साहित्यनामा

तेरे मेरे बीच में: ज़िंदगी की इस पहेली के बारे में बात करती है ये कहानी..

हमें किसी की बाहरी सुंदरता और चमक-दमक देख कर उसके साथ जिन्दगी बिताने का फ़ैसला नहीं करना चाहिए। हमें हमेशा उसके साथ जिन्दगी जीने की कोशिश करनी चाहिए, जो पैसे और पद के लिहाज़ से भले की कमतर हो लेकिन प्यार और सम्मान देने वाला बेहतरीन इंसान हो.

 तेरे मेरे बीच में  

डॉ. सुशील कुसुमाकर  

दिसम्बर का महीना। ठंड अपने शबाब पर थी। शाम होने को थी। पर, आसमान बिल्कुल साफ़ था। और चमकता सुनहरा सूरज पश्चिम में धीरे-धीरे नीचे उतर रहा था।

वह ओवर कोट पहने दायें हाथ में हैंड बैग लटकाये, एयरपोर्ट एग्ज़िट गेट से बाहर आया। और लोगों से कुछ दूरी पर किनारे खड़ा हो गया। फिर, उसने बायीं कलाई पर बँधी घड़ी देखी।

शाम के पौने पाँच बज रहे थे।

वह इधर-उधर नज़रें दौड़ाया। लेकिन, वह कहीं दिख नहीं रहा था। इससे वह थोड़ा अचरज में पड़ गया।

-यार, एयरपोर्ट से तेरे बाहर निकलते, मैं खड़ा मिलूँगा… तुम टेंशन मत लेना… लेकिन…। -वह बोला तो था बहुत कॉनफिडेंस से सुबह-सुबह कॉल करके।

दूसरे पल, वह थोड़ी दूर पर खड़े लोगों को देखता बुदबुदाया।

-वो नहीं आयेगा क्या…? वो अगर बिज़ी था… तो किसी को भेज देता…।

अब वह अपनी जगह खड़ा ख़ामोशी से इधर-उधर देख रहा था।

एयरपोर्ट एग्ज़िट गेट के आस-पास का नज़ारा बहुत बदल गया था। कुछ साल पहले वह जब भी आया, तो उसे एग्ज़िट गेट के आस-पास इक्के-दुक्के लोग मिल जाया करते। तब शायद थोड़े लोग प्लेन से सफ़र किया करते। सिक्योरिटी के नाम पर यहाँ एक-दो पुलिस वाले या एयरपोर्ट के गॉर्ड्स होते, वे भी बेफ़िक्र से इधर-उधर टहलते। सिविलयन तो इसी सड़क से आया-जाया करते। और बगल वाली सड़क से बसें, कारें भी तो दिन-रात आती-जाती थीं बेरोक-टोक। फिर, ये बगल में मॉल भी तो नहीं था तब। लेकिन, अब न कोई आता-जाता सिविलियन दिख रहा, न सिटी बसें आ-जा रहीं। केवल वे ही लोग आ रहें, जिन्हें अपनों को एयरपोर्ट से रिसीव करना होगा। सिक्योरिटी भी पहले से ज़्यादा दिख रही। पी.सी.आर. वैन, दस-बारह पुलिस वाले, सी.आई.एस.एफ़, प्राइवेट गॉर्ड्स जगह-जगह ऐसे खड़े लोगों पर नज़रें लगाये, मानो हर कोई संदिग्ध् इनकी नज़रों में। फिर, यहाँ ओला, उबर वाले भी तब नहीं होते। हाँ, तीन-चार ऑटो या टैक्सी वाले ज़रूर खड़े मिलते। ख़ैर!

अब वहाँ कमोबेश भीड़ बढ़ गयी थी। इससे उसे खड़े-खड़े झुंझलाहट होने लगी।

-इतने सालों में ये पहली बार हुआ, कि मैं किसी एयरपोर्ट के बाहर इतनी देर तक खड़ा रहा… वो भी करीबी दोस्त की वजह से… अगर यहाँ खड़े लोग मुझे पहचान गये…। -वह मन में सोचा। -और सारे एक साथ पास आ गये, तो निकलना मुश्किल हो जायेगा…।

उस समय, वह कभी बायीं कलाई पर बँधी घड़ी देखता, कभी बायीं हथेली सिर तक ले जाता, बालों को ठीक करता, तो कभी ओवर कोट की जेब से रूमाल निकाल, चेहरे पर फिराता। और फिर, आस-पास देखने लगता।

उसे अब वहाँ खड़ा रहना बर्दाश्त से बाहर हो रहा था।

इतने में, लोगों के साथ खड़ा लड़का एक्साइटेड होता हुआ, साथ वाले लड़के के कंधे पर हाथ रखकर उसकी तरफ़ इशारा किया।

-अबे उधर देख… कौन खड़ा…!

