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बच्चे को स्वस्थ अगर हो रखना…तो उनको घर का खाना देना…बाहर खेलने देना…मोबाइल मत देना…जानें किस हाईकोर्ट का है ये कहना?
बच्चे देश का भविष्य होते हैं. आजकल के बच्चों की परवरिश में मोबाइल का इस्तेमाल होने लगा है. ये बच्चे मोबाइल पर वीडियो गेम्स, रील्स, यू ट्यूब आदि देखते रहते हैं जिसका बुरा असर उनकी सेहत पर पड़ता है. केरल हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करने के दौरान कहा कि पैरेंट्स बच्चे को मोबाइल देकर अन्य कार्यों में बिजी हो जाते हैं. बच्चे को क्रिकेट, फुटबॉल या जो गेम भी उस पसंद हो उसको बाहर खेलने के लिए जाने दें, वापस आने पर घर का बना खाना खिलाएं.
बच्चे मन के सच्चे होते हैं. उनके कोमल मन को जिस तरह से बिजी रखा जाए, उनका मन उसी में लगने लगता है. कभी हमारे देश में ज्वाइंट फैमिली होती थी जिसमें बच्चे की परवरिश में केवल उसके माता-पिता का ही नहीं बल्कि दादा-दादी, चाचा-चाची जैसे अन्य रिश्तेदार भी बच्चे की परवरिश पर ध्यान देते थे लेकिन अब सिंगल फैमिली के दौर में बच्चे मोबाइल, वीडियो गेम्स, टीवी में बिजी रहते हैं ऐसे में उनकी नेचुरल ग्रोथ नहीं हो पाती
केरल हाईकोर्ट ने बच्चों के लिए क्या कहा?
केरल हाईकोर्ट ने एक मामले पर बहस के दौरान कहा कि आजकल के पैरेंट्स अपने बच्चों को फोन देकर अपना कर्तव्य निभा रहे हैं. ये सबसे सरल काम हैं कि बच्चे को फोन पकड़ा कर खुद दूसरे काम करते रहो. ये बच्चों के नेचुरल ग्रोथ के लिए सही नहीं है.
कोर्ट ने कहा कि पैरेंट्स को चाहिए कि वह बच्चों को क्रिकेट, फुटबाल जैसे कोई भी खेल खेलने के लिए प्रेरित करें. इस तरह से उनकी फिजिकल एक्सरसाइट होगी. जब बच्चा खेलकर घर वापस आएं तो उसे घर का खाना खिलाएं न कि फास्ट फूड खिलाएं. न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने कहा कि माताएं बच्चों को को स्विग्गी या ज़ोमैटो के हाथ का नहीं बल्कि अपने हाथ का स्वादिष्ट भोजन परोसें.
एजेंसियां