इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री को बदल रहा है ओटीटी, लेकिन सेंसरशिप है जरूरी- बचन पचहरा
इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में बचन पचहरा, वो जाने माने एक्टर हैं जिन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में 25 साल पूरे कर लिए हैं. इस सफर में जहां उनका पहला टीवी सीरियल "नया जमाना" से शुरू हुआ सफर, "नायक, द रियल हीरो" बनी उनकी पहली फिल्म इस दौरान उन्होंने शाहरुख खान के साथ स्वदेश फिल्म से लेकर कई फिल्मों, टीवी और वेबसीरीज में अलग अलग किरदार निभाए. YT न्यूज के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में उन्होंने अपने संघर्ष से लेकर कास्टिंग काउच, कैंप कल्चर, ओटीटी पर सेंसरशिप जैसे कई मुद्दों पर खुलकर बातचीत की. पेश है बातचीत के प्रमुख अंश
आप भगवान कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा से आते हैं. क्या आप शुरू से ही एक्टर बनना चाहते थे.. मथुरा से मुंबई तक का सफर कैसा रहा?
वैसे तो पहले से नहीं सोचा था कि “एक्टर बनूंगा लेकिन मेरी एक्टिंग में दिलचस्पी मेरे दादा जी को जाता है, क्योंकि उनके दादा जी जो थिएटर में एक्टिंग में करते थे। उनकी एक्टिंग को देख देखकर मेरी दिलचस्पी भी अभिनय में हो गई. मेरे दादा जी न मुझे बहुत सपोर्ट किया.
इसके बाद मैंने अपने स्कूल में होने वाले कई कल्चरल प्रोग्राम में एक्टिंग की, इसके बाद कॉलेज में होने वाले नाटकों में भाग लिया. फिर दिल्ली में आकर थिएटर किया. इसके बाद मुंबई की तरफ रुख किया. साल 1977 में प्रोफेशनल लोग से मुलाकात के बाद लुधियाना में पहला शो किया जिसके बाद थिएटर किया.
कुछ समय बाद ब्रेक अनिल कपूर की फिल्म नायक द रियल हीरो में एक छोटे से रोल के लिए ब्रेक मिला. लंबे संघर्ष के बाद नायक, नमक हराम, स्वदेश जैसी कई बड़ी फिल्मों में साइड रोल किया तो वहीं टीवी और वेब सीरीज में भी एक्टिंग की.
आपने स्वदेश में शाहरुख खान जैसे बड़े सितारे के साथ काम किया. उनके साथ काम करने का आपका कैसा अनुभव रहा?
अक्सर कहा जाता है कि बड़े सितारों को बहुत घमंड होता है लेकिन “जैसा बोला जाता है, जरूरी नहीं हमेशा वैसा ही होता हो । मैंने जितने भी सितारों के साथ काम किया वे सभी मेरे साथ बहुत अच्छे रहे. शाहरूख जैसा शानदार और विनम्र इंसान मैंने आज तक नहीं देखा, स्वदेश की शूटिंग के समय उन्होंने हमें बहुत मान और सम्मान दिया. हमारे साथ सबका व्यवहार बहुत अच्छा रहा और मैने भी अपने सभी कोस्टार्स से बहुत कुछ सीखा है.
इसके बाद शाहरुख खान के साथ ‘रईस फिल्म में काम किया तो एक बार जब वे सेट पर आए और उन्होंने मुझे देखा तो तुरंत बुलाकर अपने पास वाली कुर्सी पर बिठाया और मेरा हालचाल जानने लगे। इतना सम्मान चरित्र कलाकारों को कम ही मिलता है उस दिन उन्होंने जब मुझे बुलाया और मैं उनके पास गया तो वह तुरंत उठकर खड़े हो गए और मुझे कुर्सी पर बिठाने के बाद ही बैठे। ऐसे संस्कार फिल्मों से जुड़े बड़े लोगों के पास बहुत कम होता है।’
आपको फिल्म इंडस्ट्री में 25 साल हो गए हैं. इतने लंबे समय में क्या आपको भी कभी भाई भतीजावाद यानि नेपोटिज्म का अनुभव करना पड़ा क्या पहले भी आज की तरह इनसाइडर और आउटसाइडर को लेकर डिबेट होती थी?