सहसा, दूसरा लड़का पीछे मुड़ा। और उसे एकटक देखने लगा।

-तूने पहचाना नहीं…! ये तो प्रकाश हैं…!! -वह साथ वाले लड़के को देखता बोला। -प्रकाश देहलवी… फेमस राइटर… मैंने बुक्स पढ़ी हैं इनकी…।

सहसा, वे दोनों प्रकाश की तरफ़ दौड़-से गये। उन्हें उसकी तरफ़ जाता देख, वहाँ खड़े दूसरे भी उनके पीछे हो लिये। इधर, प्रकाश लोगों को अपने पास आता देख थोड़ा असहज हो गया। लेकिन, वह अपनी जगह चुपचाप खड़ा रहा।

अब वह लोगों से घिरा हुआ था। कोई उससे शेक हैंड करने, कोई सेल्फ़ी लेने की जल्दी में था। लोगों की भीड़ देख, एयरपोर्ट सिक्योरिटी गॉर्ड्स भी उसके पास आ गये। और लोगों को हटाने लगे। लेकिन, कोई हटने का नाम नहीं ले रहा था। तभी, एक लड़का उसके पीछे आया। और उसे लोगों से दूर ले गया।

-सॉरी सर… मैं विनीत…। -वह उसे देखकर ऑपोलाइज़ करता हुआ। -मैं थोड़ा लेट हो गया… नहीं तो आप को प्रॉब्लम नहीं होती…।

-इट्स ओ.के., डोंट वरी… ये तो लोगों का प्यार है…। -प्रकाश साथ खड़े विनीत को देखता हुआ। -जो मुझे देखते आ गये… वरना कौन किसको पूछता यहाँ…।

-चलिये सर…। -विनीत उसके दायें हाथ से हैंड बैग लेता उसे बताया। -मुझे मनदीप सर ने भेजा है…।

दूसरे पल, प्रकाश ठिठकता हुआ पीछे मुड़ा। और लोगों को देखकर मुस्कुराता हुआ हाथ हिलाया, तो थोड़ी दूर खड़े लोग भी उसे देखते हाथ हिलाने लगे। वह कुछ देर उन्हें देखता रहा। फिर, वापिस मुड़कर विनीत के साथ चला गया।

अब वे दोनों कार की पिछली सीट पर चुपचाप बैठे थे। कार धीमी रफ्तार से सड़क पर दौड़ रही थी। प्रकाश कार की खिड़की से बाहर देख रहा था। सड़क किनारे बने फब्वारे, खड़ी छोटी-बड़ी बिलि्ंडग्स, स्ट्रीट लाइट्स-सब पीछे की तरफ़ भागते-से लग रहे थे।

-कितना बदल गया सब…। -वह कार की खिड़की से बाहर अचरज से देखता बुदबुदाया। -पहले सड़क किनारे ये सब नहीं थे… छोटे-बड़े पेड़… झाड़ियाँ थीं यहाँ… काट के बनाये गये होंगे ये सब…।

इस बीच, कार तेज़ रफ्तार में उलान बटार मार्ग से होती, ए.पी.एस. के पास आ गयी।

तभी प्रकाश के बगल बैठा विनीत उससे पूछा।

-क्या देख रहें सर…? बड़े ग़ौर से…।

-अपने बदले शहर को…। वह कार की खिड़की से बाहर देखता बोला। -कितना कुछ चेंज हो गया…।

-सर, अब तो पूरा शहर बदल गया… नियर अबाउट एवरी थिंग…। -उसके बगल सीट पर बैठा विनीत हाथ से इशारा करता हुआ। -आप ये फ्लाई ओवर देख रहे न… अभी सिक्स मंथ पहले बना… और पीछे जो छोटी-बड़ी बिलि्ंडग्स… डिफ़ेस वाली बिलि्ंडग… फ्लाई ओवर… सब साल दो साल में बने…।

-हाँ भाई, सुनता रहा हूँ दोस्तों से…। -प्रकाश उसका चेहरा देखता हुआ। -कि दिल्ली बदल रही…।

कार की रफ्तार तेज़ हो गयी थी। वह सड़क पर दौड़ती, दूसरी गाड़ियों को पीछे छोड़ती जा रही थी।

अब सूरज की रौशनी चली गयी थी। पर, अभी पूरी तरह अँधेरा नहीं हुआ था। स्ट्रीट लाइट्स जल गयी थी। वे दोनों अपनी-अपनी जगह ख़ामोश बैठे थे। विनीत अपने हाथ में लिये सेलफ़ोन की स्क्रीन ऑन कर, फेसबुक स्टेट्स चेक करने में लगा था। और प्रकाश सड़क पर तेज़ रफ्तार से दौड़ती कार की खिड़की से बाहर देख रहा था। तभी विनीत अपने जैकेट की चैन गले से थोड़ा नीचे खिसकाया। और साथ बैठे प्रकाश से पूछा।

-आप कितने साल रहे यहाँ सर…?

