देश की राजधानी दिल्ली में है बाउंसर्स की बस्ती…पहलवानों ने ऐसे सुधारी अपने गांव की स्थिति..!!
साउथ दिल्ली के असोला-फतेहपुर बेरी इलाके की पहचान पहलवानों के गांव के रुप में है, यहां के तकरीबन हर घर का एक बेटा बाउंसर ट्रेनिंग ले रहा है। इतना ही नहीं, बाउंसर्स ट्रेनिंग के बाद इन दोनों गांवों के हालात पहले से काफी बेहतर हो गए हैं।
दीपा मिश्रा
असोला और फतेहपुर गांव के नौजवानों ने अपनी कड़ी मेहनत और लगन से ना सिर्फ अपने जीवन को बेहतर किया बल्कि गांव को भी प्रगति के रेखा पर लेकर आएं। दोनों गांवों के 90 प्रतिशत से ज्यादा पुरुष यानी करीबन 50 हजार से ज्यादा युवा दिल्ली के सैकड़ों पबों में बाउंसर्स का काम कर रहे हैं।
बाउंसर्स ने सुधारी गांव की स्थिति
गरीब किसानों के युवा अब अच्छी सैलरी वाले बाउंसर्स हो गए हैं। गांवों की 90 प्रतिशत से ज्यादा पुरुष यानी करीबन 50 हजार से ज्यादा युवा दिल्ली के सैकड़ों पबों में बाउंसर्स का काम कर रहे हैं. आज के समय में वे 30 से 50 हजार तक कमा रहे है. इन युवाओं ने अपने गांव की स्थिति सुधारी है. गांव में पक्की चौड़ी सड़के हैं, बिजली-पानी की अच्छी व्यवस्था है, भरी पूरी मार्केट है.
इस इलाके में रहने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ी है जिसकी वजह से खुला खुला सा रहने वाला ये इलाका भीड़ भाड़ में तब्दील होता जा रहा है. सुबह शाम भारी जाम भी लगता है.
कैसे बना बाउंसर का गांव ?
असोला गांव के एक अखाड़े के मुख्य ट्रेनर विजय पहलवान को कहा जाता है. उन्हें असोला और फतेहपुर बेरी का पहला पहलवान माना जाता है. उन्होंने बताया कि 15 साल पहले वे एक दिन सुबह-सुबह नजदीक के आखरा गांव में कसरत करने जाते थे।
ऐसे ही एक दिन वे अखाड़े में कसरत कर ही रहे थे की तभी वहां एक पब मालिक ने उन्हें देखा और कहा कि आप और आपके तरह ही 5 लड़कों की मुझे जरूरत है जिसके लिए मैं उन्हे 10 हजार दूंगा आप उपलब्ध करा दीजिए , ताकि मैं उन बाहुबलियों को दिल्ली की एक शादी में बतौर गार्ड नियुक्त कर सकूं।
उस समय 10 हजार एक बहुत बड़ी रकम मानी जाती थी और कोई भी इस मौके को अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता था। उसी समय से दोनो गावों का बाउंसर्स का गांव बनने का सफर शुरू हो गया था ।
कैसे बने बाउंसर्स?
• अगर किसी को बाउंसर बनना है तो उसका दिमाग पूरी तरह से क्लियर होना चाहिए, अपने आने वाले भविष्य को लेकर की उसे आगे जाकर बाउंसर ही बनना हैं।
• सामने एक ही लक्ष्य और दृढ़ संकल्प होना चाहिए बाउंसर बनना।
• प्रत्येक दिन कसरत करना चाहिए।
• प्रोटीन युक्त भोजन अधिक से अधिक ग्रहण कर शरीर को मजबूत बनाना चाहिए।
• किसी भी तरह के नशे से दूर रहना चाहिए।
• व्यक्ति का कोई भी क्रिमिनल रिकार्ड नहीं होना चाहिए।
• कम से कम 12वीं पास होना चाहिए। वैसे इस प्रोफेशन में कोई शैक्षणिक योग्यता पर प्रश्नचिह्न नहीं लगता लेकिन फिर भी भविष्य में आगे बढ़ने के लिए थोड़ा बहुत शिक्षित होना चाहिए।
• प्रतिदिन 3 से 4 घंटे कड़ी कसरत करना चाहिए। आपको बता दे बाहुबली बनना बहुत मुश्किल है, ट्रेनिंग के दौरान उन्हें बाइक और ट्रैक्टर तक उठाना पड़ता है। साथ ही योगा क्लासेस में भी वक्त बिताना पड़ता है।
• बाउंसर को एक दिन में 4 लीटर दूध और 2 किलो दही का सेवन करना चाहिए।
बाउंसर्स को कहां मिलती है जाब
बदलते समय के साथ नाइट लाइफ का चलन भी बढ़ रहा हैं इसलिए दिल्ली और एनसीआर इलाको के पब्स में सिक्योरिटी की जरूरत पड़ती हैं, जिसके लिए बाउंसर्स को हायर किया जाता हैं। इसी समय की मांग को गंभीरता से देखते हुए, इन दोनों गांवों के बाउंसर्स को एक मौका मिला रोजगार का जिसमे वहा के लड़के जी जान लगा कर काम करने लगे।
शुरू से ही गांव के लड़के अपने लक्ष्य के प्रति एकागृत रहने लगे। जिस वजह से हर साल दोनो गावों से एक से बढ़कर एक बाउंसर्स निकल रहे हैं और ना सिर्फ दिल्ली में बल्कि बाकी शहरो में भी ऐसे बाहुबलियो की काफी डिमांड हैं और इन बाहुबलियों के लिए उज्जवल भविष्य हैं।