सुप्रीम कोर्ट करेगा ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट’ पर फैसला….विवादित धार्मिक स्थलों से जुड़ा है ये पेचीदा मामला…!!
प्रबीन उपाध्याय
क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट?
इस एक्ट के मुताबिक 15 अगस्त 1947 से पहले मौजूद किसी भी धर्म की उपासना स्थल को किसी दूसरे धर्म के उपासना स्थल में नहीं बदला जा सकता। इस एक्ट में कहा गया है कि अगर कोई इस एक्ट के नियमों का उल्लंघन करने का प्रयास करता है तो तीन साल तक की जेल हो सकती है, साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। बीजेपी की ओर से वकील अश्विनी उपाध्याय ने इस एक्ट को खत्म किए जाने को लेकर याचिका दाखिल की है.
क्यों बनाया गया प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट?
1991 में बाबरी मस्जिद और अयोध्या के राम मंदिर का मुद्दा हमेशा खबरों में रहता था। उस समय देश में रथयात्रा निकाली जा रही थी राम मंदिर आंदोलन के बढ़ते प्रभाव के चलते अयोध्या के साथ ही कई और मंदिर-मस्जिद विवाद उठने लगे। ये सब देखकर सरकार को कानून बनाने की जरूरत पड़ गई।
विवादों में क्यों आया ये मामला?
हाल ही में ज्ञानवापी मस्जिद मामले ने काफी तूल पकड़ा था, मामले की सुनवाई अभी भी चल रही है. इसके बाद मथुरा स्थित मस्जिद, ताजमहल, शाही ईदगाह मस्जिद, कुतुबमीनार, अटाला मस्जिद जैसे स्थलों को लेकर भी विवाद होने लगे. दरअसल
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट सभी धार्मिक स्थलों की स्थिति 15 अगस्त 1947 वाली बनाए रखने की बात कहता है। इस एक्ट को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई हैं।
सुप्रीम कोर्ट में देवकीनंदन ठाकुर, स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती, भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सांसद चिंतामणि मालवीय, सेवानिवृत्त सेना अधिकारी अनिल काबोत्रा, अधिवक्ता चंद्रशेखर और रुद्र विक्रम सिंह की तरफ़ से याचिकाएं दाखिल की गई हैं।
इन याचिकाओं में इस कानून को मौलिक और संवैधानिक अधिकारों के विरुद्ध बताया गया है। बीजेपी की ओर से वकील अश्विनी उपाध्याय ने इस एक्ट को खत्म किए जाने को लेकर याचिका दाखिल की है।
इस एक्ट से अयोध्या विवाद को दूर रखा गया। इसके पीछे तर्क दिया गया कि यह मामला अंग्रेजों के समय से कोर्ट में था ऐसे में इसे इस एक्ट से अलग रखा जाएगा।