शहीद हरदयाल लाइब्रेरी का हाल है बेहाल… सरकारें इस हेरिटेज लाइब्रेरी का कब रखेगी ख्याल?
शहीद हरदयाल लाइब्रेरी एक हेरिटेज संस्था है जो दिल्ली महानगरपालिका के अंतर्गत आती है. यहां के कर्मचारियों को लंबे समय से वेतन टाइम से नहीं मिल रहा है. बिजली कट गई है। रोशनदान के नीचे खड़े होकर लोग पढ़ते हैं। वाशरूम की सफाई कई महीनों से नहीं हुई। साफ पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है। लाइब्रेरी के फोन नं. 011-2396-3172 पर फोन करो तो जवाब मिलता है कि ये नंबर उपयोग में नहीं है।” कहने को तो मेयर इस लाइब्रेरी की अध्यक्ष हैं लेकिन उनको भी इस लाइब्रेरी की दशा को ठीक करने का समय नहीं मिलता.
शहीद हरदयाल लाइब्रेरी दिल्ली के पुरातनतम पुस्तकालयों में से एक है. हरदयाल म्यूनिसिपल पब्लिक लाइब्रेरी की दुर्दशा देखकर हर पढ़ने लिखने वाला व्यक्ति निराश है.
हेरिटेज लाइब्रेरी का हाल बेहाल
राजधानी दिल्ली के इतिहास का ये लाइब्रेरी मूक गवाह है. ये ऐतिहासिक लाइब्रेरी दिल्ली महानगरपालिका की अक्षमता और संवेदनहीनता का शिकार है। इस हेरिटेज संस्था की ओर किसी सरकार का ध्यान नहीं है।
दिल्ली के मेयर इसकी अध्यक्ष होते हैं लेकिन वर्तमान में इस लाइब्रेरी का हाल बेहाल है. हर पुस्तक प्रेमी इसकी दुर्दशा को देखकर दुखी है लेकिन सरकार को इसकी कोई परवाह नहीं है.
यहां के कर्मचारी को लंबे समय से वेतन टाइम से नहीं मिल रहा है. बिजली कट गई है। रोशनदान के नीचे खड़े होकर लोग पढ़ते हैं। वाशरूम की सफाई कई महीनों से नहीं हुई। यहां पर साफ पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है। लाइब्रेरी के फोन नं. 011-2396-3172 पर फोन करो तो जवाब मिलता है कि ये नंबरउपयोग में नहीं है।” कहने को तो मेयर इस लाइब्रेरी की अध्यक्ष हैं लेकिन उनको भी इस लाइब्रेरी की दशा को ठीक करने का समय नहीं मिलता.
लाइब्रेरी में है दुर्लभ पुस्तकें
इस लाइब्रेरी में लगभग दो लाख पुस्तकें हैं जिनमें से 8 हजार तो दुर्लभ पांडुलिपियां हैं। यहां पर अकबर के नवरत्न अबुल फजल (इब्न मुबारक) द्वारा लिखित आईने अकबरी और अकबरनामा है।
इनमें मुगलकालीन समाज तथा सभ्यता का बेहतरीन वर्णन मिलता है। अबुल फजल का ही फारसी में महाभारत भी है, जिसमें आकृतियां सुनहरी हैं। सूफी संत ख्वाजा हसन निजामी का फारसी लिपि में लिखा कुरान है। महान ज्योतिष-ग्रंथ भृगु संहिता हैं, जिससे कुंडली तैयार होती है।
यहां ब्रिटिश लेखक सर वाल्टर रेले द्वारा 1607 में लिखी : “हिस्ट्री ऑफ द वर्ल्ड (1607) की मूल प्रतियां हैं। इसमें मेसोपोटामिया पर रोम की फतह से क्रमबद्ध इतिहास लिखा गया है। वाल्टर रेले का लंदन में स्टुअर्ट बादशाह जेम्स प्रथम ने सर कलम करा दिया था। रेले को ब्रिटेन ट्यूडर वंश की अविवाहिता महारानी एलिजाबेथ प्रथम का आशिक बताया जाता है।
अन्य महत्वपूर्ण पुस्तकों में हैं : 1705 की वोयेज अराउंड द वर्ल्ड (जॉन फ्रैंकिस जेनेली कोरिरि),1828 की तजकीरा अल वकयात(चाल्र्स स्टेवर्ड),1794 की ट्रेवल्स इन इंडिया(विलियम होजेज), 1854 में लिखी गई रिगवेद संहिता (एचएच विल्सन), 1881 में सत्यार्थ प्रकाश(स्वामी दयानंद सरस्वती), 1928 में लिखी गई कुरान ए मजिद और औरंगजेब की मूल रचना की अनुवादित रचना आयते ऑफ कुरान प्रमुख हैं। ये सभी बेशकीमती धरोहर हैं लेकिन लाइब्रेरी की दशा देखकर सवाल उठता है कि यह सब अनमोल कृतियां कब तक बची रहेंगी ?
