बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से की पुकार….समलैंगिक जोड़ों को भी मिले बच्चे गोद लेने का अधिकार
बाल अधिकार संरक्षण आयोग (DCPCR) दिल्ली सरकार की एक संस्था है जिसने सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दाखिल करके समलैंगिक विवाह को मान्यता देने और उन्हें बच्चा गोद लेने के अधिकार की मांग की है. आइए जानते हैं कि केंद्र सरकार का इस मामले पर क्या रूख है?
रूचि कुमारी
10 अप्रैल 2023, नई दिल्ली: दिल्ली सरकार के बाल अधिकार संरक्षण आयोग (DCPCR) ने सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दाखिल की और समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं के साथ सुनवाई की मांग की । इस याचिका में डीसीपीसीआर ने आगे कहा है कि समलैंगिक जोड़ों को भी बच्चे गोद लेने की अनुमति मिलनी चाहिए.
डीसीपीसीआर के अनुसार समलैंगिक जोड़ों को भी अभिभावक बनने का पुरा अधिकार है. इससे जुड़े काफी सारे तर्क इस याचिका में दिये गए हैं। सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों का संविधान पीठ 18 अप्रैल को इस मामले में सुनवाई करेंगे.
बच्चे के मनोवैज्ञानिक विकास पर नहीं पड़ेगा कोई असर:- DCPCR
DCPCR ने याचिका में आगे कहा है की दुनिया के 50 से ज्यादा देशों ने समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोद लेने की अनुमति दी गई है। बाकी जोड़ों की तरह समलैंगिक जोड़े भी पेरेंट्स बन सकते है, और अच्छे या बुरे अभिभावक बनने का हक रखते हैं।
जहाँ तक रही बात बच्चों कि साइकोलॉजिकल प्रोबलमस् की तो अभी तक ऐसा कोई सबूत नहीं है, किसी भी रिपोर्ट में ऐसा नहीं कहा गया है की समलैंगिक जोड़ों के साथ रहने से बच्चों के साइकोलॉजिकल डेवलपमेंट पर या मनोवैज्ञानिक विकास पर भी कोई असर पड़ेगा।
पुरानी धारणाओं पर आधारित कानून को बदला जाए
DCPCR के इस याचिका में कानूनी समस्याओं पर भी दलील पेश की गयी, और उस दलील में कहा गया है की समलैंगिक विवाह या उनको बच्चा गोद लेने की अनुमति देने से मौजूदा कानून पर ज़्यादा असर नहीं पड़ेगा।
मौजूदा कानून पुरानी धारणाओं और मान्यताओं पर आधारित है, अभी के समय से और वर्तमान युवा मानसिकता से उसका कोई लेना देना नहीं है। सबसे बड़ी और मेहत्वपूर्ण बात ये है की समलैंगिक जोड़ों में बच्चो की कस्टडी को ले कर लिंग के आधार पर कोई विवाद नहीं होगा।
आमतौर पर जैसे अलग सेक्स के जोड़े तलाक़ के वक़्त या अलग होने से पहले, अपने लिंग के आधार पर बच्चों पर हक जमाते हैं, यहाँ वो भेदभाव नहीं होगा।
समलैंगिक विवाह के विरोध में है केंद्र सरकार
सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ को 18 अप्रैल को सुनवाई करेगी। 12 मार्च को हुई सुनवाई में केंद्र सरकार ने इन शादियों को कानूनी मान्यता देने का विरोध किया था।
केंद्र ने इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में 56 पेज का हलफनामा दायर किया था। केंद्र सरकार ने बताता है कि सरकार इसके पक्ष में नहीं है।केंद्र सरकार का कहना है कि सेम सेक्स मैरिज भारतीय परंपरा के खिलाफ है।
यह पति-पत्नी और उनसे पैदा हुए बच्चों के कॉन्सेप्ट से मेल नहीं खाती। हलफनामे में समाज की वर्तमान स्थिति का भी जिक्र है। केंद्र ने कहा- अभी के समय में समाज में कई तरह की शादियों या संबंधों को अपनाया जा रहा है। हमें इस पर आपत्ति नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट में 18 अप्रैल को होगी अगली सुनवाई
केन्द्र सरकार का ये तर्क है कि सेम सेक्स मैरिज वाले लोगों का साथ में रहना अपराध नहीं है, लेकिन इसे पति-पत्नी और बच्चों की भारतीय परिवार की तरह दर्जा नहीं दिया जा सकता. फिलहाल देश में ऐसा कोई कानून नहीं है, जो समलैंगिक विवाह या लिव-इन संबंधों में बच्चे को गोद लेने की इजाजत देता हो.
इससे संबंधित याचिकाओं की अगली सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में 18 अप्रैल को होनी है. यदि सुप्रीम कोर्ट इनके पक्ष में फैसला देता है तो भारत ताइवान के बाद एशिया का दूसरा देश होगा जहां पर समलैंगिक शादियों को मान्यता मिलेगी.
फिलहाल दुनिया के 32 देशों में समलैंगिक शादी को कानूनी रूप से मान्यता दी गई है. इससे संबंधित सबसे पहला कानून नीदरलैंड ने साल 2000 में बनाया था जिसमें सेम सेक्स मैरिज को मान्यता दी गई थी.