दिल्ली के श्रद्धा मर्डर केस से लीजिए सबक…लिव-इन में रहते हैं तो जान लीजिए अपना क़ानूनी हक़..!!
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2006 में एक केस में फैसला देते हुए कहा था कि, एडल्ट होने के बाद कोई भी व्यक्ति किसी के भी साथ रहने या शादी करने के लिए आजाद है। आफताब और श्रद्धा कपल की तरह लिव-इन में रहते थे. दोनों के बीच अक्सर झगड़ा होता था. अगर समय रहते श्रद्धा अपने अधिकारों का प्रयोग कर लेती तो शायद आज वह जिंदा होती. आइए जानते हैं लिव-इन पर कानून क्या कहता है?
नई दिल्ली. लिव-इन में रहने का चलन तेजी से बढ़ा है लेकिन ये जानलेवा भी हो सकता है. दिल्ली के महरौली इलाके में हुए श्रद्धा मर्डर केस से देशभर में सनसनी फैल गई है. आरोपी आफताब ने श्रद्धा के 35 टुकड़े करके फ्रिज में रख दिया था दिल्ली पुलिस इस मामले की छानबीन कर रही है।
क्या है लिव-इन और कहां से हुई शुरूआत ?
लिव-इन-रिलेशनशिप का अर्थ होता है कोई भी बालिग युवक और युवती अपनी मर्जी से बिना शादी किए हुए साथ रह सकते हैं. इसकी शुरुआत विदेशों में हुई थी। एडम और ईव बिना शादी के एक साथ रहते थे.
ईसाइयों के पवित्र ग्रंथ बाइबिल में इस कपल का जिक्र है। भारत के दिल्ली-मुंबई जैसे बड़े शहरों में लिव-इन अब बहुत आम हो चुका है. छोटे शहरों में भी अब युवा लिव-इन में रहने लगा है.
क्या कहता है लिव-इन-रिलेशनशिप पर भारतीय कानून?
सुप्रीम कोर्ट ने एक केस की सुनवाई करते हुए कहा था कि बालिग होने के बाद कोई भी युवक या युवती बिना शादी के साथ रहने के लिए स्वतंत्र है. ये अधिकार देश का संविधान भी देता है।
घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की धारा 2(f) के अनुसार लिव-इन-रिलेशन में रहने वाली महिला भी इस कानून का सहारा ले सकती है.
साथ में रहने वाली युवती के साथ अगर युवक हिंसा करता है तो घरेलू हिंसा एक्ट की धारा-12 के तहत उस पर केस दर्ज करा सकती है। वहीें इस कानून की धारा-18 के तहत लड़की अपने पार्टनर से प्रोटेक्शन ऑर्डर की मांग भी कर सकती है।
संसद से नहीं बना है कोई क़ानून
आम तौर पर लिव-इन में भारतीय विवाह अधिनियम के कानून ही लागू होते हैं. देश की संसद की तरफ से कोई लिव-इन रिलेशनशिप पर कानून नहीं बनाया है।
केवल न्यायपालिका की ओर से इस तरह के रिश्तों को कानूनी मान्यता दी गई है. लिव-इन कपल से पैदा हुए बच्चे को सुरक्षा का पूरा कानूनी अधिकार मिलता है.
लिव-इन में रहने वाली युवती को भरण पोषण का अधिकार होता है. ये अधिकार उनको सीआरपीसी की धारा-125 के तहत मिलता है.
इस धारा के तहत शादीशुदा महिलाओं को भरण-पोषण का अधिकार दिलाता है, उसी तरह से इसमें लिव-इन वाली महिलाओं को भी भरण-पोषण का अधिकार मिलता है।
बच्चे को मिलता है पिता की संपत्ति में अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने बालसुब्रमण्यम Vs सुरत्तयन मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि लिव इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चे को पिता की संपत्ति में अधिकार मिलता है. ये अधिकार उनको धारा-114 के तहत मिलता है.
शादीशुदा होने पर लिव-इन में रहना अपराध
शादीशुदा युवक या युवती बिना तलाक लिए लिव-इन में रहते हैं तो ये अपराध है. IPC की धारा-494 के तहत इसे अपराध माना जाएगा और उसके लिए सजा हो सकती है.
पति या पत्नी के जिंदा रहते हुए या बगैर तलाक लिए दोबारा शादी करने पर या लिव-इन पर रहने पर 7 साल तक की जेल या जुर्माना या फिर दोनों की सजा मिल सकती है।
लिव-इन कपल बच्चा नहीं ले सकता गोद
लिव-इन में रहने वाले कपल कानूनी तौर पर किसी बच्चे को गोद नहीं ले सकते. वे अपने बच्चे को पैदा कर सकते हैं लेकिन बच्चे को गोद नहीं ले सकते।
‘लिव-इन’ में रहने वाली महिला नहीं लगा सकती रेप का आरोप?
कुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के एक केस पर फैसला सुनाते हुए कहा कि लिव-इन में रहने वाली महिला पुरुष पर रेप का आरोप नहीं लगा सकती.
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा कि अगर लंबे समय से दो बालिग लोग साथ रह रहे हैं. दोनों के बीच कभी अनबन होती है तो वह लड़की, लड़के पर बलात्कार का आरोप नहीं लगा सकती.
आदिवासियों में वर्षों से है लिव-इन की परंपरा
शहरों में भले ही अब लिव-इन की बात होती हो लेकिन देश के कई इलाकों में बसे आदिवासियों के बीच बिना शादी के साथ रहने की बहुत पुरानी परंपरा है. झारखंड में ‘ढुकू’ तो छत्तीसगढ़ के बस्तर में इसे पैठू कहते हैं।
यहां बिना शादी के लड़के-लड़कियां साथ में रहते हैं और अगर लड़की मां बन जाती है तो उसे गलत निगाह से नहीं देखा जाता उसको आदिवासी समाज में पूरा सम्मान मिलता है।
लिव-इन-रिलेशनशिप में दो बालिग यानी एडल्ट आपसी सहमति से एक साथ रहते हैं। उनका रिश्ता पति-पत्नी की तरह होता है, लेकिन वो दोनों एक-दूसरे के साथ शादी के बंधन में नहीं बंधे होते हैं।