-बचपन बिताया… मस्ती की… जवान हुआ तो इश्क़ किया…। विनीत के साथ बैठा प्रकाश कार की सीट से पीठ टिकाता गहरी साँस ली।

-हज़ारों ख़्वाब देखे इसी शहर में…।

-फिर आप यहाँ से चले क्यों गये…?

विनीत उसे देखकर उत्सुकता से पूछा। लेकिन, प्रकाश कुछ नहीं बोला।

अँधेरा अब बढ़ गया था। वह सबकुछ अपने में समेटने की कोशिश में था। स्ट्रीट लाइट्स उजाला फैलाये थी। कार अभी भी तेज़ रफ्तार से सड़क पर दौड़ रही थी। और धैला कुआँ के करीब आ गयी थी। वे दोनों कार की पिछली सीट पर ख़ामोश बैठे अपने-अपने में खोये थे। वे कभी एक-दूसरे को देखते, तो कभी कार की खिड़की से सड़क पर अगल-बगल दौड़ती गाड़ियों को।

तेज़ रफ्तार से सड़क पर दौड़ती कार सहसा रुक गयी।

-यार, अब क्या हो गया इसे…?

विनीत कार ड्राइव करता सोनू से पूछा।

-होना क्या…? -सोनू आगे सड़क पर गाड़ियों का हुज़ूम देखता हुआ। टै्रफ़िक प्रॉब्लम…।

-स्साला ये टै्रफ़िक जाम भी न…। -विनीत सड़क पर अगल-बगल खड़ी गाड़ियाँ देखकर खीझता हुआ। -डेली सुबह-शाम वॉट लगा देता है सबकी…।

-वैसे भी छह बजने वाले हैं… तो…। -सोनू शर्ट की जेब से सेलफ़ोन निकाल, स्क्रीन ऑन करके देखता हुआ। -पीक ऑवर शुरू हो गया…।

-टाइम पे तो पहुँचा दोगे न…? -सीट पर बैठा विनीत थोड़ी टेंशन में आ गया। वह कार की खिड़की से इधर-उधर देखता हुआ। -अगर नहीं पहुँचे तो… मनदीप सर मेरी वॉट लगा देंगे…।

-तुम इसकी टेंशन मत लो…। -सोनू उसे भरोसा दिलाता हुआ। -बस्स, सरदार पटेल मार्ग क्रास करने की देर है…।

कार अब स्ट्रीट लाइट्स की सफ़ेद रौशनी में धीरे-धीरे रेंग रही थी। अगल-बगल से गाड़ियों का शोर गूँज रहा था। लेकिन, कार में ख़ामोशी थी। ड्राइविंग सीट पर बैठा सोनू सजगता से कार आगे बढ़ा रहा था। वे दोनों कार की खिड़की से इधर-उधर देख रहे थे।

-यहाँ चाहे सबकुछ बदल गया हो…। -प्रकाश उसे देखकर मुस्कुराया। -लेकिन, दो चीजे़ं बिल्कुल नहीं बदलीं…।

-कौन-सी दो चीज़ सर…?

बगल बैठा विनीत उसे सवालिया नज़रों से देखा।

-एक तो यहाँ का टै्रफ़िक जाम…।

-और सर दूसरी…?

-तुम्हारे मनदीप सर…।

-मनपदीप सर…!!

-हाँ…।

-कुछ समझा नहीं…।

प्रकाश उसकी इस बात पर कुछ नहीं बोला। दूसरे पल, कार की खिड़की से बाहर एक नज़र देखा। फिर, वह सीट से अपनी पीठ टिकाता आराम से बैठ गया। और धीरे से अपनी आँखें मूँद लीं।

MUST READ-दिल की कलम से…जज़्बात के रंग से….लिखी गई है रचना….जरा ध्यान से पढ़ना…!!

कार धैला कुआँ फ्लाई ओवर पर आ गयी थी। और अभी भी रेंग-सी रही थी। लेकिन, दूसरे पल, कार सड़क पर तेज़ रफ्तार से दौड़ने लगी। उस पल, विनीत को थोड़ा सुकून हुआ-अब टाइम से पहुँच जायेंगे। और इधर, प्रकाश सीट से पीठ टिकाये कहीं खो-सा गया था। शायद आज में… शायद कल में…।

