रक्षाबंधन स्पेशल- क्या है रक्षाबंधन से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं, क्यों सिर्फ राखी के दिन खुलता है ये मंदिर?
रश्मि शंकर
- भाई-बहन के प्रेम और रक्षा का प्रतीक है रक्षाबंधन
- हर वर्ष श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है राखी का त्योहार
- क्या है रक्षाबंधन का इतिहास, क्यों है ये त्योहार बेहद ख़ास?
- सिर्फ राखी के दिन खुलता है उत्तराखंड में स्थित एक मंदिर
रक्षाबंधन के त्योहार को भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन बहन अपने भाई को रक्षा का सूत्र बांधती है और भाई उसकी रक्षा का वचन लेता है। आइए जानते हैं रक्षाबंधन से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं जो इस त्योहार को बेहद खास बनाती हैं.
रक्षाबंधन से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं
श्रीमद्भागवत पुराण अनुसार जब भगवान वामन ने महाराज बली से तीन पग भूमि मांगकर उन्हें पाताललोक का राजा बना दिया तब राजा बली ने भी वर के रूप में भगवान से रात-दिन अपने सामने रहने का वचन भी ले लिया। भगवान को वामनावतार के बाद पुन: लक्ष्मी के पास जाना था लेकिन भगवान ये वचन देकर फंस गए और वे वहीं रसातल में बली की सेवा में रहने लगे। उधर, इस बात से माता लक्ष्मी चिंतित हो गई।
ऐसे में नारदजी ने लक्ष्मीजी को एक उपाय बताया। तब लक्ष्मीजी ने राजा बली को राखी बांध अपना भाई बनाया और अपने पति को अपने साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। तभी से यह रक्षा बंधन का त्योहार प्रचलन में हैं। इसीलिए रक्षा बंधन पर महाराजा बली की कथा सुनने का प्रचलन है।
भगवान कृष्ण और द्रौपदी से जुड़ा बंधन
रक्षाबंधन से जुड़ी एक कहानी भगवान भगवान कृष्ण और द्रौपदी से भी संबंधित है. राखी का पर्व द्रौपदी की रक्षा से भी जुड़ा है, कहा जाता है की एक बार भगवान श्रीकृष्ण के हाथ में चोट लग गई जिससे खून निकलने लगा। यह सब द्रौपदी से नहीं देखा गया और उसने तत्काल अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर श्रीकृष्ण के हाथ में बांध दिया जिसके बाद खून बहना बंद हो गया। ये एक तरह से रक्षा सूत्र था इसके कुछ समय पश्चात जब दुःशासन ने द्रौपदी की चीरहरण किया तब श्रीकृष्ण ने चीर बढ़ाकर इस बंधन का उपकार चुकाया। यह प्रसंग भी रक्षा बंधन के महत्व को बताता है।
राखी को क्यों कहते हैं “रक्षा सूत्र” !
कहते हैं कि राखी को पहले ‘रक्षा सूत्र’ कहते थे। रक्षा सूत्र को बोलचाल की भाषा में राखी कहा जाता है जो वेद के संस्कृत शब्द ‘रक्षिका’ का अपभ्रंश है। मध्यकाल में इसे राखी कहा जाने लगा।रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा वैदिक काल से रही है जबकि व्यक्ति को यज्ञ, युद्ध, आखेट, नए संकल्प और धार्मिक अनुष्ठान के दौरान कलाई पर नाड़ा या सूत का धागा जिसे ‘कलावा’ या ‘मौली’ कहते हैं- बांधा जाता था। रक्षा बंधन के अलावा भी अन्य कई धार्मिक मौकों पर आज भी रक्षा सूत्र (नाड़ा) बांधा जाता है।
सिर्फ रक्षाबंधन के दिन खुलता है उत्तराखंड का यह मंदिर
भारत भले ही ऐतिहासिक स्थलों से समृद्ध हो, लेकिन यहां के धार्मिक स्थल भी रोचक कहानी बयां करते हैं। यहां कई अनोखे रीति-रिवाज वाले धार्मिक स्थल मौजूद हैं। भारत में एक ऐसा ही अनोखा मंदिर है जो उत्तराखंड में स्थित है। इससे एक बेहद रोचक तथ्य जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि इसके कपाट हर साल रक्षाबंधन पर ही खुलते हैं। इस जगह के निवासी मंदिर में दर्शन करने के लिए राखी के खास मौके पर जरूर आते हैं.
ये मंदिर उत्तराखंड में स्थित है और इसका नाम वंशीनारायण मंदिर है और ये उत्तराखंड के चमोली जिले की उर्गम घाटी में मौजूद है। इस मंदिर के कपाट साल में एक बार रक्षाबंधन पर ही खुलते हैं. रीति-रिवाजों के तहत यहां की महिलाएं और लड़कियां अपने भाईयों को राखी बांधने से पहले भगवान की पूजा करती हैं.
रक्षा बंधन के दिन बहनों का खास महत्व होता है। विवाहित बहनों को भाई अपने घर बुलाकर उससे राखी बंधवाता है और उसे उपहार देता है रक्षा बंधन पर बहनें अपने भाई को राखी बांधती हैं। भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक और रक्षा के इस पर्व की आप सभी को शुभकामनाएं