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नहीं रहे किसानों के मसीहा और हरित क्रांति के सूत्रधार…कृषि आपदा और कृषि प्रगति के बारे ये थे स्वामीनाथन के विचार?

नहीं रहे हरित क्रांति के नायक और किसानों के मसीहा एमएस स्वामीनाथन. उन्होंने 98 साल की उम्र में आखिरी सांस ली. पूरा देश उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दे रहा है. कभी देश को अकाल और भुखमरी से उबारने वाले स्वामीनाथन ने कृषि आपदा और किसान प्रगति के बारे में क्या कहा था, आइए जानते हैं

नहीं रहे हरित क्रांति के नायक डॉ. एमएस स्वामीनाथन. खेती किसानी हमारे देश की आत्मा है, किसान हमारे अन्नदाता है. कृषि और किसानों के बारे में अगर किसी का सबसे अधिक योगदान रहा है तो वे है डॉ. एमएस स्वामीनाथन.

आधुनिक भारत में आधुनिक कृषि के सूत्रधार थे स्वामीनाथन

कहते हैं कि देश ने हमें क्या कहा दिया, ये कहने से पहले हमें ये सोचना चाहिए कि हमने देश को क्या दिया. एम एस स्वामीनाथन भी एक ऐसे महान इंसान थे जिन्होंने देश को बहुत कुछ दिया है.

अंग्रेजों ने सोने की देश कहे जाने वाले हमारे देश को लूट लिया था. जब भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली, तब देश की हालत ठीक नहीं थी, अंग्रेजों ने हमारे देश को खोखला कर दिया था.

देशवासियों के पास न तो पर्याप्त अन्न था, न पीने को साफ पानी। किसानों के हालात भी दयनीय थी. सिंचाई की व्यवस्था भी बेहद खराब थी. अनाज के लिए हम दूसरे देशों पर निर्भर थे.

ऐसे में जब बंगाल में भीषण अकाल पड़ा तो हजारो लोग इससे बुरी तरह से प्रभावित हुए, सैकड़ों लोग भूग से मर गए. देश में भुखमरी और खाद्यान्न संकट बढ़ गया, ऐसे में एम एस स्वामीनाथन ने देश को इस संकट से उबारा.

उन्होंने धान की ज्यादा उपज देने वाली किस्मों का विकास किया. इससे किसानों को चावल की अधिक पैदावार करने का रास्ता मिला. दरअसल यहीं से हरित क्रांति की नींव पड़ी थी।

इसके बाद 60 के दशक में जब देश में अकाल पड़ा तो उन्होंने कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए हाइब्रिड बीज आयात करने का सुझाव दिया जिसे तत्कालीन सरकार ने माना था.

इसके बाद हरित क्रांति के तहत देश में कृषि उत्पादन बढ़ने लगा, खेती-किसानी और सिंचाई के लिए नई नई योजनाएं बनीं. सरकार ने खाद पर सब्सिडी देने की शुरूआत किया और इस तरह से धीरे धीरे भारत अनाज उत्पादन में आज न सिर्फ आत्मनिर्भर है बल्कि चावल और गेहूं के उत्पादन में विश्व के शीर्ष देशों में से एक है। इस तरह से एम एस स्वामीनाथन को आधुनिक भारत में आधुनिक कृषि के सूत्रधार के रुप में भी जाना जाता है.

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कृषि आपदा का युग या कृषि प्रगति का युग

आज जिस तरह से जल, जंगल और ज़मीन पर विकास के नाम पर कब्जा हो रहा है उससे विकास नहीं विनाश होगा. जिस तरह से देश के कई इलाकों में भूमिगत जल का स्तर लगातर बढ़ रहा है. उर्वर भूमि जिस तरह से बंजर भूमि में बदल रही है.ये सब प्रमाण है कि हम खेती किसानी के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं क्योंकि हम मिट्टी और भूजल का जरूरत से ज्यादा दोहन कर रहे हैं. इससे हम कृषि आपदा के युग में आ गए हैं.
किसान परेशान है, किसानों को उनकी फसल की लागत नहीं मिल पा रही है. ये सब बातें स्वामीनाथन ने वाराणसी में 1968 में हुई विज्ञान कांग्रेस में कही थी. उन्होंने एक तरह से देश-प्रदेश की सरकारों को आगाह किया था।
वैसे तो सरकार किसानों के लिए, खेती-किसानी के लिए नई नई योजनाएं बना रही हैं ताकि कृषि प्रगति के युग में हम सब रहें लेकिन आत्महत्या करते किसान, बिचौलिए के चक्र में फंसे किसान, प्याज-टमाटर को सड़कों पर फेंकने को मजबूर किसान, सड़कों पर अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन करने किसान बता रहे हैं कि वे कृषि आपदा के युग में रह रहे हैं. 

अरुणेश कुमार द्विवेदी

Bureau Report, YT News

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