देश की पहली फेमनिस्ट सावित्री बाई फुले ने ऐसे कमाया नाम…महिला शिक्षा और समानता के बारे में किए ये महान काम
प्रबीन उपाध्याय
महात्मा ज्योतिराव को महाराष्ट्र और भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन में एक सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में माना जाता है। उनको महिलाओं और दलित जातियों को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है। ज्योतिराव, जो बाद में ज्योतिबा के नाम से जाने गए सावित्रीबाई के संरक्षक, गुरु और समर्थक थे।
सावित्रीबाई फुले एक समाज सुधारिका एवं मराठी कवियत्री थीं, उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता था। उन्होंने समाज में अपना विशेष योगदान दिया है जैसे विधवा विवाह करवाना, छुआछात मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना।
जन्म और परिवार
यदि तुम परिवर्तन की राह पर चलते हो तो, तुम्हारे विरोध की शुरुआत सबसे पहले तुम्हारे घर परिवार से ही होगी।”
~ सावित्रीबाई फुले
सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी, 1831 को हुआ था। इनके पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था। वे एक ऐसे घर में जन्मी थी, जहां पिता लड़की के किताब उठाने के खिलाफ थे।
इस बात की पुष्टि सावित्री के जीवन में घटी उस घटना से होती है, जब एक बार वे बचपन में अपने घर में अंग्रेजी किताब के पन्ने यूं ही पलट रहीं थी, और इतनी सी बात पर उनके पिता ने उनको बहुत फटकार लगाई।
सावित्रीबाई का विवाह 1840 में ज्योतिबा फुले से हुआ था। जो एक भारतीय समाजसुधारक, समाज प्रबोधक, विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे।
विद्यालय की स्थापना:
“अज्ञानता मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है, इसीलिए ज्ञान से अज्ञानता को खत्म करो।”
~ सावित्रीबाई फुले
एक महिला प्रिंसिपल के लिये सन् 1848 में बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल रहा होगा, इसकी कल्पना शायद आज भी नहीं की जा सकती। लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबंदी थी। सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया।
सावित्रीबाई फुले ने पुणे में सन्1848 में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ उन्होंने एक विद्यालय की स्थापना की। एक वर्ष में सावित्रीबाई और महात्मा फुले पाँच नये विद्यालय खोलने में सफल हुए।
सामाजिक मुश्किलें:
“ज्ञान के बिना सब खो जाता है, ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते हैं इसलिए खाली ना बैठो जाओ जाकर शिक्षा लो।”
~ सावित्रीबाई फुले
क्रांति के दौरान मुश्किलें भी साथ आती हैं। सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। हर बिरादरी और धर्म के लिये उन्होंने काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फैंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं।
‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना:
“स्त्रियों को न देवी मानने की जरूरत है और न पूजने की, बल्कि स्त्री का सम्मान करना और बराबरी का अधिकार देना जरूरी है।”
~ सावित्रीबाई फुले
सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले ने 24 सितंबर, 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की। उन्होंने विधवा विवाह की परंपरा भी शुरू की और इस संस्था के द्वारा पहला विधवा पुनर्विवाह 25 दिसम्बर, 1873 को कराया गया।
28 नवंबर, 1890 को बीमारी के चलते ज्योतिबा की मृत्यु हो गई थी। ज्योतिबा के निधन के बाद सत्यशोधक समाज की जिम्मेदारी सावित्रीबाई फुले पर आ गई। उन्होंने जिम्मेदारी से इसका संचालन किया।
सावित्रीबाई ने 19वीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह जैसी कुरीतियों के विरुद्ध अपने पति के साथ मिलकर काम किया।
एक बार उन्होंने आत्महत्या करने जाती हुई एक विधवा ब्राह्मण महिला काशीबाई की अपने घर में डिलीवरी करवा कर उसके बच्चे यशंवत को अपने दत्तक पुत्र के रूप में गोद लिया। दत्तक पुत्र यशवंत राव को पाल-पोसकर उन्होंने उसे डॉक्टर बनाया।
आधुनिक मराठी काव्य की नायिका:
“मेरी कविता को पढ़-सुनकर यदि थोड़ा भी ज्ञान हो जाए प्राप्त। मैं समझूंगी मेरी परिश्रम सार्थक हो गया। मुझे बताओ सत्य निडर होकर की कैसी है मेरी कविताएं ज्ञान परख यथार्थ मनभावन या अद्भुत तुम ही बताओ।”
~ सावित्रीबाई फुले
सावित्रीबाई एक निपुण कवियित्री भी थी। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य की नायिका भी माना जाता है। वे अपनी कविताओं और लेखों में हमेशा सामाजिक चेतना की बात करती थी।
सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला शिक्षिका होने के साथ-साथ अपना पूरा जीवन समाज के वंचित तबके खासकर स्त्री और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष में देने के लिए हमेशा याद की जाएंगी।
प्लेग महामारी में सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थी। एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण इनको भी छूत लग गयी और 10 मार्च, 1897 को प्लेग के कारण सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया