हिंदी देश की आन-बान और शान है बस हमें इसे अपने स्वाभिमान से जोड़ना होगा- अब्दुल बिस्मिल्लाह
हिंदी को राजभाषा से राष्ट्रभाषा बनाने की बातें हर साल हिंदी दिवस के मौके पर की जाती हैं लेकिन ऐसा अभी तक हो नहीं पाया. दक्षिण के राज्यों में हिंदी का विरोध और हिंदी पर होने वाली सियासत इसे राष्ट्र भाषा बनने नहीं दे रही. ऐसे में हिंदी कैसे देश के जन-जन की भाषा बनेगी. इस पर हमने जामिया के हिंदी विभाग के पूर्व प्रोफेसर और साहित्यकार अब्दुल बिस्मिल्लाह से ख़ास बातचीत की. पेश है बातचीत के प्रमुख अंश
हिंदी को राजभाषा से भारत की राष्ट्रभाषा बनाने को लेकर लंबे समय से कोशिश की जाती रही है लेकिन अभी तक कोई ठोस सफलता नहीं मिली. इस बारे में और हिंदी दिवस के अवसर पर हमने बात की जामिया के हिंदी विभाग के पूर्व प्रोफेसर और वरिष्ठ साहित्यकार अब्दुल बिस्मिल्लाह से.
आज हिंदी दिवस मनाया जा रहा है. पहली बार इसे 14 सितंबर 1953 को मनाया गया था तबसे लेकर अब तक आप हिंदी की यात्रा को कैसे देखते है ?
आजादी के बाद यह प्रश्न था कि हमारे देश में हिंदी की क्या स्थिति होनी चाहिए तो संविधान सभा में तय हुआ कि हिंदी देश की राजभाषा होनी चाहिए. हिंदी का विकास लगातार होता जा रहा है. अगर आप 1953 से लेकर 2023 तक की हिंदी की यात्रा के बारे में बात करें तो मैं इस यात्रा को एक सर्वज्ञ भाषा मॉडल के रूप में देखता हूँ, जिसका मकसद है देशभर में हिंदी को जन-जन की भाषा बनाना. अभी तक ये मकसद पूरा तो नहीं हुआ क्योंकि साउथ के राज्य हिंदी भाषा को लेकर सहज नहीं है।
हिंदी राजभाषा तो है लेकिन राष्ट्रभाषा क्यों नहीं बन पा रही है ?
राष्ट्रभाषा बनने की प्रक्रिया में कई चुनौतियाँ होती हैं, जैसे कि भाषा की स्वीकृति, भाषा का प्रयोग, और भाषा के आधुनिकीकरण. अपने देश के हिंदी भाषी राज्यों में तो कोई समस्या नहीं है लेकिन दक्षिण के राज्यों में हिंदी का विरोध एक बहुत बड़ा सामाजिक और सियासी मुद्दा है.
राजनीति इस प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकती है, क्योंकि निर्णयकर्ताओं को भाषा के स्वीकृति और समर्थन को लेकर निर्णय लेना होता है। इसके अलावा, भाषा को समाज में स्थापित करने, शिक्षा में उपयोग करने, और सामाजिक आर्थिक विकास के साथ जोड़ने के लिए राजनीतिक समर्थन भी महत्वपूर्ण हो सकता है।
ये भी पढ़ें , भारत के अलावा हिंदी इस देश की भी है राजभाषा…जानें हिंदी ने विश्वभर में कैसे सम्मान पाया?
हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए सभी का सहयोग, समर्थन और योगदान जरूरी है. भारत विविध भाषाओं का देश है यदि उत्तर भारत के राज्य दक्षिण भारत के राज्यों की भाषाएं जाने, समझे और सीखें वहीं दक्षिण भारत के राज्य हिंदी को सीखें तो बात बन जाएगी.
ऐसा नहीं है कि मैं इन भाषाओं में पारंगत होने की बात कह रहा हूं लेकिन सामान्य तौर पर लिखना पढ़ना और समझना जरूरी है ताकि सब जगह के लोग भाषा को लेकर सहज रहें और स्वाभाविक तौर पर उसे अपनाएं वहीं भाषा पर होने वाली सियासत भी बंद हो यदि ऐसा हो पाएगा तो हिंदी राष्ट्र भाषा बन सकेगी
हिंदी के प्रचार और प्रसार को बढ़ाने के लिए सयुक्त राष्ट्र संग में हिंदी को मान्यता प्राप्त अधिकारी दर्जा दिलाने की कोशिश कर रहे हैं, आपको लगता है ये कोशिश कब कामयाब होगी?
विश्व भाषा का दर्जा किस आधार पर मिलता है और किन देश को मिला है ये जानना जरूरी है. फिलहाल संयुक्त राष्ट्र की छह आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त भाषाएं हैं। ये अरबी, चीनी, फ्रेंच, अंग्रेजी, रूसी और स्पेनिश हैं।
जबकि नई प्रस्तावित भाषाएं बंगाली, हिंदी, पुर्तगाली और तुर्की है. हिंदी को विश्व भाषा का दर्जा मिल जाए उसके लिए हमने क्या किया? हम दूसरे देशों में जाकर हिंदी सम्मेलन कर रहे है और इससे कुछ लोग कुछ लाइनें हिंदी में बोल देते हैं और हम समझते हैं कि हिंदी विश्वभाषा बन गई.
हिंदी भाषा को विश्वभाषा बनाने के लिए भारत सरकार को ठोस प्रयास करना होगा. कूटनीतिक तौर पर जब भारत को सफलता मिलेगी तभी हिंदी संयुक्त राष्ट्र के साथ साथ पूरे विश्व की भाषा बन सकेगी.
हम अक्सर देखते हैं कि हिंदी दिवस के दिन हर साल बड़ी बड़ी बाते होती हैं और इसके बाद सब भूल जाते हैं तो क्या इस तरह से हिंदी की दशा और दिशा में क्या सुधार आएगा ? हिंदी का भविष्य आपको क्या नज़र आता है?
जब तक लोग हिंदी बोलने में शर्म नहीं गर्व महसूस करेंगे हिंदी की दशा और दिशा बेहतर से बेहतरीन हो जाएगी. जिस दिन अंग्रेजी वाली मानसिकता से हम बाहर निकल आएंगे हिंदी को बहुत लाभ होगा. हिंदी का भविष्य उज्जवल होगा जब हिंदी वालों को रोजगार मिलेगा. हिंदी के लेखकों को अंग्रेजी के लेखकों की तरह सम्मान मिलेगा. हिंदी देश की आन-बान और शान है बस हमें इसे अपने स्वाभिमान से जोड़ना होगा.
इस इंटरव्यु का वीडियो देखने के लिए क्लिक करें