लाइब्रेरी का इतिहास
अंग्रेजों के पढ़ने के शौक के चलते टाउन हॉल में छोटी सी लाइब्रेरी इंस्टीट्यूट शुरू हुई जो 1911 में यह मौजूदा भवन में स्थानांतरित हो गई। दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के 1919 में नाम से पहचाना जाने लगा। इसे पहले हार्डिग लाइब्रेरी के नाम से भी पुकारते थे। फिर हरदयाल लाइब्रेरी के नाम से जाना जाता है। इस पुस्तकालय का नाम महान राष्ट्रभक्त और क्रांतिकारी लाला हरदयाल के नाम पर रखने का महत्व है। लाला हरदयाल भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के उन अग्रणी क्रान्तिकारियों में थे जिन्होंने विदेश में रहने वाले भारतीयों को देश की आजादी की लडाई में योगदान के लिये प्रेरित व प्रोत्साहित किया।
आधुनिक भारत का एक ताजा तरीन किस्सा इस लाइब्रेरी से जुड़ा है। बात है देश के विभाजन के दौर की। मोहम्मद अली जिन्ना अपनी मातृभूमि कहकर सागरतटीय काठियावाड़ (पश्चिमी गुजरात) को अपने इस्लामी राष्ट्र में शामिल करने पर अड़े थे। जूनागढ़ के नवाब की हरकतों से उन्हें बल मिला था। तब इसी हरदयाल लाइब्रेरी में उपलब्ध नक्शे, दस्तावेज और किताबों के आधार पर पाकिस्तान को मानना पड़ा कि बापू की जन्मस्थली काठियावाड़ गुजरात का भूभाग है।
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जब एक दशक पहले दिल्ली मेट्रो के लिए पुराने इलाके में खुदाई हो रही थी। तब 6 जुलाई 2012 को यहां चंद मध्यकालीन ढांचे दिखे। अब ये मंदिर था या मस्जिद ? इस पर अलग-अलग दावे लगे। इस हरदयाल लाइब्रेरी में रखे मुगलकालीन किताबों से पता चला कि बादशाह शाहजहां ने उस स्थान पर 1650 में अकबराबादी मस्जिद बनवाई थी। उसी के अवशेष मिले थे। समाधान तुरंत हुआ। वर्ना इसमे भी बाबरी मस्जिद जैसा बवाल उठ खड़ा होता।
शाहजहां की कई बेगमों में खास थीं अकबराबादी जिसके नाम पर यह महल था। इसे 1857 में अंग्रेजों ने ध्वस्त कर दिया था। ध्वस्त मस्जिद के मलबे को बिक्री के लिए रखा गया था। किसी तरह सैयद अहमद खान ने मलबे को खरीदा और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के निर्माण में इसका इस्तेमाल किया। यह नेताजी सुभाष पार्क के समीप है।
इससे जुड़ी घटना भी है। यूं तो भारतीय इतिहास में तक्षशिला, नालंदा और विश्व में बगदाद, इस्तांबुल, एलेक्जेंड्रिया आदि आक्रामकों द्वारा ध्वस्त किए जाते रहे। पर दिल्ली का यह डेढ़ सौ वर्ष पुराना पुस्तकालय प्रशासनिक कोताही का खामियाजा भुगत रहा है जब से इसकी नींव 1864 में पड़ी थी।
इसका नाम मूलतः लॉरेंस इंस्टिट्यूट था। पुस्तकालय 1902 में बना। इसी स्थल पर दिसंबर 1912 में हाथी पर सवार वायसराय हार्डिंग पर बम फेंका गया था। वे बच गये थे। बम कांड में स्वतंत्रता सेनानी मास्टर अमीरचंद, भाई बालमुकुंद, मास्टर अवध बिहारी और बसंत कुमार विश्वास को फांसी दे दी गई। ये स्वतंत्रता सेनानी हरदयाल के साथी थे। अंग्रेजों के भारत से जाने के बाद 1970 में हार्डिंग लाइब्रेरी का फिर नामकरण हुआ। स्वतंत्रता सेनानी हरदयाल का नाम दिया गया।
सरकार से ध्यान देने की अपील
इस उपेक्षित लाइब्रेरी की दशा को ठीक करने के लिए विशिष्ट लोगों ने सरकार से ध्यान देने की अपील की है. राष्ट्रीय धरोहर बचाने और विरासत के संरक्षण में हर समय सरकारें जुटी रहती हैं मगर दिल्ली की इस लाइब्रेरी में शासन-प्रशासन को ध्यान देने की जरूरत है।
लाला हरदयाल पब्लिक लाइब्रेरी प्रशासनिक अनुकंपा का इंतजार कर रही है. दिल्ली की महापौर, दिल्ली के उपराज्यपाल और केंद्रीय गृहमंत्री को इस ऐतिहासिक लाइब्रेरी की ओर अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए
के.विक्रम रॉव