दिल की कलम से…जज़्बात के रंग से….लिखी गई है रचना….जरा ध्यान से पढ़ना…!!
मेरा सुकून , तुम्हारी आंखें ! मेरा जुनून , तुम्हारी सांसें ! मेरी बेचैनी, जो तुमको न देखूं ! मेरी शांति, छन भर तुम्हारा दीदार !
रश्मि शंकर
1.
मेरे अश्क, मेरे गम , सब ढह गए
सलोने से वो सपने , सब लह गए
बाकी न रहा मुझमें मेरा कुछ भी
बस मुझमें तुम ज़रा से रह गए
2.
अंधरों में दिया बन जायेगी, मगर
रौशनी शायद नहीं बन पायेगी !
दर्द में तुम संग थोड़ा चल भी दे, मगर
दुख सारे तुम्हारे हर नहीं पायेगी !
देखो, ये इश्क मोहब्बत सब अपनी जगह है …
वो घर की बड़ी बिटिया है
चाहकर भी , मोहब्बत में मीरा नहीं बन पायेगी
3.
जब रास्ते का कांटा हमको चुभा , तो सब हंस दिए
ये गहरा ज़ख्म दिखा तो सबको , मगर …
न किसी की हमदर्दी मिली न , तबियत पूछे !
अपनी मोहब्बत में हम हारे , तो कोई न समझा
जब अपनी अपनी , सब हारे तो सब समझे!
4.
उन यादों के सहारे जीना शुरू कर दिया है
उन लम्हों के सहारे पिघलना शुरू कर दिया है
बेशक अनजान हैं रास्ते मगर
बेबाक, बेखौफ चलना शुरू कर दिया है
और सुन , तू चिंता मत कर
तेरे दिए हुए जख्मों को ज़हर बना लिया है
धीरे धीरे पीना शुरू कर दिया है
5.
मोहब्बत जब शहरों में नीलाम होंगी
राहें, रेहगुजरों सी बईमान होंगी
कदर, इस कदर तुम्हारी बेहिसाब होंगी
जुमलों कि बाजियां भी नाशाज़ होंगी
ये नज़र, ये अश्क अब घायल न होंगी
ये दर्द ये तड़प अब ज़ायर न होंगी
इस कदर में तुमसे मेरा इंतकाम लूंगी
इबादत तो दूंगी मगर इमान लूंगी
महफ़िल में बेशक तुम्हे बदनाम करूंगी
मगर सुनो, तुम बेफिक्र रहना
लोग कसम देकर भी पूछेंगे न
मेरी शायरी का राज़
तो भी मैं तुम्हारा नाम न लूंगी
तो भी मैं तुम्हारा नाम न लूंगी
6.
पीले रंग के कपड़े शायद जंचते नहीं मुझको
जिस दिन लाल पहनती हूं एक टक नहीं आता है वो
घर आकर आईने में सवार थी हूं खुद को…. ढढूंढती हूं..
ऐसी कौन सी चीज है, मुझ में
जिसे इतनी शिद्दत से सवारता है वो
7.
किसी की मौत पर गम मानना
छोड़ दिया हमने
काटों से बगावत कर , फूलों को अपनाना
छोड़ दिया हमने
और अब न गैरों से शिकायत है
ना अपनो से नाराजगी
कि हर शक्श को दिल से लगाना
छोड़ दिया हमने
8.
उन्होंने पूछा , क्यों है मुझसे इतनी मोहब्बत ??
मैंने जवाब दिया , सबकुछ तो तुमसे ही है
उन्होंने कहा संछिप्त में समझाओ
जवाब सुनिएगा !!
स्पष्ट अगर समझाऊं तो
मेरी खुशी, तुम्हारी मुस्कुराहट !
मेरी मुस्कान , तुम्हारी एक आहट !
मेरा सुकून , तुम्हारी आखें !
मेरा जुनून , तुम्हारे सासें !
मेरी बेचैनी, जो तुमको न देखूं !
मेरी शांति , छन भर तुम्हारा दीदार !
मेरी आशा , तुम्हारी राह देखना !
मेरी निराशा , तुम्हारी आह सुनना !
मेरी नाकामी , तुम्हारे आखों का अश्क !
मेरी कामयाबी , तुम्हारे होठों की मुस्कान !
मेरी चालाकी, तुम्हारे गाल का वो तिल !
मेरी मेरी गुस्ताखी, तुम्हारे शर्ट का वो बटन !
मेरा वजूद, मेरे नाम के आख़िर में तुम
मेरा समर्पण, तुम्हारे अतिरिक्त न कोई नर
मुझमें तुम हो मुझ संग तुम हो , मेरा सबकुछ तुमसे है !
शर्म नहीं आती ,फिर भी पूछते हो, कितनी मोहब्बत तुमसे है !