मुलायम सिंह यादव का जन्म 21 नवंबर 1939 को उत्तर प्रदेश के सैफई में हुआ था। मुलायम सिंह यादव तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं जबकि एक बार भारत के रक्षा मंत्री का पद संभाल चुके हैं।
पढ़े-लिखे नेता थे मुलायम सिंह यादव
मुलायम सिंह यादव मूल रुप से पहलवान थे, लेकिन वे अपनी पढ़ाई-लिखाई के प्रति भी बेहद सचेत थे. उनके पास बीए, बीटी और एमए की डिग्रियां थी। उन्होंने विधायक बनने के बाद अपनी एमए की पढ़ाई पूरी की थी.
अपनी पढ़ाई के बलबूत ही वे अध्यापक बने. उसके बाद वे राजनीति में आए. सियासत में व्यस्त रहने के बाद भी वे पहलवानी से प्यार करते रहे, उन्होंने खुद पहलवानी नहीं किया लेकिन सैफई में दंगलों का आयोजन कराते रहे.
मुलायम सिंह का सियासी सफर
मुलायम सिंह के सियासी टैलेंट को सबसे पहले प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के एक नेता नाथू सिंह ने पहचाना था. उन्होेंने 1967 के चुनाव में जसवंतनगर विधानसभा सीट का टिकट दिलवाया था, जिसमें वे जीते भी थे.
इस तरह केवल 28 साल की उम्र में वे विधायक बन गए थे. उस समय वे प्रदेश के इतिहास में सबसे कम उम्र के विधायक माने जाते थे.
जब 1977 में उत्तर प्रदेश में रामनरेश यादव के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी, तो मुलायम सिंह को सहकारिता मंत्री बनाया गया. चौधरी चरण सिंह मुलायम सिंह को अपना राजनीतिक वारिस और अपने बेटे अजीत सिंह को अपना क़ानूनी वारिस कहा करते थे.
मुलायम सिंह यादव पहली बार 1967 में सांसद बने थे और फिर 1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे।
वीपी सिंह की 1990 में सरकार गिरने के बाद उन्होंने चन्द्रशेखर के जनता दल का दामन थाम लिया और कांग्रेस के सपोर्ट से मुख्यमंत्री बने रहे लेकिन अप्रैल 1991 में कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया जिसकी वजह से उनकी सरकार गिर गई थी।
इसके बाद सियासी समीकरण बदले और मुलायम सिंह यादव ने यूपी में अपना दम-खम दिखाया. वे एक बार फिर 1993 से 1995 और 2003 से 2007 तक देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
मुलायम सिंह यादव जब यूपी के मुख्यमंत्री थे तब बाबरी मस्जिद की घटना हुई थी. उन्होंने कारसेवकों पर पहले लाठीचार्ज करने का आदेश दिया और फिर गोलियाँ चलाने का आदेश भी दिया जिसमें एक दर्जन से अधिक कार सेवक मारे गए.
इस घटना के बाद से ही बीजेपी के समर्थक मुलायम सिंह यादव को ‘मौलाना मुलायम’ कह कर पुकारने लगे.
मुलायम सिंह यादव 1996 में यूनाइटेड फ़्रंट की सरकार में रक्षा मंत्री बने. प्रधानमंत्री के पद से देवेगौड़ा के इस्तीफ़ा देने के बाद वो भारत के प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए.
लालू प्रसाद यादव और शरद यादव ने उनका समर्थन नहीं किया यहां तक कि चंद्रबाबू नायडू ने भी पीएम बनने की उनकी राह में रोड़े अटकाए जिसकी वजह से पीएम नहीं बन सके.