स्वयं की इन 10 बुराइयों का हरण करके दशहरा मनाइए…इस पर्व के बारे में 7 धार्मिक मान्यताएं जानिए..?
नागेंद्र पांडेय
संसार में भारत एक ऐसा देश है जहां 12 महीने उत्सवों की धूम रहती है । जनवरी नववर्ष से लेकर वर्ष के अंतिम दिन तक अनेक प्रकार के धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, तीज त्योहार और पर्व पूरे उत्साह के साथ मनाए जाते हैं.
आध्यात्मिक और मान्यताओं का तो भारत गढ़ रहा है, इसलिए कहते हैं जहां धार्मिकता की अधिक खनक होती है वहां असुर शक्तियां दैत्य विघ्नकर्ता उन शुभ कार्यों में विघ्न डालने जरूर आते हैं क्योंकि विघ्न डालना ही उनका धर्म है और जबजब विघ्नकर्ताओं का आगमन हुआ है, तबतब विघ्नहर्ताओं का भी जन्म हुआ है,जिनमें राम, कृष्ण मां दुर्गा मां काली सहित अनेक देवी देवता प्रत्यक्ष प्रमाण है।
विजयादशमी पर्व भारत के प्रमुख राष्ट्रीय पर्वों में से एक है। यह पर्व सनातन काल से मनाया जाता रहा है इस पर्व का मुख्य उद्देश्य सच्चाई की विजय के प्रतीक के रूप में जनमानस तक पहुंचाना है। यह पर्व सुख शांति,पाप का नाश करने वाला, काम क्रोध मोह से बचाने वाला, साहस शौर्य देने वाला, खुद पर विजय प्राप्त करने वाला पर्व है।
प्राचीन काल में अनेक राजाओं द्वारा युद्ध की शुरुआत इसी दिन किया करते थे। रावण दहन इस पर्व की मुख्य पहचान है यह बुराइयों का प्रतीक है जिसका अंत निश्चित ही होता है । इस पर्व में ही संदेश छिपा हुआ। वैसे यह वर्ष में तीन सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त में से एक मुहूर्त है शस्त्र पूजा इस पर्व की एक और खासियत है। आज यह पर्व ना केवल भारत अपितु संपूर्ण विश्व में मनाया जाता है।
अगर हम विजयादशमी याने दशहरा मनाने की करें तो हमें इसके बारे में जानकारी, उसकी उत्पत्ति धार्मिक महत्व और इसे मनाने के तरीकों के बारे में जानना जरूरी है. अनेक लोग इस पर्व को केवल राम द्वारा रावण का वध करने के संदर्भ में लेते हैं परंतु इस दिवस के पीछे कुल 7 मान्यताएं हैं।
क्या हैं दशहरे से जुड़ी 7 मान्यताएं?
(1) इस दिन माता कात्यायनी दुर्गा ने देवताओं के अनुरोध पर महिषासुर का वध किया था तब इसी दिन विजय उत्सव मनाया गया था। इसी के कारण इसे विजयादशमी कहा जाने लगा। विजया माता का एक नाम है। यह पर्व प्रभु श्रीराम के और श्रीकृष्ण के काल में भी मनाया जाता था.
