कैसे बदल रहे हैं हालात…जानिए एक कवि के जज़्बात…!!
कहते हैं जहां न जाए रवि, वहां जाए कवि. साहित्यकार अपने सोच के सागर में डुबकी लगाकर अपने जज्बातों को अपने कलम में उतार देता है. पेश है आजकल के हालत पर एक कवि की रचना
सुशील कुसुमाकर
हालात
सब बदल रहा….
बह रही हवा बदलाव की….।
फिर भी, शहर में ख़ामोशी
फुसफुसाहट दरबारियों में,
कुछ होने की आशंका
कुछ खोने का अंदेशा,
हर कोई हैरान-परेशान सा
हर जगह डर का मडराता साया।
एक बेचैनी-सी हर किसी में….!
लेकिन, वह बजा रहा बांसुरी चैन की
अपने ख्वाबगाह में…!!
और हम संवेदनशील,
जागरूक और बुद्धिजीवी
कुछ बोल नहीं रहे
जुंबिश तक नहीं कर रहे,
हम सोच नहीं रहे
गलत क्या…? और सही क्या…?
हम देख नहीं रहे
क्या हकीकत…? और क्या फसाना…?
हमने अपने फायदे के लिए
झुक कर उनसे कर लिए समझौते
या फिर बिक गए
उनके दिए दामों के एवज में।
हम लगे हुए
हर कीमत पर खुद को
बचाए बनाए रखने में…।
हम अभी भी निकल नहीं पाए
उसके दिखाए झूठे सपनों से,
हम अभी भी फंसे हुए
उसकी माया जाल में।
हम दिन भर कुर्सी में धंसे और
रात भर घर के बिस्तर पर पड़े
केवल ले रहे सांसें
हर वक्त…! हर पल…!!
और जी रहे
ज़िंदा लाश की तरह…!!!