इरफान खान के बेटे बाबिल की डेब्यु फिल्म ‘कला’ हुई रिलीज…जानिए क्या अपने पिता की तरह दर्शकों का दिल पाएंगे जीत..!!
नंदराम प्रजापति
‘कला’ एक ऐसी फिल्म है, जिसमें बहुत रिस्क भी है और बहुत मेहनत भी। रिस्क, फिल्म के विषय चयन से लेकर कलाकारों को चुनने न चुनने, फिल्मांकन, गीत-संगीत सब कुछ में है, जो कि फिल्म के चलने न चलने के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं, वहीं मेहनत फिल्म की बारीकियों से जुड़ी हुई है, जिसे मसाला फिल्मों के निर्माता-निर्देशक जानबूझकर अनदेखा करते हैं।
मसाला फिल्मों के चर्चित निर्देशक डेविड धवन गीतकार समीर अंजान से अक्सर कहा करते थे कि तूं तो बस बढ़िया-सा हिट गीत लिख दे, उसे फिल्म में एडजस्ट कैसे करना है, वह मैं देख लूंगा। अपनी पहली फिल्म ‘बुलबुल’ के बाद अनविता दत्त ने फिर से जोखिम उठाया है और उसी लीक पर फिल्म बनाई है, जो उनकी पहली फिल्म की पहचान थी।
पितृसत्तात्मक सोच पर चोट करती है फिल्म
समाज की जड़ में जमा हो चुकी पितृसत्तात्मक सोच को चोट करना। इसमें वह ‘बुलबुल’ में भी कामयाब थीं और ‘कला’ में भी। हालांकि, कला में उन्होंने फिल्म के विषय के जहां से संदर्भ लिए हैं, वह जरूर सवाल खड़े करते हैं। कुछ हद तक उनके संदर्भ सच भी मालूम पड़ते हैं। जैसे कि फिल्म में जगन का किरदार और उसका संदर्भ मास्टर मदन का है। इसी प्रकार चंदन लाल सान्याल का किरदार केएल सहगल से प्रेरित है।
यही नहीं सुमंत कुमार का किरदार हेमंत कुमार से प्रेरित लगता है। मजरूह सुल्तानपुरी के किरदार को तो उनके नाम के साथ लिया गया है। फिल्म की लीड कलाकार कला मंजुश्री का किरदार, अप्रत्यक्ष ही सही लता मंगेश्कर की ओर इशारा करता है। पूरी फिल्म में भी कला को कला नहीं कला दीदी या दीदी कहकर संबोधित किया गया है। यह किसी से छिपा नहीं है कि लता मंगेश्कर को फिल्मी गलियारों में लता दीदी या दीदी कहकर ही संबोधित किया जाता था।
‘कला’ की कहानी
कला में अनविता दत्त हमें 1930 के समय के भारत में संगीत की दुनिया में ले जाती हैं, जहां कला मंजुश्री को उसकी मां बचपन से ही संगीत की बारीकियां सीखाती है और चाहती है कि उसके नाम के आगे पंडित लगे, लेकिन कला गाने में उतनी अच्छी नहीं, ऊपर से मां की कुछ ज्यादा अपेक्षाओं के चलते वह अंदर से डरी हुई कला बन जाती है, जो किसी भी प्रकार से मां का प्यार पाना चाहती है।
उर्मिला एक बार जब एक अनाथ लड़के जगन को गाते हुए सुनती हैं, तो जैसे उसे अपना वह मरा हुआ बेटा मिल जाता है, जो जन्म के साथ ही मर गया था और जुड़वा बच्ची कला जीवित रह गई थी। हमारे समाज में लड़के की चाह हर माता-पिता की होती है, इसे कोई कितने भी झूठ के सहारे झुठला नहीं सकता।
जैसा कि कला की मां उर्मिला मंजुश्री डॉक्टर से पूछती है कि मरने वाला बच्चा लड़का था! लेकिन जब माता-पिता अपने सपनों को बच्चों पर थोपते हैं तो वह धीरे-धीरे इतने नकारात्मक, डरे हुए होते जाते हैं कि कोई भी गलत कदम उठाने से भी नहीं चूकते। कला भी ऐसा ही करती है, वह जगन को एक दिन उसकी प्रस्तुति से पहले दूध में पारा दे देती है।
जगन का पहली बार गाना सुनने के बाद उर्मिला जगन को अपने साथ ले आई थी और उसे फिल्मों में लॉन्च करने के लिए हर तरह के हथकंडे अपना रही थी, जिससे कला खुद को अनदेखा महसूस कर रही थी।
पारा मिला हुआ दूध पीने से जगन की आवाज तो जाती ही है, वह इस सदमे के चलते आत्महत्या भी कर लेता है और कला किसी भी कीमत पर खुद को फिल्म में स्थापित कर लेती है।
कला को नाम और शोहरत तो मिल जाती है, लेकिन उसे उसकी मां नहीं मिलती। जगन की आत्मा भी उसका पीछा नहीं छोड़ती, धीरे-धीरे कला मानसिक रूप से परेशान होती जाती है और आखिरकार वह भी आत्महत्या कर उड़ जाती है।
महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाती है फिल्म
फिल्म में एक साथ कई विषयों को उठाया गया है, मसलन परिवार में लड़कों की चाह होना, लड़कों के मुकाबले लड़कियों को कम प्यार मिलना, उन्हें कमतर आंकना, जीवन में सफल होने के कम मौके मिलना, उन्हें हमेशा पराये घर की समझना और सबसे बढ़कर अपने सपनों को बच्चों पर थोपना, जिसके लिए हो सकता हो बच्चा तैयार ही न हो।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ‘कला’ अपने विषय और प्रस्तुति में एक बेहतरीन फिल्म है। हालांकि, फिल्म के गाने फिल्म को कुछ ज्यादा गंभीर बनाते हैं, जिससे बचा जा सकता है।
बावजूद इसके ‘फेरो न नजर से नजरिया’ और ‘उड़ जाएगा हंस अकेला’ गाने फिल्म में जान डालने का काम करते हैं। फिल्म को नेटफ्लिक्स पर देखा जा सकता है।
कैसी है बाबिल खान की एक्टिंग?
बाबिल के पिता इरफान खान अपने किरदार को पूरी शिद्दत से जीते थे तभी वह हर किरदार में जान डाल देते थे. बाबिल के खून में पिता से मिले एक्टिंग के गुर हैं. तभी दर्शक बाबिल की डेब्यु फिल्म में उनके मरहूम पिता इरफान का अक्स ढूंढने की कोशिश करते हैं.
काफी हद तक बाबिल अपनी ‘कला’ से इस बात को साबित करने की कोशिश करते हैं कि उनमें अपने पिता इरफान की तरह ही उनमें भी एक उम्दा अभिनेता बनने के गुर हैं.