(2) वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान राम ने ऋष्यमूक पर्वत पर आश्विन प्रतिपदा से नवमी तक आदिशक्ति की उपासना की थी। इसके बाद भगवान श्रीराम इसी दिन किष्किंधा से लंका के लिए रवाना हुए थे। यह भी कहा जाता है कि रावण वध के कारण दशहरा मनाया जाता है। दशमी को श्रीराम ने रावण का वध किया था।
(3)यह भी कहा जाता है कि इसी दिन पांडवों को वनवास हुआ था और वे वनवास के लिए प्रस्थान कर गए थे। इसी दिन अज्ञातवास समाप्त होते ही, पांडवों ने शक्तिपूजन कर शमी के वृक्ष में रखे अपने शस्त्र पुनः हाथों में लिए थे. विराट की गाएं चुराने वाली कौरव सेना पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की थी। इसी दिन पांडवों ने कौरवों पर भी विजय प्राप्त की थी।
(4) यह भी कहा जाता है कि इसी दिन भगवान शिव की पत्नी देवी सती अपने पिता दक्ष के यज्ञ की अग्नि में समा गई थीं।
(5) इस दिन से वर्षा ऋतु की समाप्ति होती है और साथ ही में चातुर्मास भी समाप्त हो जाता है।
(6) इस दिन का संबंध किसान और खेती-बाड़ी से भी है। वर्षा ऋतु में बोई गई धान की पहली फसल जब किसान घर में लाते, तब यह उत्सव मनाते थे। वर्षा ऋतु में बोई गई धान की पहली फसल जबकिसान घर में लाते, तब यह उत्सव मनाते थे।
(7) माना जाता है कि दशहरे के दिन कुबेर ने राजा रघु को स्वर्ण मुद्रा देते हुए शमी कीपत्तियों को सोने का बना दिया था, तभी से शमी को सोना देने वाला पेड़ माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि एक ब्राह्मण ने एक राजा से दक्षिणा में 1 लाख स्वर्ण मुद्राएं मांग ली थी तो चिंतित राजा ने एक दिन की मौहलत मांगी।
राजा को सपने में भगवान ने दर्शन देककर कहा कि शमी के पत्ते लेकर आओ मैं उसे स्वर्ण मुद्रा में बदल दूंगा। यह सपना देखते ही राजा की नींद खुल गई। उसने उठकर शमी के पत्ते लाने के लिए अपने सेवकों को साथ लिया और सुबह तक शमी के पत्ते एकत्रित कर लिए। तभी चमत्कार हुआ और सभी शमी के पत्ते स्वर्ण में बदल गए। तभी से इसी दिन शमी की पूजा का प्रचलन भी प्रारंभ हो गया।
दशहरे का महत्व
विजयदशमी को भारत में प्रमुख धार्मिक पर्वों में से एक माना जाता है. यह पर्व सनातन काल से मनाया जाता रहा है. इस पर्व का मुख्य महत्व लोगों को अच्छाई अपनाने और बुराई त्यागने से जुड़ा है. यह पर्व सुख, शांति, पाप का नाश करने वाला, काम, क्रोध, मोह से बचाने वाला, साहस, शौर्य देने वाला, खुद पर विजय प्राप्त करने वाला पर्व है।
प्राचीन काल में अनेक राजाओं द्वारा युद्ध की शुरुआत इसी दिन किया करते थे। रावण दहन इस पर्व की मुख्य पहचान है यह बुराइयों का प्रतीक है जिसका अंत निश्चित ही होता है । इस पर्व में ही संदेश छिपा हुआ। वैसे यह वर्ष में तीन सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त में से एक मुहूर्त है शस्त्र पूजा इस पर्व की एक और खासियत है। आज यह पर्व ना केवल भारत अपितु संपूर्ण विश्व में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है।
दशहरा- स्वयं के अंदर की 10 बुराइयों के हरण का पर्व
दशहरे में हमें अपने अंदर की 10 बुराईयों का हरण करना चाहिए. रावण के दस सिर, दस बुराइयों के प्रतीक थे. ये बुराईयां हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, हिंसा, आलस्य, झूठ, अहंकार, मद और चोरी. ये बुराइयां 10 पापों की सूचक मानी जाती हैं। हम सभी के अंदर ये 10 बुराइयां होती हैं जिन्हें हम खुद ही दूर करना चाहिए.
हमारा देश भारत युवाओं का देश है और युवा ही भारत का भविष्य हैं,अगर युवा पीढ़ी अपनी सोच में बदलाव लाएगी तो समाज में बुराई का असुर रावण पूर्ण रूप से समाप्त हो जायेगा। दशहरे के त्योहार के प्रति आदर,सम्मान व प्यार को रखते हुए,हम अपने जीवन को अच्छा बनाने कि ओर अग्रसर करेंगे।
हमें स्वंय को बदलना है किसी ओर को नहीं क्योंकि हमारे अंदर आया बदलाव ही हमारे अन्दर का रावण का अंत करना है। इसी उद्देश्य को लेकर भारत में दशहरे का असली महत्व और अर्थ समझा जा सकता है।
(लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं)