देशविचार/विश्लेषण

देश में मंदी की आहट…श्रीलंका जैसे बनेगी हालत…सरकार दे पाएगी राहत..?

गिरीश मालवीय

कर्ज चुकाने की चुनौती

वित्त मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत पर अभी लगभग 621 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज है, उसका करीब 40 प्रतिशत हिस्सा, यानि 267 अरब डॉलर का विदेशी ऋण भारत सरकार को अगले 6 महीने में चुकाने हैं. देश की अर्थव्यवस्था के सामने ये एक बहुत बड़ी चुनौती है।

श्रीलंका जैसे न हो जाएं हालात

भारत की अर्थव्यवस्था श्रीलंका से पांच गुना बढ़ी है तो कर्ज भी तो पांच गुना बड़ा है, ऐसे में श्रीलंका जैसे हालात से निपटने के लिए सरकार को सही तरीके की रणनीति बनानी होगी.

सरकारें अक्सर 2 तरह के कर्ज लेती हैं. एक है दीर्घकालीन और दूसरे होते हैं अल्पकालीन. इस समय देश पर लंबी अवधि का कर्ज 499.1 अरब डॉलर का है जो कुल बाहरी कर्ज का 80.4 प्रतिशत है जबकि 121.7 अरब डॉलर के साथ छोटी अवधि के कर्ज की हिस्सेदारी 19.6 प्रतिशत है.

विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति

ये चिंताजनक तथ्य है कि देश के पास जितना विदेशी मुद्रा भंडार है, उससे अब कर्ज की रकम कहीं ज्यादा. एक रिपोर्ट के मुताबिक 30 सितम्बर तक भारत के पास कुल 532.664 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है जिसमे फॉरेन करेंसी एसेट्स (FCA) तो लगभग 472.807 अरब डॉलर ही रह गया है

अब 6 महीने में चुकाने वाली रकम 267 अरब डॉलर है तो इसे चुकाने के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार भी तो होना चाहिए.

विदेशी मुद्रा भंडार तो तेज़ी से घट रहा है, जनवरी 2022 के पहले सप्ताह में भारत के पास 633 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार था, जिसमें अब तक 100 अरब डॉलर से अधिक की गिरावट आ चुकी है यह पिछले एक दशक में सबसे अधिक है.

मंदी की आहट, लोगों की आफत

देश में क्या एक बार मंदी आने वाली है? ये सबसे बड़ा सवाल है, सरकार भले ही लाख दावे करे भारत मंदी से बाहर निकल जायेगा लेकिन आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार इकानॉमी की हालत को देखते हुए ऐसा लग तो नहीं रहा.

इस शताब्दी की पहली मंदी जो 2008 में आई थीं उस वक्त कुल ऋण अनुपात में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 138.0 प्रतिशत के आंकड़े के साथ सबसे उच्च स्तर पर था. वहीं अब ये -85% के आसपास है और मार्च 2023 तक तो और भी कम हो जाएगा, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मंदी की आहट लगभग तय है और इससे लोगों की आफत बढ़ेगी.

इसके साथ विदेशी व्यापार घाटा भी दोगुनी रफ्तार से बढ़ रहा है ये भी ख़तरनाक हालात का संकेत है. देश इकनॉमी के मोर्चे पर खराब हालत में पहुंच रहा है, सरकार को इस ओर ध्यान देना होगा नहीं तो भारत में भी श्रीलंका जैसे हालात होने की आशंका रहेगी.

(लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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