उस दिन भी तो उसे आना था…। पर, नहीं आया… तो नहीं आया…।

सुबह दस के लगभग मैं, संजीव और मालती, तीनों जब कमरे के बाहर पहुँचे, तो हमने देखा-कमरे का दरवाज़ा अन्दर से बन्द था। हम सारे अचरज में पड़ गये। तभी संजीव डोर बेल की स्विच दबाया। रौनक अन्दर से दरवाज़ा खोला। और रहस्यमयी ढंग से मुस्कुराया। हम सारे जब कमरे में आये, तो हैरान रह गये। मनदीप बिस्तर पर पेट के बल लेटा सो रहा था। दूसरे पल, संजीव बिस्तर के पास गया। और उसे पकड़कर ज़ोर से हिलाया। वह हड़बड़ाकर बिस्तर पर उठकर बैठ गया। और कुछ देर उसे गुस्से से देखता रहा। कोई और दिन होता, तो वह उस पर गुस्से से चिल्लाने लगता। ख़ैर, हमने उसे ‘प्रोग्राम’ की याद दिलायी, तो वह होंठों में बुदबुदाता वॉश रूम की तरफ़ चला गया। इस बीच, कमरे में हम चारों एक-दूसरे को छेड़ते गपशप करते रहे। थोड़ी देर बाद, मनदीप कमरे में वापिस आया। और खड़ा हो गया। वह कुछ बोल नहीं रहा था। पर जब हमने उसे तैयार होकर चलने को बोला, तो वह सफ़ाई देने लगा। -माफ़ करो, मैं अभी नहीं चल पाऊँगा तुम लोगों के साथ… कहीं जाना है यार… अर्जेंट है, समझो मुझे…। -फिर, हम सारे जब उस पर गुस्सा होने लगे। तो वह यक़ीन दिलाता हमसे बोला। -बिलीव मी यार… शाम पार्टी में टाइम पे आ जाउँफगा… जहाँ बोलो तुम सारे… ख़ुदा क़सम… भगवान क़सम… गॉड प्रॉमिस…।

ख़ैर, उस पल, हम तीनों को मनदीप पर यक़ीन हो गया। पर, संजीव उसे शक की नज़रों से देखता कमरे से बाहर चला गया।

उस दिन मैं, संजीव, शहनाज़, मालती और रौनक-पाँचों पहले इंडिया गेट गये। फिर, कुतुब मीनार। दोनों जगह हमने एक-दूसरे की टाँग खिंचायी करते ख़ूब मस्ती की। और साथ बिताये, साथ जीये दिनों के यादगार पलों को याद किये।

और फिर, शाम में अँधेरा होते-होते ग्रीन पार्क लाइव कैफ़े आ गये।

ग्रीन पार्क मार्किट रौशनी से जगमगा रही थी। उस समय, मार्किट में भीड़-भाड़ थी। लोग एक-दूसरे से लगभग सटकर चल रहे थे। और सड़क पर गाड़ियाँ धीरे-धीरे रेंगती-सी आ-जा रही थीं। हम लोग लाइव कैफ़े के बाहर खड़े, कुछ देर मनदीप और शोभा का इन्तज़ार करते रहे। पर, वे दोनों जब नहीं आये, तो हम सारे कैफ़े में आ गये।

उस शाम हमारी पार्टी थोड़ी देर से शुरू हुई। वजह, हम सारे कैफ़े में भी उन दोनों का वेट करते रहे। फिर, हम सबका जब तक खाना-पीना चलता रहा, मनदीप और शोभा की राह देखते रहे। लेकिन, वे दोनों जब नहीं आये, तो हम सारे अपनी-अपनी जगह से उठे। और कैफ़े से बाहर चले आये।

रात हो आयी थी। मार्किट में अब भीड़ कम हो गयी थी। लेकिन, दुकानों में अभी भी रौशनी भरी थी। सड़क से गाड़ियाँ धीमी रफ्तार से आ-जा रही थी। हम सारे स्ट्रीट लाइट्स की रौशनी में फुटपाथ पर पान की गुमटी के पास खड़े, कुछ देर गॉशिप्स करते रहे। और फिर, अपने-अपने घर की तरफ़ चल दिये। संजीव जितनी देर मेरे साथ रहा, मनदीप पर गुस्सा होता रहा।

उस समय, हम दोनों सड़क किनारे पैदल धीरे-धीरे बस स्टॉप की तरफ़ आ रहे थे। सहसा, वह मुझे देखता गुस्से से बोला।

-स्साला, कमीना कहीं का… नहीं आया न… अब कभी नहीं बुलायेंगे उसे…।

-छोड़ न यार, रही होगी कोई बात…। -मैं उसकी तरफ़ देखता हुआ। -फँस गया होगा कहीं…।

-सुबह बोला था न…। -वह मुझे देखता गुस्से से बोला। -वो नहीं आयेगा… भले क़समें खा रहा…।

अब हम दोनों बस स्टॉप के नीचे खड़े, बस का वेट कर रहे थे। सहसा, संजीव मुझे देखता धीरे से बोला।

-यार तूने एक बात नोटिस की…?

-कौन-सी?

