साहित्यनामा

अनकही- प्यार, संघर्ष और ज़िंदगानी….पढ़िए दिल को छू लेने वाली ये कहानी…!!

मैं बाजार से लौटकर अपने कमरे पर पहुँचा तो मेरे दोस्त मेरी घबराहट और परेशानी देखकर मुझसे पूछने लग गए, कि क्या हुआ तुम्हारे चेहरे इतने उतरे हुए क्यूँ हैं? तुम इतने घबराए हुए क्यूँ हो? तुम्हारी आँखें भरी हुई क्यूँ है? मैं कुछ देर तक खामोश रहा फिर उनके बार बार सवाल करने पर मैंने बताया कि आज मैंने सालों बाद वर्षा को देखा। उसने पूछा कौन वर्षा?

अनकही

मैं बाजार से लौटकर अपने कमरे पर पहुँचा तो मेरे दोस्त मेरी घबराहट और परेशानी देखकर मुझसे पूछने लग गए, कि क्या हुआ तुम्हारे चेहरे इतने उतरे हुए क्यूँ हैं? तुम इतने घबराए हुए क्यूँ हो? तुम्हारी आँखें भरी हुई क्यूँ है? मैं कुछ देर तक खामोश रहा फिर उनके बार बार सवाल करने पर मैंने बताया कि आज मैंने सालों बाद वर्षा को देखा। उसने पूछा कौन वर्षा?

बात हाई स्कूल की है, जब मैं नवीं में गया था। बहुत ख़ुश था कि हाई स्कूल पढ़ने जाना है। नये दोस्त, नये शिक्षक मिलेंगे यह सब सोचकर मन बहुत ज्यादा प्रसन्न था। मुझे क्या पता था कि हाई स्कूल मेरी ज़िंदगी को इतनी बदल देगी कि मैं मुस्कुराना भी भूल जाऊँगा। स्कूल आने जाने लगा था सब कुछ ठीक चल रहा था। फिर अचानक इक रोज वो आई, न जाने क्यूँ इतनी भीड़ में मेरी नज़र उस पर ही आ रुकी?

शायद कारण उसका गुमशुम रहना, बहुत कम बोलना,हँसी-मुस्कुराहट से कोसों दूर रहना हो। उसे देखकर हमेशा मेरे मन में कई सवाल उठते थें। कि वर्षा इतनी मायूस क्यूँ रहती है? क्यूँ लोगों से भागती रहती है? शायद इन्हीं सवालों के जवाब तलाशते तलाशते मैं उसके बहुत क़रीब पहुँच गया था। मैं उससे बातें करना चाहता था, उससे पूछना चाहता था, लेकिन ये सब मेरे लिए इतना आसान नहीं था।

मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ? इसतरह से महीनों बीत गए और इस बेचैनी में मैं कदम दर कदम घुसता चला गया । मैं हर रोज सोचता कि कल उससे जरूर कहूँगा, लेकिन उसे देखकर न जाने क्यूँ मेरा कद बहुत छोटा मालूम होता की मैं अभी इन सवालों के सरलीकरण के योग्य नहीं बना और मैं कुछ नहीं कह पाता।

फिर अचानक वह कुछ दिनों से स्कूल आना बंद कर देती है, मैं हरेक रोज़ इसी आस में जाता कि शायद आज तो आई ही होगी। लेकिन पिछले कुछ दिनों की तरह आज भी नहीं आई थी। मैं सोचता था कि किसी से पुछू लेकिन दिमाग में कई तरह के उलझनों का जमावड़ा सा लग जाता था।

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हरेक दिनों की तरह एक रोज़ मैं सामाजिक शास्त्र की क्लास ले रहा था,सर समाज की बदहाली पर बात कर रहे थें। संयोग से उन्होंने अचानक वर्षा की बात सामने रख दी कि उसकी माँ बहुत बीमार है, उसके पास उतने पैसे नहीं कि अच्छे से इलाज़ करवाई जा सके। दुर्भाग्य की बात है कि उसके पिता भी कुछ वर्ष पहले गुजर गए हैं, उसके कोई भाई भी नहीं सिर्फ अकेली वर्षा और उसकी माँ है।

क्लास के साथ साथ स्कूल में भी सारे बच्चे उसकी ही चर्चा करने लगे। सब बहुत दुःखी थें की अगर उसकी माँ को कुछ हो गया तो उसका क्या होगा? मैं ये सब देख-सुनकर बहुत अचंभित हुआ, मानो आसमान से गिरके खजुर पर आ लटका था।

उस दिन के बाद से मैं हर रोज इसी उम्मीद से स्कूल जाता था कि शायद उसकी माँ ठीक हो गई हो और वर्षा आने लगी हो। शायद वो क्लास रूम में बैठी हुई हो या स्कूल के प्रांगण में दोस्तों के साथ बातचीत हंसी मजाक कर रही हो या शायद किताबों को खोलकर पन्ने दर पन्ने उलट पलट रही हो। शायद अब पहले की तरह गुमसुम नहीं हो बल्कि स्कूल में लगे आम के वृक्षों से कच्चे पक्के आम तोड़ने की अथक प्रयासों में विलीन हो। लेकिन यह सब कुछ कल्पना मात्र साबित होता था।

