आपके बच्चे परिवार और समाज के लिए होंगे बेहद ख़ास…बच्चों की परवरिश में यदि ऐसे ध्यान देंगे आप..!!
आपके बच्चों को सही संस्कार देना आपकी जिम्मेदारी है नहीं तो एक वक्त ऐसा आता है जब माता-पिता की तीमारदारी और खोज खबर लेना उन्हें बोझ लगने लगता है. खेत-खलिहान, पुराना मकान, पुराना सामान, पैतृक संपत्ति को बेचने की वे कोशिश करने लगते हैं तो वहीं कुछ ऐसे बच्चे होते हैं जो अपने माता-पिता, रिश्ते-नातेदार सबके सुख-दुख में आते-जाते हैं, तीज-त्यौहार, श्राद्ध, बरसी के सब कार्यक्रमों में हाथ बंटाते हैं. आइए जानते हैं कि बच्चों की परवरिश में अच्छे संस्कारों का ध्यान कैसे रखें?
आपके बच्चे परिवार, समाज और देश के लिए बेहद ख़ास होते हैं लेकिन कुछ माता-पिता जरूरत से ज्यादा समझदार होते हैं. वे अपने बच्चों को किसी की भी मंगनी, विवाह, लगन, शवयात्रा, उठावना, तेरहवीं (पगड़ी) जैसे अवसरों पर नहीं भेजते, ताकि उनकी पढ़ाई में बाधा न हो!
उनके बच्चे किसी रिश्तेदार के यहां आते-जाते नहीं, न ही किसी का घर आना-जाना पसंद करते हैं। वे हर उस काम से उन्हें से बचाते हैं जहां उनका समय नष्ट होता हो !” उनके माता-पिता उनकी पढ़ाई, करियर लेकर बहुत सजग रहते हैं ! ऐसे बच्चे सख्त पाबंदी मे जीते हैं! दिन भर पढ़ाई करते हैं, महंगी कोचिंग जाते हैं, अनहेल्दी फूड नहीं खाते, नींद तोड़कर सुबह जल्दी साइकिलिंग या स्विमिंग को जाते हैं, महंगी कारें, गैजेट्स और क्लोदिंग सीख जाते हैं, क्योंकि देर-सवेर उन्हें अमीरों की लाइफ स्टाइल जीना है !
फिर वे बच्चे औसत प्रतिभा के हों या होशियार, उनका अच्छा करियर बन ही जाता है, क्योंकि स्कूल से निकलते ही उन्हें बड़े शहरों के महंगे कॉलेजों में भेज दिया जाता है,जहां जैसे-तैसे उनकी पढ़ाई भी हो जाती है और प्लेसमेंट भी। अब वह बच्चे बड़े शहरों में रहते हैं और छोटे शहरों को हिकारत से देखते हैं !
मजदूरों, रिक्शा वालों, खोमचे वालों की गंध से बचते हैं … ये बच्चे छोटे शहरों के गली-कूचे, धूल, गंध देखकर नाक-भौं सिकोड़ते हैं। रिश्तेदारों की आवाजाही उन्हें बेकार की दखल लगती है। फिर वे अपना शहर छोड़कर किसी मेट्रो सिटी या फिर विदेश चले जाते हैं ..वे बहुत खुदगर्ज और संकीर्ण जीवन जीने लगते हैं। अब माता-पिता की तीमारदारी और खोज खबर लेना भी उन्हें बोझ लगने लगता है !
खेत-खलिहान, पुराना मकान, पुराना सामान, पैतृक संपत्ति को बचाए रखना उन्हें मूर्खता लगने लगती है ! वे पैतृक संपत्ति को जल्दी ही उसे बेचकर “राइट इन्वेस्टमेंट””‘ करना चाहते हैं ! अपने माता-पिता से “वीडियो कॉल” में उनकी बातचीत का मसला अक्सर यही रहता है .
