MIT ने किया पौधों पर नैनो टेक्नोलॉजी बेस्ड रिसर्च…विस्फोटक पदार्थ डिटेक्ट करके पौधे भेज देंगे ई-मेल
MIT यानि Massachusetts Institute of Technology पौधों पर नैनो टेक्नोलॉजी बेस्ड रिसर्च कर रहा है. इसमें ऐसी तकनीक बिल्ड की है जिसमें ये पौधा अपने आसपास विस्फोटक पदार्थ को आसानी से डिटेक्ट करके ई मेल कर देगा, आइए जानते हैं कि ये तकनीकि कैसे काम करेगी?
आदर्श पांडे
पेड़ पौधे सजीव हैं या निर्जीव ? दुनिया भर के साइंटिस्ट मानते थे की पौधे निर्जीव होते हैं । फिर इस बात को गलत साबित कर दिया एक भारत के महान वैज्ञानिक ने , उस वैज्ञानिक का नाम है जगदीश चंद्र बसु. बसु जी ने कई प्रयोग किए और साल 1901 में साबित कर दिया की पौधो में जीवन है।
अब बसु जी के प्रयोग के 100 साल बाद अब वैज्ञानिक इस बात पर सोध कर रहें हैं की पौधे अब ईमेल भेज रहें हैं जी हां सही पढ़ा आपने। अब पौधे आपको ईमेल भेज के ये बता सकते हैं की उन्हे अब खाद पानी की जरूरत है कृपया जल्द से जल्द खाद दिया जाए । वैज्ञानिक पौधो को इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की तरह बनाना चाह रहें हैं ।
क्या है नई तकनीक ?
अमेरिका में एक बहुत अच्छी यूनिवर्सिटी है जिसका नाम Massachusetts Institute of Technology है। ये दुनिया के टॉप यूनिवर्सिटी में आती है । वहां के वैज्ञानिकों ने पौधो पर नैनो टेक्नोलॉजी पर बेस्ड रिसर्च कर रहें हैं ये अनोखी स्टडी 2016 की है जिसको नेचर जनरल में प्रकाशित किया गया था ।
MIT के इंजिनर्स ने पालक के पौधो पर एक रिसर्च किया जिनसे एक ऐसी तकनीक बिल्ड करने की कोशिश की गई जिनसे पालक का पौधा अपने आसपास विस्फोटक पदार्थ को आसानी से डिटेक्ट कर ले और आपको इसकी खबर ईमेल के जरिए दे ।
कैसे काम करती है ये तकनीक ?
इस तकनीक में बहुत मददगार साबित होता है एक केमिकल पदार्थ का जिसका नाम है,नाइट्रोएयरोमेटिक्स जो एक ऐसा केमिकल पदार्थ है जिसका काम आसपास के इलाकों से विस्फोटक पदार्थ के बारे में जानकारी एकत्रित करना है ।
पौधो की जड़ें पानी को सोखती है , इसी बीच जब जड़ें पानी को सोखने के प्रक्रिया में जायेगी तो पानी के साथ उनके जड़ों में नाइट्रोएरोमेटिक्स भी खींचा चला आयेगा,अब पानी और इस पदार्थ को पत्तों तक पहुंचने में तकरीबन 10 मिनट लगते है और पत्तों में वैज्ञानिकों ने एक अलग डिवाइस लगा रखा है जिसका नाम है कार्बन नैनो ट्यूब.
ये नैनो ट्यूब इतने नैनो यानी छोटे होते हैं जिनको पत्तियों के बीच के छेदों में लगाया जा सकता है । ये नैनो ट्यूब रोशनी से जुड़े सिग्नल छोड़ते हैं (Fluorescent signal), ये नॉर्मल कंडीशन में एक तरह के सिग्नल छोड़तें हैं और नाइट्रोएयरोमेटिक्स आ जाने पर अलग तरह के सिग्नल छोड़ते हैं।
इन सिग्नल को समझने के लिए पौधो से थोड़ी दूरी पर इन्फ्रारेड कैमरे लगे होते हैं । ये इन्फ्रारेड कैमरे मोबाइल की तरह एक डिवाइस से जुड़े होते हैं । जब भी ये इन्फ्रारेड कैमरा कार्बन ट्यूब के सिग्नल में बदलाव देखता है ये मोबाइल के जरिए एक ईमेल भेज देता है ।
ये तकनीक तो सामान्य रूप से बनाया गया था अनेक प्रकार के एक्सप्लोसिव को डिटेक्ट करने के लिए लेकिन वैज्ञानिकों ने बाद में समझा की इस तकनीक से अन्य भी कई चीजों का पता लगाया जा सकता है । दरअसल पौधे बहुत ही संवेदनशील होते हैं उनको जमीन में पानी की कमी, पानी का उपस्थिति जैसी चीजें भी जल्दी पता चल जाती हैं । ये तकनीक हमारे लिए वरदान साबित हो सकती है ।