इस तरह महीनों बीत गए थें ना उसकी माँ ठीक हो पाई थी ना ही वो आ पाई थी। एक रोज क्या हुआ जब मैं स्कूल पहुँचा तो देखा स्कूल में जमावड़ा लगा हुआ था सभी शिक्षक सहित सभी विद्यार्थि प्रांगण में खड़े आपस में बतिया रहे थें। पास पहुँचा तो देखा बीच में वर्षा खड़ी थी वो बेज़ार रो रही थी।

वर्षा को देखकर एक पल के लिए मेरी धड़कन, मेरी साँसे दोनों थम गई थी, बहुत मुश्किल से अश्कों को गिरने से रोक पाया था। मैं इतना नर्भस हो गया था कि खुद को संभाल न सका और वहाँ से किसी दूसरी तरफ चला गया। सभी उन्हें दिलासा दे रहे थें की भगवान पर भरोसा रखो सब ठीक हो जाएगा । मैं घुट रहा था उसके मर्म को देखकर। बाद में पता चला वह मदद के लिए शिक्षकों से मिलने के लिए आई थी।

थोड़े वक़्त बाद वर्षा की माँ की तबियत कुछ हद तक ठीक हो गई थी। मैं बहुत ख़ुश था कि शायद अब कोई समस्या नहीं रही होगी। मुझे लगा कि शायद ईश्वर उस 13 वर्ष की लड़की की ज़िंदगी पर तरस खाकर उसकी ज़िंदगी को बेहतर बनाने के लिए तैयार है। मुझे लगा वह अब फिर से जीना शुरू कर देगी। वह दुबारा से बाकियों की तरह नॉर्मल जीवन जीने लग जाएगी। लेकिन वर्षा की माँ उसकी शादी बहुत जल्दी कर देना चाहती थी, क्योंकि उनकी ज़िंदगी का कोई ठीक नहीं था।

इस खेलने कूदने पढ़ने लिखने की उम्र में उसकी शादी उसके लिए किसी श्राप से कम नहीं था। लेकिन हालात के विवश थें। एक रोज़ मैंने फैसला किया कि उससे बात करूँगा उसके जीवन के बारे में। उसके रिश्तेदारों व अपनों के बारे में। मैं घर आकर उसे ही सोच रहा था। मैं पूरी रात नहीं सोया बस उसे ही सोच-सोचकर व्याकुल होता, कल क्या कहना है उसे, कैसे कहना है यही सब।

सुबह मैं अच्छे से तैयार होकर स्कूल निकल गया। कुछ देर बाद स्कूल पहुँचा तो देखता हूँ वर्षा आज नहीं थी। लेकिन मेरी नज़र वर्षा को बड़ी बेचैनी से ढूँढे जा रही थी । वो अभी तक मुझे कहीं नहीं दिखी थी। मैं परेशान था कि वो क्यूँ नहीं आई? समय बीतता गया प्रार्थना हो गया, क्लास लग गई लेकिन उसका कोई अता पता नहीं था। इस तरह टिफिन के कुछ देर बाद अचानक प्रिंसीपल सर ने क्लास में आकर बताया कि वर्षा की माँ की मृत्यु हो गई।

मैं यह सुनकर सन्न रह गया। मेरे अंग अंग काँपने लग गए। मैं आसमान से सीधे ज़मीन पर आ गिरा था। समझ में नहीं आ रहा था कि अपनी किस्मत पर रोऊँ या वर्षा की किस्मत पर। मेरे अंदर कई सवालों के तूफान उठने लगे। मैं यही सोच रहा था कि क्या इससे बदतर किस्मत भी हो सकती है किसी की? उसका क्या होगा अब? यह सवाल मुझे परेशान किये जा रहा था। कई दिनों तक मैं इस सदमें से बाहर नहीं आ पाया था। यह सब मेरे लिए एक बेहद दर्दनाक हादसा था।

ऐसा हादसा जिसे मैं किसी को बता भी नहीं सका। मैंने अपने उस ग़म को अपने ही दिल में दफना दिया था। लेकिन मेरी परेशानी और दुगुनी हो जाती थी मैं जब ये सोचता था कि आख़िर मैं उसके लिए इतना ज़्यादा परेशान क्यों हूँ? बाँकि लोगों की तरह वह मेरी भी केवल स्कूल की एक छात्रा ही तो थी। फिर बाँकियो की तरह मैं भी नॉर्मल क्यों नहीं हूँ? और जवाब में में मेरे हाथों कुछ नहीं आता।

कुछ महीने बाद एक सर बता रहे थे कि उसकी शादी उसके ननीहाल वालों ने कहीं पास के ही शहर में कर दी। मैं ये सब सुनकर बहुत दुःखी रहने लगा था और शायद खुश भी क्योंकि उसे एक नया जीवन मिल गया था। लेकिन मैं चिंतित भी था, वह उस जीवन कितनी खुश है?

राजा आलम

Bureau Report, YT News

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