंने कहा कि पिछली सरकारों ने सिर्फ ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया है, केवल नारा देने भर से गरीबी नहीं हटती. खराब अर्थव्यवस्था के लिए पिछली सरकारें जिम्मेदार हैं।
बेरोजगारी पड़ रही है भारी
संघ के महासचिव ने ये भी कहा कि देश में 4 करोड़ लोग बेरोजगार हैं। ये बेरोजगारी देश के विकास के लिए भारी पड़ रही है.
ग्रामीण क्षेत्रों में 2.2 करोड़ और शहरी क्षेत्रों में 1.8 करोड़ बेरोजगार हैं। श्रम विभाग की एक सर्वे रिपोर्ट बेरोजगारी दर 7.6 प्रतिशत बताई गई है।
‘स्वावलंबी भारत अभियान’
उन्होंने कहा कि गरीबी दूर करने के लिए स्वदेशी जागण मंच ने ‘स्वावलंबी भारत अभियान’ शुरू किया है। इस अभियान से गांव के लोगों को कौशल विकास की ट्रेनिंग दी जाएगी. लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वरोजगार को बढ़ावा देना चाहिए.
कैसे दूर होगी गरीबी?
स्किल इंडिया जैसी कई सरकार की योजनाएं हैं लेकिन अगर ये योजनाएं कागजों तक सीमित नहीं रहे, हकीकत की धरातल पर उतरें तो गरीबी दूर हो सकती है.
देश में 2011 से सरकार ने गरीबी से संबंधित ऑफिशियल डॉटा जारी नहीं किए हैं. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक सरकारों को गरीबी दूर करने के लिए प्रॉपर रिसर्च करके डॉटा हर साल निकालना चाहिए, फिर उसी के अनुरूप योजनाएं बनानी चाहिए
सबसे ज्यादा गरीबी असंगठित क्षेत्र है, इसलिए सरकारों को इस क्षेत्र की ओर सबसे ज्यादा ध्यान देना चाहिए.
केंद्र और राज्य सरकारों को हर विभाग में खाली पड़ी जगहों को तुरंत भरना चाहिए
क्या है ‘यूनिवर्सल बेसिक इनकम’ स्कीम?
सरकार को ‘यूनिवर्सल बेसिक इनकम’ पर भी विचार करना चाहिए. पहली बार इसका सुझाव लंदन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर गाय स्टैंडिंग ने दिया था।
‘यूनिवर्सल बेसिक इनकम’ स्कीम के तहत सरकार देश के हर नागरिक को एक निश्चित रकम देती है। इसका मतलब ये हुआ कि अगर यह योजना लागू होती है तो सरकार देश के हर गरीब नागरिक को एक निश्चित रकम एक निश्चित समय अंतराल पर देगी।
इकोनॉमी एक्सपर्ट्स के अनुसार भारत में ‘यूनिवर्सल बेसिक इनकम’ स्कीम को लागू करने पर जीडीपी का 3 से 4 फीसदी खर्च आएगा, जबकि सरकार अभी कुल जीडीपी का 4 से 5 फीसदी 950 योजनाओं में सब्सिडी के जरिए खर्च कर रही है।
इतनी बड़ी राशि सब्सिडी में खर्च होने के बावजूद, देश में 20 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे ज़िन्दगी जी रहे हैं तो क्या सब्सिडी की जगह ‘यूनिवर्सल बेसिक इनकम’ स्कीम लागू करना सही होगा
इस बारे में अर्थशास्त्रियों की राय अलग-अलग। कुछ का कहना है कि सामाजिक सुरक्षा के रूप में इससे गरीबी दूर होगी तो वहीं कुछ का मानना है कि इससे लोगों में काम करने का उत्साह कम होगा।