साहित्यनामा
जज्बात पर अलिखित अनुबंध: वर्तमान दौर की हक़ीक़त को बयां करती एक कविता…!!
जज्बात को किस तरह से इस कविता में व्यक्त किया गया है, आइए जानते हैं
सुशील कुसुमाकर
अलिखित अनुबंध
उन्होंने चेहरे पर मुस्कान लिए
तुम्हें थोड़ा सिर नवाने का इशारा किया,
तो तुमने अपनी रीढ़ ही गायब कर दी।
उन्होंने मंद मंद मुस्कुराते हुए
तुम्हें थोड़ा झुकने का इशारा किया,
तो तुम दंडवत ही हो गए।
उन्होंने हल्की हंसी हंसते हुए
तुम्हें दंडवत होने का इशारा किया,
तो तुम उनके आगे रेंगने ही लगे।
खैर, अब हर बात पर तुम्हें शाबाशी देते
वे तुम्हारी पीठ थपथपाने लगे
और तुम पढ़ने लगे उनके कसीदे…!
लेकिन, असल में बात ये कि
हर तरह से इस्तेमाल करना चाहते हो
तुम दोनों एक दूसरे को…!!
मैं नहीं चाहता
मैं कहूंगा
नहीं कभी
तुमसे
इश्क करता हूं…!
मैं कभी
बोलूंगा भी नहीं
तुम्हें
अधूरा हूं
तुम्हारे
ना होने से…!!
मैं शिकायत भी
नहीं करूंगा कभी
तुमने ऐसा
क्यों किया…?
मैं नहीं चाहता
तुम
उम्र भर
खुद में
महसूस करो
शर्मिंदगी
किए पर
अपने…!