देखिए हर फील्ड में भाई भतीजावाद होता है और होता रहेगा और इसे”मैं गलत नहीं मानता हूं क्योंकि हर मां बाप अपने बच्चो को पहले चांस देंगे लेकिन उनका टैलेंट फिर देखा जाता है, इससे ब्रेक थोडा आसानी से मिल जाता हैं लेकिन सफलता सिर्फ टैलेंट के आधार पर मिलती है.
रही बात इनसाइडर और आउटसाइडर की तो इस पर डिबेट तो होती रहती है पर बात वही है कि अगर आप में टैलेंट है और लंबे समय तक आप संघर्ष कर सकते हैं तो सफलता देर-सबेर जरूर मिलती है. नवाजुद्दीन सिद्दीकी, राजकुमार राव, आयुष्मान खुराना जैसे कई नाम इसके प्रमाण है.
बॉलीवु़ड पर अक्सर कास्टिंग काउच के गंभीर आरोप लगते हैं. आप लंबे समय से फिल्मी दुनिया में है तो इस मुद्दे पर पर आप क्या मानना है?
देखिए बिना आग के कहीं धुआं नहीं उठता. ये इंडस्ट्री का कड़वा सच है लेकिन कोई किसी का जबरन शोषण नहीं कर सकता. कई बार लोग सक्सेस के लिए अपनी मर्जी से कॉम्प्रोमाइज करते हैं लेकिन ये आप पर निर्भर है कि आप क्या चाहते हैं बिना किसी कंप्रोमाइज के भी आपके टैलेंट के बेसिस पर काम मिलता है पर संघर्ष और समय थोड़ा ज्यादा लग जाता है.
आपने अब तक कई तरह के किरदार निभाए हैं उनमें से आपका फेवरेट किरदार कौन सा है. इसके अलावा आपका कोई ड्रीम रोल हो जो आप निभाना चाहते हों ?
मैंने एक टीवी शो किया था जिसका नाम “हकीकत” था जिसमें जो किरदार मैने निभाया था वह करैक्टर मेरे दिल के बेहद करीब रहा पर, वैसे तो लोगों को मेरा स्वदेश फिल्म में निभाया किरदार बहुत पसंद आया लेकिन मुझे वो कुछ खास पसंद नही आया, उसकी वजह ये थी कि मेरा शॉट अक्सर एक ही टेक में डॉयरेक्टर आशुतोष जी फाइनल कर देते थे पर मैं और बेहतर एक्टिंग के लिए रीटेक देना चाहता था लेकिन ऐसा हो नहीं सकता. रही बात ड्रीम रोल की तो किसी भी एक्टर को कभी पूरी तरह से संतुष्ट नहीं होना चाहिए तो ऐसे कई किरदार है जो हम निभाना चाहते हैं।
आजकल OTT का जमाना है. बहुत से नए लोगों को जहां OTT प्लेटफॉर्म्स में काम मिल रहा है तो कई बार इसके कंटेंट और सींस को लेकर सवाल भी उठते हैं तो आपके मुताबिक इस पर सेंसरशिप होनी चाहिए या नहीं?
बिलकुल क्योंकि सिनेमैटिक क्रिएटिविटी का मतलब गाली गलौच और न्यूडिटी नहीं होता जो आजकल के OTT कंटेंट में बहुत होता है लेकिन इन सबके बिना भी कई कंटेंट बहुत शानदार भी हैं इसलिए मेरा मानना है कि कहीं न कहीं कुछ न कुछ सेंसरशिप होनी चाहिए, ताकि बच्चों पर किसी तरह का कई गलत प्रभाव नहीं पड़े।
आपके आने वाले प्रोजेक्ट कौन कौन से हैं?
अभी तो एक हॉलीवुड फिल्म हिंदी में बन रही है जिसकी शूटिंग मैं कर रहा हूं वहीं एक OTT प्लेटफार्म के लिए परेश रावल के साथ भी एक प्रोजेक्ट है। बहुत जल्द ये सब दर्शकों के सामने होगा, इसके अलावा कुछ अन्य प्रोजेक्ट्स पर भी बातचीत चल रही है.
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