देशविचार/विश्लेषण

24 हफ्ते के गर्भ को गिराना सही या ग़लत, जानिए सरकार ने किन शर्तों के साथ दी छूट?

प्रियात्मा रानी रॉय

कहते हैं कि एक महिला का मां बनना, उसके लिए सबसे बड़ा सौभाग्य होता है लेकिन कई बार ऐसे हालात होते हैं कि उसको गर्भपात कराना पड़ता है. हाल ही में अमेरिका में गर्भपात से संबधित क़ानूनों की बड़ी चर्चा हो रही थी, अब भारत में भी सरकार ने गर्भपात की ऊपरी सीमा 20 से बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दी है.  इससे संबधित नए नियम अधिसूचित कर दिए गए हैं। सरकार के इस फैसले को कुछ लोग सही, तो कुछ लोग ग़लत बता रहे हैं, आइए जानते हैं सरकार ने किन शर्तों के साथ 6 महीने के गर्भ को गिराने की अनुमति दी है?

मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी (संशोधन) नियम 2021 के अनुसार, यौन उत्पीड़न या दुष्कर्म की शिकार महिलाओं, नाबालिगों और मानसिक रूप से बीमार महिलाओं को  शामिल किया गया है। डॉक्टरों के मुताबिक इस तरह के मामलों में महिलाओं के लिए बहुत रिस्क होता है, अगर अगर बच्चा पैदा भी होता है तो वह शारीरिक या मानसिक रुप में पीड़ित हो सकता है.

इससे पहले गर्भाधान के 12 सप्ताह के भीतर गर्भपात कराने के लिए एक डाक्टर और 12 से 20 सप्ताह के भीतर गर्भपात के लिए दो डाक्टरों की सिफारिश ज़रूरी होती थी।

किन-किन शर्तों के साथ नए नियम होंगे लागू
  • सरकार के अनुसार महिला इन कारणों के लिए गर्भ की सफाई करवा है
  • अगर होनेवाले बच्चे को मानसिक या शारीरिक रूप से खतरा हो
  • अगर होनेवाली मां को मानसिक रूप से खतरा हो
  • अगर किसी महिला या नाबालिक लड़की को बालात्कार के कारण गर्भ ठहरता हो
6 महीने के गर्भ को गिराने से ख़तरा
अगर गर्भ निरोधक गोलियों के सेवन करने के बावजूद भी शादी शुदा महिला के गर्भ ठहर गया हो तब वो गर्भ की सफाई करवा सकती है. डॉक्टरों के मुताबिक 6 महीने में भ्रूण काफी हद तक विकसित हो जाता है ऐसे में उसका गर्भपात कराने से महिला की जान को खतरा हो सकता है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक असुरक्षित गर्भपात के कारण आठ प्रतिशत महिलाओं की मृत्यु होती है. कई बार बालात्कार पीड़िताओं और बीमार महिलाओं या नाबालिग लड़कियों को गर्भधारण करने का पता नहीं चलता और वो असुरक्षित ढंग से गर्भपात करा लेती हैं. इसका भी उनके हेल्थ पर असर पड़ता है. कई बार तो शरीर पर इसका इतना बुरा असर पड़ता है कि दोबारा से मां बनने की संभावनाएं खत्म हो जाती हैं.
सरकार और कोर्ट तक पहुंचा मामला
सरकार ने इस मामले में परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के नेतृत्व में एक मंत्री समूह का गठन भी किया था. इसमें कहा गया कि विशेष परिस्थितिओं में 2 विशेषज्ञ डॉक्टरों की सलाह पर 24 हफ्तों तक गर्भपात कराने की अनुमति दी जा सकती है.
इस मामले की शुरुआत मुम्बई हाईकोर्ट से हुई थी. जब तीन महिलाओं याचिका दायर कर 20 हफ्तों के बाद भी गर्भपात कराने की अनुमति देने की मांग की थी. इन महिलाओं का मामला सुनने के और डाक्टरों की राय जानने के बाद कोर्ट ने उन्हें अनुमति दे दी थी.
न्यायाधीश एएस ओका और एम एस सोनक की डिविजन बेंच ने आदेश दिया था कि एक पंजीकृत चिकित्सक बिना हाईकोर्ट के इजाजत के 20  हफ्तों से ज्यादा गर्भधारण में गर्भपात कर सकता है अगर महिला की जान के कोई खतरा न हो तो नहीं तो 20 हफ्तों से अधिक गर्भपात करने एवं कराने की कोई अनुमति नहीं दी गई है.
कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि यह बहुत संवेदनशील मसला है. इसमें सही या गलत किसी एक चुनना बहुत मुश्किल है लेकिन नए नियमों का सख्ती से पालन कराना सुनिश्चित करना होगा क्योंकि कई बार कोई ख़ास वजह न होने के बाद भी महिला पर गर्भपात का दबाव डाला जाता है जो पूरी तरह से अनुचित है.

Bureau Report, YT News

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