नोएडा. डिजिटल इंडिया के दौर में किसी डिजिटल रेपिस्ट को सज़ा मिलते शायद ही आपने सुना हो लेकिन गौतम बुद्ध नगर ज़िले की एक कोर्ट ने 65 साल के बुजुर्ग को ‘डिजिटल रेप’ का दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है. क्या होता है ‘डिजिटल रेप’ और इससे जुड़े क़ानून ? आइए जानते हैं.
कौन है ‘डिजिटल रेप’ का आरोपी?
पश्चिम बंगाल का रहने अकबर अली 2019 में नोएडा सेक्टर 45 के पास रहने वाली अपनी बेटी से मिलने आया था. पीड़ित बच्ची उसके पड़ोसी की बेटी थी जिसके साथ इस शख्स ने रेप की कोशिश की वारदात को अंजाम दिया था. नाबालिग लड़की के पैरेंट्स ने पुलिस में उसके खिलाफ FIR दर्ज करवाई.
FIR के मुताबिक, अकबर अली ने पड़ोस में रहने वाली नाबालिग लड़की को कैंडी दिलाने के बहाने अपने घर ले गया औऱ डिजिटल रेप किया.
वारदात के बाद बच्ची बेहद डर गई थी और रोते-रोते अपने घर वापस आई थी. उसने अपनी मां को सारी बातें बता दे कि अकबर अली ने उसके साथ क्या-क्या किया था. इसके बाद पुलिस ने मेडिकल टेस्ट कराया जिसमें ‘डिजिटल रेप’ की पुष्टि हुई थी. उसी दिन आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया.
डॉक्टर, जांच अधिकारी, पीड़िता के माता-पिता और पड़ोसियों ने आरोपी के खिलाफ कोर्ट में गवाही दी थी. मेडिकल रिपोर्ट और 8 गवाहों को सुनने के बाद, कोर्ट ने अकबर अली को उम्र कैद की सजा सुनाई. साथ ही कोर्ट ने दोषी पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है.
दोषी के खिलाफ कोर्ट ने पॉक्सो (POSCO) एक्ट और भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 के तहत सजा सुनाई है.
क्या होता है ‘डिजिटल रेप’?
‘डिजिटल रेप’ डिजिटल या वर्चुअल रूप से किया गया रेप नहीं है. शब्दों से भले ही लगे कि यह एक वर्चुअल रेप है लेकिन इसका वास्तविक अर्थ बेहद अलग है.
जब अपराधी जबरन महिला के प्राइवेट पार्ट में हाथ या पैर की अंगुलियां या कोई दूसरी वस्तु डालने की कोशिश करता है तो इसे डिजिटल रेप कहा जाता है.
‘डिजिटल रेप’ शब्द पहली बार साल 2013 में सामने आया था. इस अपराध को 2013 के आपराधिक कानून संशोधन के जरिए IPC यानि भारतीय दंड संहिता में जोड़ा गया.
बाद में इसे POCSO अधिनियम की एक अलग धारा के तहत नए बलात्कार कानूनों में शामिल किया गया था. साल 2013 से पहले, भारत में ऐसा कोई कानून नहीं था जो ‘डिजिटल रेप’ की बात करता हो.
दिसंबर 2012 तक, ‘डिजिटल रेप’ को छेड़छाड़ माना जाता था और इसे बलात्कार की श्रेणी में नहीं रखा जाता था. निर्भया गैंगरेप केस के बाद संसद में रेप से जुड़े कानून में बदलाव किया गया था. इसके बाद धारा 375 और पॉक्सो अधिनियम के तहत डिजिटल रेप को भी शामिल किया गया था.