-आज न मनदीप आया… और न शोभा…। -वह रहस्यमयी ढंग से देखता हुआ। -तुझे डाउट नहीं हो रहा…।

-नहीं, क्यों… क्या हुआ…? -मैं उसे देखकर कुछ सोचता हुआ। -पर अब छोड़ न उनको…।

-शोभा नहीं आयी… तो न आये… पर मनदीप… वो तो तेरे मेरे क्लोज़ है न… वो फिर भी कल्टी मार गया  स्साला…। -संजीव मुझे देखता हुआ गुस्से से बोला। -जब फटती है स्साले की… तो रोता हुआ तेरे मेरे पास आता है… और आज… सारा मूड खराब कर दिया कमीने ने…। -वह कुछ सोचता-सा मुझे देखकर फुसफुसाया। -कहीं ऐसा तो नहीं… दोनों ने खिचड़ी पकायी… और वो कहीं और चले गये…।

-दे आर इन लव विद इच अदर…। -मैं उसका चेहरा देखता बोला। -अबे, उन दोनों में अफ़ेयर चल रहा…।

-ये तो ब्रेकिंग न्यूज़ है…। -संजीव मुझे अचरज भरी नज़रों से देखा। और फिर, रहस्यमयी ढंग से बोला। -पर यार, मनदीप तो छुपा रुस्तम निकला स्साला…।

-ऐसी बातें कोई बताता थोड़े ही…। -मैं उसे देखकर मुस्कुराया। -पता करना पड़ता है संजीव बेटा…।

-वैसे बतायी किसने तुझे…? -संजीव सवालिया नज़रों से देखता मुझसे पूछा। -उन दोनों की लव स्टोरी…।

-अपने जासूस ने…।

-उस स्साले… रौनक ने…! -संजीव चौंकता हुआ मुझे देखकर बोला। -पर कब…?

-मेहरौली से वापिस आते टाइम… बस में…। -मैं उसे देखकर मुस्कुराया। -तू जब मालती के बगल बैठ के फ्लर्ट कर रहा था उससे…।

-ओ.के., पर स्साले मनदीप ने ग्रुप में किसी को नहीं बताया…। -संजीव थोड़ा नाराज़गी भरे लहजे़ में बोला। -मुझे नहीं, तो तुझे तो बताना था उसे… तू तो उसका ख़ास है न… कभी कोई बात हो जाये… तो…।

-यार संजीव… तू दिमाग लगाना छोड़…। -मैं सड़क पर आती बस को देखता बोला। -वो देख… अपनी बस आ  रही… ये छूट गयी… तो स्साले सारी रात यहीं रहना पड़ेगा…।

-छोड़ कैसे दूँ… मेरी प्लानिंग थी कि आज सारे साथ में रहेंगे पूरे दिन… मस्ती करेंगे…। -संजीव बगल खड़े बुज़ुर्ग को एक नज़र देखा। और फिर, मुझे देखता हुआ मायूसी से बोला। -पर, स्साले ने धेखा दे के ऐसी-तैसी कर दी… रिज़ल्ट के बाद तो… कोई नहीं मिलने वाला…।

-अबे सब यहीं रहेंगे… कोई कहीं नहीं जा रहा…। -मैं उसके कंधे पर हाथ रखता हुआ। -रिज़ल्ट के बाद प्लान करके फिर मिलेंगे हम सारे… डोंट वरी…।

इतने में, बस आकर स्टॉप के आगे खड़ी हो गयी। हम दोनों दौड़कर उसमें चढ़ गये। हमारे चढ़ने के साथ बस आगे बढ़ गयी। और कुछ देर में, बस सड़क पर तेज़ रफ्तार में दौड़ने लगी।

जून का महीना। दोपहर हो गयी थी। उस दिन बारिश कुछ ज़्यादा हुई थी। गरमी से थोड़ी राहत मिल गयी थी। मौसम भी ख़ुशनुमा हो गया था। पर आसमान में बादल अभी भी छाये थे। घर के बाहर गली में जगह-जगह पानी ठहरा था। पापा तो सुबह रोज़ की तरह ऑफ़िस चले गये थे। और मम्मी घर के कामों में बिज़ी। मैं कमरे में स्ट्डी टेबल के साथ कुर्सी पर बैठा, एडमिशन फॉर्म फिल कर रहा था। तभी वह तेज़ी से कमरे में आया। और खड़ा हो गया। उसे यूँ कमरे में आया देख, मैं कुर्सी से उठ गया।

-यार जल्दी से तैयार हो जा… और चल मेरे साथ… वेरी अर्जेंट…।

-कहाँ…? कुछ गड़बड़ हो गयी क्या…?

