तारेक फतेह…नहीं रहा वो पत्रकार, लेखक और विचारक जिसे पाकिस्तानी जनरल जिया उल हक न तोड़ पाए..
तारेक फतेह अब हमारे बीच नहीं रहे. वे जिंदगी भर मुसलमानों को समझाते रहे कि "अपनी आत्मा को इस्लामी बनाओ। दिमाग को नहीं। गरूर पर हिजाब डालो, न कि शकल पर। बुर्का से सर ढको, चेहरा नहीं।
के. विक्रम राव
तारेक फतेह अब इस दुनिया में नहीं रहे. वे हमेशा मुस्लिम कौम को कुरीतियों से बाहर आने को कहते रहे. उनकी साफगोई पाकिस्तान को कभी पसंद नहीं आई क्योंकि वे शरीयत में बदलाव के पक्षधर थे.
कहां हुआ था तारेक फतेह का जन्म?
पाकिस्तान के कराची में 20 नवंबर 1949 को तारेक फतेह का जन्म हुआ था. वे अखंड भारत के समर्थक थे। उनकी मां मुंबई की रहने वाली सुन्नी समुदाय से आती थी जबकि उनकी पत्नी नरगिस शिया, गुजराती दाऊदी बोहरा से संबंध रखती थीं।
स्वयं को फतेह बड़ी साफगोई से किस्मत का शिकार बताते थे। उनके पिता भी अन्य मुसलमानों की तरह जिन्ना की बात मानकर नखलिस्तान की तलाश में इस्लामी पाकिस्तान आए। मगर वह “मृगमरीचिका” निकली। अपनी जवानी में फतेह मार्क्सवादी छात्र नेता रहे। जैव रसायन में स्नातक डिग्री ली। पत्रकार के रूप में कराची पत्रिका “सन” के रिपोर्टर थे। जनरल जियाउल हक की सैन्य सरकार ने उन्हें दो बार जेल में डाला। देशद्रोह का आरोप लगाया।
मुसलमानों को कट्टरता से बचाने का देते थे संदेश
तारेक फतेह भारतीय मुसलमानों को राय देते रहे : “अपनी आत्मा को इस्लामी बनाओ। दिमाग को नहीं। गरूर पर हिजाब डालो, न कि शकल पर। बुर्का से सर ढको, चेहरा नहीं।” उन्होंने हमेशा मुसलमानों को कट्टरता से दूर रहने का संदेश दिया.
जब नई दिल्ली नगरपालिका ने सात दशकों बाद औरंगजेब रोड का नाम बदलकर डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम पर रख दिया था तो एक ऐतिहासिक कलंक को मिटने पर बेहद खुश हुए ।
अपने लोकप्रिय टीवी शो में फतेह हमेशा ब्रिटिशराज द्वारा मुगलों के महिमा मंडन के कठोर आलोचक रहे। वे कई बार कह भी चुके थे कि जालिम औरंगजेब का नामोनिशान भारत से मिटाना चाहिए । फिर उनके सुझाव को पूर्वी दिल्ली से लोकसभा के भाजपाई सदस्य महेश गिरी ने गति दी। अपने भाषण में फतेह ने कहा भी था : “आज केवल हिंदुस्तान ही इस्लामिक स्टेट के आतंक को नेस्तनाबूद कर सकता है।
बलूचिस्तान बने आजाद राष्ट्र
तारेक फतेह अपने टीवी कार्यक्रम में अक्सर कहा करते थे कि वे बलूचिस्तान को आजाद राष्ट्र के रूप में देखना चाहते हैं। पाकिस्तान ने उसे गुलाम बना रखा है। वे कश्मीर पर पाकिस्तान के हिंसक हमलों की हमेशा भर्त्सना करते रहे। मूलतः वे विभाजन के विरुद्ध रहे।
अपनी पुस्तक “यहूदी मेरे शत्रु नहीं हैं” में फतेह ने स्पष्ट लिखा था कि भ्रामक इतिहास के फलस्वरुप यहूदियों के साथ अत्याचार किया गया। वे मुंबई में 9 नवंबर 2008 के दिन यहूदी नागरिकों पर गोलीबारी से संतप्त थे। उन्होंने इस वैमनस्य की जड़ों पर शोध किया। उन्होंने पाया कि यहूदी से उत्कट घृणा ही इस्लाम का मूल तत्व है। वे समाधान के हिमायती थे।
रोहिंग्या मुसलमानों को न्याय मिले
तारेक फतेह ने इस्लामी राष्ट्रों के द्वारा असहाय मुसलमानों की उपेक्षा को मजहबी पाखंड करार दिया था। वे मानते थे कि रोहिंग्या मुसलमान न्याय के हकदार हैं, उपेक्षा के पात्र नहीं। एक मानवीय त्रासदी आई है जहां एक पूरी आबादी पर सबसे जघन्य अत्याचार ढाये जा रहे हैं। वे एक जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यक हैं।
म्यांमार में दसियों हज़ार रोहिंग्या मुसलमान एक तानाशाह की सेना द्वारा क्रूर कार्रवाई में खदेड़े गये। वे शरण मांग रहे हैं, विशेषतः मुस्लिम देशों से। मगर ये सारे इस्लामी राष्ट्र खामोश हैं। तारेक फतेह ने तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की इस्लामाबाद में लाल मस्जिद तथा उसके अंदर आतंकवादियों पर कार्रवाई के पीछे की राजनीति की जांच की मांग की थी। उनकी दृष्टि में यह साजिश थी।
तारेक फतेह ने लिखा था : “जनरल मुशर्रफ़ और उन्हें सहारा देने वाले अमेरिकियों, दोनों को यह महसूस करना चाहिए कि मलेरिया से लड़ने के लिए दलदल को खाली करने की ज़रूरत है, न कि अलग-अलग मच्छरों को मारने की।
पाकिस्तान में इस्लामी कट्टरवाद से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका ही है कि फर्जी मतदाता सूचियों को खत्म करें और लोकतांत्रिक चुनाव आयोजित किया जाए। निर्वासित राजनेताओं को देश में लौटने दिया जाए।”
फतेह को श्रद्धांजलि देते हुये टीवी समीक्षक शुभी खान बोली : “थोड़ी देर तो समझ नहीं पाई कि क्या कहूँ ? क्या सोंचू ? टीवी चैनल्स पर हम दोनों का सच के लिए और बहुत बार एक दूसरे के लिए लड़ना तो याद आया। तारेकभाई आपकी मशाल बुझी नहीं हैं। अब यह मुस्लिम युवाओं द्वारा ज्यादा तेज जलेगी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साप्ताहिक “पांचजन्य” ने लिखा : “उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। तारेक फतेह इस्लामी कट्टरता के घोर विरोधी थे।” हम IFWJ के श्रमजीवी पत्रकार सदस्य साथी तारेक फतेह के सम्मान में अपने लाल झंडा झुकाते हैं। उनकी पत्रकार-पुत्री नताशा के लिए शोक संवेदनायें ! सलाम योद्धा तारेक ! तुम्हारी फतेह हो !!
(लेख में व्यक्ति विचार लेखक के निजी विचार हैं)