‘स्मोकिंग’ हड़ताल पर बैठे युवाओं की कहानी…जानिए क्या कह रही है ‘सुलगती’ जवानी…?
'स्मोकिंग' हड़ताल कर रहे युवाओं ने सरकार से मांग की है कि सिगरेट पर टैक्स कम किया जाए. हमें सस्ते दामों पर सिगरेट मुहैया करवाए। जब तक सरकार टैक्स को कम नहीं करेगी हम सिगरेट का बहिष्कार यूं ही करते रहेंगे । उसे हाथ तक नहीं लगाएंगे । अगर हमारी मांग जल्द पूरी नहीं की गई तो हम बीड़ी पीकर जान दे देंगे । सरकार इतनी निर्दयी कैसी हो सकती है?
‘स्मोकिंग’ हड़ताल
रिपोर्टर- नये बजट पेश किए जाने के बाद बेरोजगार युवा पीढ़ी पूरी तरह सदमे में है.. ये दुख मे इतने विलीन है कि दो रोज मे इनके चेहरे सुखकर पापड़ हो गए हैं । पिछले दो दिनों से देशभर से स्मोकिंग हड़ताल की खबरें आ रही है। तो चलिए अलीगढ़ मे हड़ताल पर बैठे युवाओ से बातचीत करते हैं।
रिपोर्टर- आप लोग इस हड़ताल पर कब तक बैठेंगे ? आपकी प्रमुख मांगें क्या हैं ?
हड़ताल पर बैठे एक युवा फैज़ल – सरकार से हमारी मांग है की सिगरेट पर टैक्स कम किया जाए. हमें सस्ते दामों पर सिगरेट मुहैया करवाया जाए। जब तक सरकार टैक्स को कम नहीं करेगी हम सिगरेट का बहिष्कार यूं ही करते रहेंगे । उसे हाथ तक नहीं लगाएंगे । अगर हमारी मांग जल्द पूरी नहीं की गई तो हम बीड़ी पीकर जान दे देंगे । सरकार इतनी निर्दयी कैसी हो सकती है?
रिपोर्टर- इतनी शिद्दत से आपने नौकरी के लिए.. बेरोजगारी को दूर करने के लिए कभी हड़ताल तो नहीं किया ? आप जैसे युवाओ ने इस मुद्दे पर कभी जिम्मेदारी से आवाज क्यों नहीं उठाई?
इस पर बगल मे खड़े एक 55 वर्षीय आदमी खैनी रगड़ते हुए बोले…ये समय पर उठ ही नहीं पाते तो आवाज क्या खाक उठायेंगे… वो तो अभी सिगरेट नहीं पी पा रहे हैं इसलिए जगे हुए हैं।
हड़ताल मे बैठा दूसरा लड़का गोविंद – देखो काका आप खैनी खाने वाले लोग हमारी परेशानी को नहीं समझ सकते। आपका काम तो सस्ते मे निपट जाता है। हमसे पूछो हमपर क्या गुजर रही है। बड़ी मुश्किल से तो दो वक़्त का सिगरेट का इंतेज़ाम करके ज़िंदगी गुजार रहे थें। सरकार को हम बेरोजगारों को हाय लगेगी
रिपोर्टर– अच्छा तो इसका मतलब मुझे ये लग रहा है आपकी असल समस्या सिगरेट के दामों मे वृद्धि नहीं बल्कि बेरोजगारी है।
काका फिर से टपक पड़े – देखो भैया इनका पेट तो सिगरेट, गुटखा और दारू से भर जाता है, फिर ये दो क़दम उठाने लायक नहीं होते तो फिर काम करने के लिए हाथ कैसे उठाएंगे भला।
रिपोर्टर – आप सब लोग जो सिगरेट के दाम कम करने के लिए जो मोर्चा निकाल रहे हैं इसके लिए तो सरकार आप सब पर सख्त कार्रवाई भी करन सकती है न?
तभी हड़ताल की भीड़ से एक लड़के की आवाज आई – नहीं भैया सरकार हम पर सख्त रवैया तब अपना सकती है जब हम लोग सिगरेट, गुटखा और अन्य तंबाकू जैसे नशीली प्रोडक्ट की खरीद-बिक्री के खिलाफ आवाज बुलंद करेंगे।
इतने में बगल मे खड़े दूसरे पढे लिखे काका तुरंत बोल पड़े –
देखो भैया सही मुद्दा तो यही है की इसकी बिक्री पर रोक लगाई जाए। लेकिन सरकार को क्या उन्हे तो अपना राजस्व भरने से मतलब है। उनका खजाना भर रहा है लोग जिएं या मरें उन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता ।
तभी हड़ताल मे बैठे युवाओं का लीडर बोला –
फिलहाल तो हमें मरने से बच लो काका। हमारा तो बस यही सहारा था वो भी छीना जा रहा है। ये सरकार की सोची समझी साजिश है । जानबूझकर हमे बीड़ी पीने पर मजबूर कर किया जा रहा है। ताकि हम पाँच दस साल मे बीमार होने की बजाए दो-चार साल मे ही बीमार हो जाए।
इतने मे गुटखा चबाते हुए दो पुलिस वाले वहाँ आ पहुंचे- और बोलो…तुम लोगों को बात समझ मे नहीं आती ये सब क्या लगा रखा है, मार्ग बाधित करके बैठे हो। जब हवालात मे डाल कर डंडे पड़ेंगे तो सिगरेट का धुआँ कहाँ कहाँ से निकलेगा, इसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते तुम लोग. अपना ये ताल-तमेला यहां से उठाओ और कहीं दूसरी एकांत जगह खोज लो वहां बैठो ताकि यहां पर आम लोग का दैनिक कार्य प्रभावित न हो।
फिर इतने मे लीडर राजू बोल पड़ा – ठीक है दरोगा साहब हम बाजार के पीछे वाले मैदान पर चले जाते हैं।
दरोगा साहब बोले- ओ राजू सुन, फिर वे लड़के जो मैदान मे क्रिकेट या फुटबॉल खेलते हैं वे शिकायत करेंगे तो क्या करोगे?
लीडर बोला- सर इसकी चिंता आप मत कीजिए शहर के लगभग सारे लड़के हमारे साथ इस हड़ताल मे शामिल हैं तो फिर खेलेगा कौन?
दरोगा साहब- हां ये तो सही कहा तुमने सबके सब बेवरे तो यही है।
फिर चार दिन में इनकी हड़ताल ढीली पड़ गई। फिर धीरे धीरे सब खिसक लिए।
तभी मीडिया में यह ख़बर आने लगी कि बाज़ार में बीड़ी की काला बाज़ारी शुरू हो गई है। ग्राउंड रिपोर्ट दिखाया गया कि शहर के सारे बेरोजगार युवाओं ने बीड़ियाँ पीनी शुरू कर दी है।
मीडिया वाले शहर के चौराहे पर बीड़ी पीते हुए युवकों से सवालात करते हुए- और भई सबने हड़ताल क्यों तोड़ दिया? और ये बीड़ी पीनी क्यों शुरू कर दी? कह तो रहे थे कि बीड़ी से दो साल में ही निपट जाओगे। हाँ बताओ भला?
एक युवा बोला- देखो भई बीड़ी पीकर कमसे कम दो-चार साल भी तो अच्छे से जिया जा सकता है लेकिन दो-चार दिनों के अंदर अगर ये भी ना पिता तो अबतक टहल चुका होता। सरकार तो कीमत कम करने से रही।
राजा आलम