-यार तू अभी सवाल मत कर… तैयार हो के जल्दी आ…। -वह हड़बड़ाता हुआ बोला। -रास्ते में सब बता दूँगा…।

मैंने एक नज़र उसका चेहरा देखा। फिर, दूसरे कमरे में गया। फटाफट तैयार हुआ। और फिर, हम दोनों घर से बाहर आ गये।

ऑटो सड़क पर तेज़ी से दौड़ रहा था। मैं उसके बगल बैठा चुपचाप उसे सवालिया नज़रों से देख रहा था। तभी वह मुझे देखता मुस्कुराया।

-हम कोर्ट चल रहे… मैं और शोभा मैरिज़ कर रहे आज…।

मैं सहसा चौंक गया।

-क्या..!!! तू सच कह रहा…???

-यस माई डियर…!

वह मुझे देखता मुस्कुराया।

-पर कोर्ट में तो विटनेस चाहिये… तूने और किसे बुलाया…?

उससे पूछा, तो वह रहस्यमयी ढंग से मुस्कुराया।

-चल तो सही… सब पता चल जायेगा…।

फिर, रास्ते भर उससे कुछ नहीं पूछा। पर, मेरे मन में अनेक सवालात घूमते रहे।

-दोनों मैरिज़ का डिसिजन ले लिये…! किसी को भनक तक नहीं लगने दी… पर ऑफ्टर मैरिज़ दोनों रहेंगे कहाँ… मनदीप के फादर तो फेवर में कभी नहीं रहे, कि ये शोभा से शादी करे… इंटर कास्ट की जो दीवार है इन दोनों में… शोभा के पापा तो और भी रूढ़िवादी… फिर, मैरिज़ के बाद ये दोनों अपना खर्च कैसे मैनेज करेंगे… स्साला न जॉब… न पैसा… न पैरेंट्स सपोर्ट में… और जनाब जा रहें मैरिज़ करने…।

ख़ैर, कुछ देर में, दोनों तीस हज़ारी पहुँच गये। हम दोनों जैसे ऑटो से उतरे, तो देखा- शोभा पहले से एक ख़ूबसूरत लड़की के साथ खड़ी इंतज़ार कर रही थी। वह हमें देखते, हमारे पास आयी। और मनदीप को देखकर मुस्कुरायी।

-थैंग गॉड, तुम दोनों टाइम पे आ गये…। -शोभा मेरे बगल खड़ा मनदीप को देखकर ताना मारती-सी बोली। और दूसरे पल, वह मेरी ओर देखकर मुस्कुरायी।

-प्रकाश, ये बेस्ट फ्रैंड… नीलम…।

-हाय, माई सेल्फ प्रकाश…।

मैं नीलम को देखता उसे बताया।

-नाइस नेम…।

वह मुझे देखकर मुस्कुराती बोली।

-अब तो मानोगी न तुम दोनों… मैं हमेशा लेट नहीं होता…। -मनदीप सामने खड़ी शोभा को देखा। फिर, नीलम को देखता हुआ। -थैंक्स नीलम, तुम आ गयी…।

-मैं कैसे नहीं आती…। -नीलम उसे देखकर मुस्कुरायी। -मेरी स्वीट हार्ट, शोभा की मैरिज़ है भाई…।

-यार, जल्दी चलो यहाँ से…। -शोभा हमें देखती हड़बड़ाती-सी बोली। -नहीं तो सच में लेट हो जायेंगे…।

हम चारों मैरिज़ रजिस्ट्रॉर ऑफ़िस पहुँचे, तो मालूम हुआ-संजीव और रौनक वहाँ पहले से मौज़ूद थे। दूसरे पल, साथ खड़े मनदीप की ओर देखा, तो वह बोला।

-इन्हें शोभा ने बुलाया… गड़बड़ हो, तो ये दोनों देख लेंगे…।

मैंने उसे एक नज़र देखा। पर बोला कुछ नहीं। फिर, हम लोग मैरिज़ रजिस्ट्रॉर के चेम्बर में आ गये। रज़िस्ट्रॉर की मौज़ूदगी में मनदीप और शोभा ने ख़ुशी-ख़ुशी मैरिज़ रजिस्टर पर, पर्सनल डिटेल्स लिखकर अपने-अपने सिग्नेचर किये। और विटनेस के रूप में सिग्नेचर किया-मैंने, नीलम, संजीव और रौनक ने। दूसरे पल, रजिस्ट्रॉर अपनी कुर्सी से खड़ा हुआ। और दोनों को ‘हैपी मैरिड लाइफ़’ बोलकर शुभकामनायें दी।

कुछ देर बाद, हम लोग कोर्ट से बाहर आये। और सड़क किनारे खड़े हो गये। तेज़ रफ्तार से गाड़ियाँ सड़क पर दौड़ रही थीं। इस बीच, नीलम कहीं चली गयी थी। उसी दिन, मुझे मालूम हुआ, कि नीलम ठीक-ठाक घर की लड़की है, उसे किसी चीज़ की कमी नहीं। संजीव और नीलम, दोनों एक-दूसरे को जानते हैं पहले से। ख़ैर, सड़क किनारे खड़े लगभग आध घंटा हो गया था। और हम चुपचाप खड़े इधर-उधर देख रहे थे।

