देशविचार/विश्लेषण

President or Prime Minister : क्या यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका की तरह हो सकता है यूनाइटेड स्टेट ऑफ इंडिया?

Keshav Jha 

07.08.22 8.15 pm

देश को द्रोपदी मुर्मू के रूप में पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति मिली है तो वहीं जाट-ओबीसी समुदाय से जगदीप धनखड़ पहले उपराष्ट्रपति बने हैं. अक्सर देश के राष्ट्रपति को रबड़ स्टांप माना जाता है. ऐसे में सवाल उठता है राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री, भारत जैसे देश के लिए कौन सी बेहतर शासन प्रणाली है?

संसदीय शासन व्यवस्था के फायदे-नुकसान

संविधान सभा में काफी चर्चा और बहस के बाद शासन की संसदीय व्यवस्था चुनी गई थी । संविधान की प्रस्तावना देश की मूल भावना को व्यक्त करती है. केंद्र और राज्य दोनों के शासन लिए संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया। संविधान के अनुच्छेद 74 और 75 के अंतर्गत केंद्र में तथा अनुच्छेद 163 और 164 के अंतर्गत राज्यों में संसदीय प्रणाली का ज़िक्र है. केंद्र और राज्यों के बीच शक्तिओं का बंटवारा भी किया गया है।

भारत में शासन की संसदीय प्रणाली इसलिए लागू की गई थी कि सत्ता की ज़िम्मेदारी और और जवाबदेही को तय किया जा सके लेकिन अब शासन व्यवस्था में ये लगभग नदारद है. राजनीतिक दलों का एक मात्र उद्देश्य सत्ता प्राप्त करना है। चाहे संसद हो या राज्यों की विधानसभा काम न के बराबर होता है और हंगामा पूरा होता है. अक्सर सदन की कार्यवाही बाधित और स्थगित की जाती है। न कोई चर्चा, न कोई सार्थक बहस, सिर्फ हंगामा खड़ा करना नेताओं का मकसद बन गया है इसलिए अब विशेषज्ञों द्वारा शासन के लिए राष्ट्रपति प्रणाली को अपनाए जाने की मांग की जाने लगी है।

भारत की संसदीय व्यवस्था में राष्ट्रपति सिर्फ नाम के लिए है जबकि प्रधानमंत्री के पास वास्तविक शक्तियां होती हैं। संविधान के अनुसार तो राष्ट्र का सर्वोच्च प्रधान राष्ट्रपति होता है, वह देश का प्रथम नागरिक भी होता है लेकिन सच्चाई यह है कि देश की शासन व्यवस्था का सर्वेसर्वा प्रधानमंत्री होता है। भारत की संसदीय व्यवस्था में राष्ट्रपति नाममात्र की कार्यपालिका है तथा प्रधानमंत्री तथा उसका मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यपालिका है।

संसदीय शासन व्यवस्था का एक नुकसान यह भी है सरकार अपने निर्धारित कार्यकाल 5 साल से पहले भी बर्खास्त हो सकता है. ऐसा तब होता है जब सरकार लोकसभा में विश्वासमत खो देती है. इसके अलावा कई बार ऐसे बाहुबली और आपराधिक बैकग्राउंड धन बल के आधार पर संसद में पहुंच जाते हैं जिनके पास न तो शासन व्यवस्था का ज्ञान होता है और न ही उनको देश को विकसित करने का कोई नीति और नियति होती है. ऐसे लोग अपना और अपनों के लिए राजनीति के माध्यम से अकूत संपत्ति भ्रष्टाचार के जरिए इकट्ठा करते हैं. परिवारवाद को बढ़ावा देते हैं.

गठबंधन की गांठ भी अक्सर संसदीय शासन व्यवस्था में दिखाई देती है जिससे सरकारें स्थिर नहीं रह पाती. गठबंधन में शामिल दलों को बीच खींच-तान होती है, अगर किसी दल ने अपना समर्थन वापस ले लिया तो सरकार के गिरने का संकट भी लगातार बना रहता है. तभी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने कहा था कि गठबंधन सरकार चलाना सिर में कांटो के ताज को रखा है।

राष्ट्रपति शासन प्रणाली के फायदे-नुकसान

इस व्यवस्था में राष्ट्रपति ही शासन प्रणाली का सर्वेसर्वा होता है. उसी के पास देश को चलाने की सभी शक्तियां होती है. उसकी ज़िम्मेदारी और जवाबदेही तय होती है. इस सिस्टम में राज्य का मुखिया तथा सरकार का मुखिया एक ही व्यक्ति होते हैं।

प्रेसीडेंट सिस्टम के फायदों की बात करें तो सबसे बड़ा फायदा सरकार के स्थायित्व का है कार्यपालिका अपनी नीतियों के लिये विधायिका के प्रति उत्तरदायी नहीं होती है, जिसकी वजह से कार्यपालिका अपना निर्धारित कार्यकाल पूरा करती है।

इसके अलावा कार्यपालिका, विधायिका तथा न्यायपालिका में शक्तियों का और जिम्मेदारियों साफ तौर उल्लेख होता है और ये तीनों स्तंभ एक दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करते, परिणामस्वरूप सब लोग अपना काम सही तरीके से करते हैं. इस शासन व्यवस्था में कार्यपालिका के सदस्यों का चुनाव लोकप्रियता, धनबल व बाहुबल के आधार पर नहीं बल्कि विशेषज्ञता के आधार पर होता है, जिससे राजनीति का अपराधीकरण नहीं हो पाता. इससे भ्रष्टाचार में लगाम भी लग जाती है। गठबंधन जैसी मज़बूरियां भी इस सिस्टम में नहीं होती.

इस सिस्टम का नुकसान ये हो सकता है कि  कार्यपालिका के सदस्य सीधे जनता के द्वारा नहीं चुने जाते हैं तो पूरे देश के लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता । राष्ट्रपति ही अपने मुताबिक अपने सहयोगियों का चुनाव करता है तो शासन में तानाशाही और निरंकुशता आ सकती है.

राष्ट्रपति महात्मा गांधी संसदीय शासन व्यवस्था के समर्थक नहीं थे क्योंकि उनका मानना था कि ये सिस्टम अंग्रेजों की गुलामी का प्रतीक है. वे राष्ट्रपति प्रणाली को बेहतर मानते थे वहीं संविधान सभा के अध्यक्ष बी आर अंबेडकर भी इस विषय पर महात्मा गांधी से पूरी तरह से सहमत थे. अंबेडकर ने भी संसदीय प्रणाली की तुलना में राष्ट्रपति प्रणाली को बेहतर मनाया था क्योंकि ये जनता के प्रति अधिक जवाबदेह और जिम्मेदार होती है।

वहीं देश के पहले गृहमंत्री सरदार पटेल ने कहा था कि हमारा समाज ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में घुल मिल गई है इसीलिए इसे अपनाया जा रहा है। वैसे 1975 में इंदिरा गांधी ने और साल 2000 में अटल बिहारी बाजपेई ने भी राष्ट्रपति शासन प्रणाली लाने की कोशिश की थी लेकिन विपक्ष के भारी विरोध के ऐसा हो नहीं पाया।

विविधिता में एकता हमारे देश की पहचान है. क्षेत्रीय पार्टियों की भी अहम भूमिका है ऐसे में यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका की तरह यहां पर यूनाइटेड स्टेट ऑफ इंडिया हो पाना मुश्किल दिखाई दे रहा है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

Bureau Report, YT News

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