इधर दूसरी तरफ कुछ ऐसे बच्चे होते हैं जो सबके सुख-दुख में जाते हैं, जो किराने की दुकान पर भी जाते हैं, बुआ, चाचा, दादा-दादी को अस्पताल भी ले जाते हैं, तीज-त्यौहार, श्राद्ध, बरसी के सब कार्यक्रमों में हाथ बंटाते हैं, क्योंकि उनके माता-पिता ने उन्हें यह मैनर्स सिखाया है कि सब के सुख-दुख में शामिल होना चाहिए और किसी की तीमारदारी, सेवा और रोजमर्रा के कामों से जी नहीं चुराना चाहिए.
इन बच्चों के माता-पिता…. उन बच्चों के माता-पिता की तरह बहुत ज्यादा समझदार नहीं होते..क्योंकि वे इन बच्चों का “कीमती समय” अनावश्यक कार्यों में नष्ट करवा देते हैं फिर ये बच्चे छोटे शहर में ही रहे जाते हैं और दोस्ती यारी रिश्ते नाते जिंदगी भर निभाते हैं ! यह बच्चे, उन बच्चों की तरह “बड़ा करियर” नहीं बना पाते, इसलिए उन्हें असफल और कम होशियार मान लिया जाता है !
समय गुजरता जाता है, फिर कभी कभार, वे ‘सफल बच्चे’ अपनी बड़ी गाड़ियों या फ्लाइट से छोटे शहर आते हैं, दिन भर एसी में रहते हैं, पुराने घर और गृहस्थी में सौ दोष देखते हैं। फिर रात को, इन बाइक, स्कूटर से शहर की धूल-धूप में घूमने वाले ‘असफल बच्चों’ को ज्ञान देते हैं कि…. तुमने अपनी जिंदगी बर्बाद कर ली आदि आदि !!
असफल बच्चे लज्जित और हीनभाव से सब सुन लेते हैं ! फिर वे ‘सफल बच्चे’ वापस जाते समय इन असफल बच्चों को पुराने मकान में रह रहे उनके मां-बाप, नानी, दादा-दादी का ध्यान रखने की हिदायतें देकर, वापस बड़े शहरों या विदेशों को लौट जाते हैं।
फिर उन बड़े शहरों में रहने वाले बच्चों की, इन छोटे शहर में रह रहे मां, पिता, नानी के घर कोई सीपेज रिपेयरिंग का काम होता है तो यही ‘असफल बच्चे’ बुलाए जाते हैं। सफल बच्चों के उन वृद्ध मां-बाप के हर छोटे बड़े काम के लिए .. यह ‘असफल बच्चे’ दौड़े चले आते हैं।
कभी पेंशन, कभी किराना, कभी घर की मरम्मत, कभी पूजा…डॉक्टर के यहां लाना ले जाना कभी कुछ कभी कुछ ! जब वे ‘सफल बच्चे’ मेट्रोज के किसी एयरकंडीशंड जिम में ट्रेडमिल कर रहे होते हैं….! तब छोटे शहर के यह ‘असफल बच्चे’ उनके बूढ़े पिता का चश्मे का फ्रेम बनवाने,किसी दूकान के काउंटर पर खड़े होते हैं…और तो और इनके माता पिता के मरने पर अग्नि देकर तेरहवीं तक सारे क्रियाकर्म भी करते हैं !
सफल यह भी हो सकते थे….! इनकी प्रतिभा और परिश्रम में कोई कमी न थी….! “”मगर…इन बच्चों और उनके माता-पिता में शायद ‘जीवन दृष्टि अधिक’ थी “कि उन्होंने धन-दौलत से अधिक, “मानवीय संबंधों और सामाजिक मेल-मिलाप को आवश्यक” माना .
आपके हर छोटे-बड़े काम के लिए दौड़े आने वाले , उनका करियर सजग बच्चों से कहीं अधिक तवज्जो और सम्मान के हकदार है अपने बच्चों को “संवेदनशील” बनाईए…वे “धन कमाने की मशीन” नहीं हैं !
सफल बच्चों से किसी को कोई अड़चन नहीं है..मगर बड़े शहरों में रहने वाले, वे ‘सफल बच्चे’ अगर ‘सोना’ हैं, तो छोटे शहरों-गांवों में रहने वाले यह ‘असफल बच्चे’ किसी ‘हीरे’ से कम नहीं !