आसमान में बादल अभी भी छाये थे। इससे अँधेरा समय से कुछ पहले हो गया था। हालांकि, स्ट्रीट लाइट्स की रौशनी आस-पास उजाला फैलाये थी।

उस समय, हमारे साथ खड़ी शोभा थोड़ी परेशान-सी दिख रही थी। और उसके मन में उथल-पुथल मची थी।

-इस समय कहाँ चलना ठीक होगा… घर जाऊँ या मनदीप के कमरे पे… मनदीप के पैरेंट्स मुझे और मेरे पैरेंट्स इसे अपनायेंगे कि नहीं… मेरे और मनदीप के पैरेंटस के बीच कुछ हंगामा न हो जाये, अगर ऐसा हुआ तो…।

तभी हमारे पास एक कार आकर खड़ी हो गयी। और नीलम मुस्कुराती कार से बाहर निकली। फिर, वह शोभा के पास आयी, तो शोभा उस पर भड़क-सी गयी।

-कहाँ चली गयी थी…? पता है तुझे, मैं कितना टेंशन में हूँ…!

-पार्टी का सामान लेने गयी थी… तू गुस्सा क्यों हो रही…। -नीलम उसे देखकर मुस्कुरायी। -यार आज तेरी शादी हुई… तो पार्टी तो बनती है न… पार्टी चाहे मैं दूँ या तू दे…।

-अच्छा चल अब… नहीं तो देर हो जायेगी कमरे पे पहुँचते-पहुँचते…।

शोभा उसे देखती गुस्से से बोली। तो वह मुस्कुरा दी। फिर हम सारे किसी तरह अर्जेस्ट होकर कार में बैठ गये। दूसरे पल, नीलम कार आगे बढ़ा दी। और फिर, कार तेज़ रफ्तार से सड़क पर दौड़ने लगी।

सहसा, कार रुक गयी। प्रकाश साथ बैठे विनीत को ऐसे देखा, मानो वह गहरी नींद से जागा हो। दूसरे पल, विनीत कार का डोर खोलकर नीचे उतरा, तो प्रकाश भी कार से बाहर आ गया।

वह अब बिल्डिंग कम्पाउंड में खड़ा इधर-उधर देख रहा था। मनदीप उसे अभी भी कहीं दिख नहीं रहा था। इस बीच, विनीत भी कहीं गायब हो गया था। उस पल, वह मन में सोच रहा था।

-वो यहाँ भी नज़र नहीं आ रहा… अज़ीब आदमी है… न एयरपोर्ट पे रिसीव करने आया… न यहाँ…।

उस समय, कुछ लोग घेरे उससे बातें कर रहे थे। फिर भी, वह असहज महसूस कर रहा था। तभी मनदीप मुस्कुराता उसके पास आया। और उससे गले लग गया।

-सॉरी यार, मैं एयरपोर्ट नहीं आ पाया लेने…।

-सॉरी किस बात की… अब तो मैं आ गया…। -प्रकाश हँसता हुआ उससे अलग हो गया। -सब कैसा चल रहा…?

-सब मस्त चल रहा…।

-शोभा कैसी है…?

-बिल्कुल पहले जैसी…। -मनदीप उसे देखता बोला। -तुझे उसने बुलाया है घर पे…।

-ज़रूर चलूँगा… सालों बाद तो आया हूँ… पर वो भी यहाँ आती तो अच्छा लगता…। -प्रकाश उसे देखता उससे पूछा। -संजीव आया… कि नहीं…?

-नहीं।

-क्यों…? मुझसे मिलना नहीं चाहता…?

-ऐसा नहीं यार…। -मनदीप अगल-बगल खड़े लोगों को देखता हुआ। -ही इज़ वेरी बिज़ी… सुबह उसने ह्नॉट्सअप मैसेज से बताया मुझे…।

-ऐसा भी क्या बिज़ी होना यार… कि मुझसे मिलने की फुर्सत नहीं उसे…। -प्रकाश उसे गहरी नज़र से देखता हुआ। -कहीं कोई और बात तो नहीं… इसलिये वो आना नहीं चाह रहा…।

-लम्बी दास्ताँ है उसकी…। -मनदीप उसे रहस्यमयी ढंग से देखता बोला। -आराम से बताऊँगा तुझे… प्रोग्राम के बाद घर चल के…।

प्रकाश आस-पास खड़े लोगों को देख रहा था। पर, उसके दिमाग में मनदीप की बात घूम रही थी।

