LGBTQ कम्युनिटी को पहचान और सम्मान देने को कब होंगे तैयार…जानिए क्या हैं देश के युवाओं के विचार?
LGBTQ के बारे में हमने LGBT जैसे मुद्दे पर दिल्ली एनसीआर में रहने वाले कुछ युवाओं से बात की. यूथ की आवाज हमारा एक ऐसा सिगमेंट है जिस पर हम विभिन्न मुद्दों पर देश के युवाओं के युवाओं से डिस्कस करते हैं, उनके विचारों को निस्पक्ष भाव से अपने इस मंच पर प्रकाशित करते हैं.
“यूथ की आवाज” की इस पहली कड़ी में हमने होमोसेक्सुअलटी, LGBT जैसे मुद्दे पर दिल्ली एनसीआर में रहने वाले कुछ युवाओं से बात की.
मिस्टर A ने कहा कि प्यार का कोई जेंडर नहीं होता, प्यार तो पवित्र होता है, ये किसी भी तरह के लोगों के बीच हो सकता है, हम 21 वीं सदी के डिजिटल युग में रह रहे हैं लेकिन आज भी सोसायटी LGBT कम्युनिटी के प्रति संवेदनशील नहीं है.
मिस B ने कहा कि वे इस बात से कुछ हद तक सहमत है पर पूरी तरह से नहीं क्योंकि दिल्ली मुंबई जैसे मेट्रो सिटीज में अब इस समुदाय के लोगों खुले दिल से अपनाया जा रहा है लेकिन गांवों कस्बों में आज भी ये बड़ी समस्या है.
मिस्टर C ने कहा कि हर साल जून में LGBT ग्रुप के लोग प्राइड मंथ मनाते हैं. वैसे तो इसकी शुरुआत अमेरिका से 28 जून, 1969 को हुई थी जब इन लोगों पर बड़े पैमाने पर पुलिसिया अत्याचार हुआ था. उसी हिंसा के दिन की याद में ‘प्राइड मंथ’ मनाते हैं। हुई थी लेकिन अब ये कई देशों में मनाया जाता है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी इसे अपना समर्थन दिया था। अमेरिकी प्रेसीडेंट जो बाइडन ने भी ‘प्राइड मंथ’ को सपोर्ट किया है। इंडिया में कुछ पालिटिकल पार्टीज इन सबके सख्त विरोध में है जो सही नहीं है.
मिस D ने कहा कि पहले समलैंगिकों को कानूनी अधिकार नहीं मिले हुए थे। समलैंगिकों पर पुलिस अत्याचार करती थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस क्रिमिनल ऑफेंस नहीं माना तब जाकर कानूनी तौर पर भले ही थोड़ी बहुत राहत मिली हो लेकिन सामाजिक और राजनीतिक तौर पर अभी भी बहुत अधिक तिरस्कार के सुर सुनने को मिलते हैं. ऐसे में क्या LGBT कम्युनिटी के लोगों को कानूनी तौर पर मैरिज का राइट मिलेगा या नहीं ये बड़ा सवाल है