-ही इज़ वेरी बिज़ी… वो किस वर्क में बिज़ी, कि मुझसे मिलने नहीं आया… क्या वो भी बदल गया… इस शहर की तरह… बट ही वाज़ वेरी क्लोज़ टू मी…।

मनदीप पास खड़े दूसरों से बातें करने में मशगूल था। तभी विनीत उनके पास आया। और धीरे से बोला।

-सर, सभी वेट कर रहें आप दोनों का…।

उन्होंने एक-दूसरे को देखा। और फिर, वे दोनों बिल्डिंग के अन्दर चले गये।

वे दोनों बिल्डिंग की फर्स्ट फ्लोर पर लॉबी में लोगों से घिरे से खड़े थे। कोई प्रकाश की पब्लिक लाइफ़ की रिकार्डिंग पूछ रहा था, कोई उसके करियर के, तो कोई उसकी पर्सनल लाइफ़ के। तभी पास खड़ी एक लड़की उससे पूछी।

-प्रकाश सर… आर यू सिंगल?

-यस।

-ह्नाई यू डिड नॉट मैरिज़?

प्रकाश लड़की को देखकर मुस्कुराया।

-इट्स ए पर्सनल क्वेश्चन।

और फिर, वह मनदीप के साथ हॉल में चला गया।

हॉल लोगों से भरा हुआ। मनदीप डॉयस के पास आया। लोगों को प्रकाश की ज़िन्दगी के सफ़र की कुछ ख़ास बातें बतायी। फिर, प्रकाश जैसे डॉयस के पास आया, तो उससे लोग गीत सुनाने की डिमांड करने लगे। उसने अपने दो-तीन गीत सुनाये। इसके बाद, मनदीप दुबारा डॉयस के पास आया। और प्रकाश को सम्मानित किया। पूरा हॉल तालियों से गूँज उठा। सहसा, प्रकाश की नज़र हॉल में लोगों के सबसे पीछे बैठी ख़ूबसूरत महिला पर पड़ी। वह उसे एकटक देख रही थी। ख़ैर, प्रकाश ने अवॉर्ड तो एक्सेप्ट किया, पर एक लाख का चेक लेने से इनकार करता बोला।

-ये चेक उसे दिया जाये… जो ज़िन्दगी में कुछ करना चाहता हो… बनना चाहता हो… पर उसके पास पैसे न हो…।

वह हाथ में ओवर कोट लिये बिल्डिंग से बाहर आया। और लॉन में खड़ा हो गया।

रात हो गयी थी। ठंड अब पहले से बढ़ गयी थी। चारों तरफ़ कुहरा छाया था। दूर तक साफ़-साफ़ देख पाना मुश्किल हो रहा था। ओस की बूँदों से ज़मीन गीली-सी हो गयी थी। मानो ज़मीन पर बारिश की हल्की फुहारें गिरी हों। लॉन में खड़े लैम्पपोस्ट थोड़ा-बहुत उजाला किये थे। और उसी लॉन में गरम कपड़ों से लदे कुछ लोग इधर-उधर चुपचाप खड़े थे, तो कुछ ग्रुप बनाये आपस में बातें कर रहे थे। फिर भी, लॉन में शोर-शराबा नहीं था। लेकिन, बाहर सड़क से एकाध आती-जाती गाड़ियों के शोर से वहाँ खड़े लोग अनकंफर्ट हो जाते।

सहसा, ठंड से उसे सिहरन महसूस होने लगी। तो हाथ में लिया ओवर कोट बदन पर डाला। और फिर, आस-पास देखा। मनदीप कहीं नज़र नहीं आ रहा था। दूसरे पल, वह जींस की जेब से सेलफ़ोन निकाला। स्क्रीन ऑन की। चार-पाँच मिस्ड कॉल थी अननोन नम्बर से। अमूनन मिस्ड कॉल आयी हो, तो वह कॉल बैक ज़रूर करता। पर उस पल सेलफ़ोन की स्क्रीन ऑफ़ कर, वापिस जींस की जेब में रख लिया।

अब प्रकाश ख़ामोशी से खड़ा, आस-पास खड़े लोगों को, आपस में गॉशिप करते लड़के-लड़कियों को देख रहा था। और बहुत सालों बाद दिसम्बर महीने की कँपकँपा देने वाली ठंड महसूस कर रहा था। और सोच रहा था।

-काश! रौनक, संजीव, मालती और शोभा भी आते, तो मज़ा आ जाता… सालों हो गये उनसे मिले… लेग-पुलिंग किये… अब तो सारे थोड़ा-बहुत बदल गये होंगे… फिर भी वे आते तो, उन्हें तुरन्त पहचान लेता…।

तभी सहसा उसके ज़हन में मनदीप की बात फिर से कौंध गयी।

-ही इज़ वेरी बिज़ी…। -वह इधर-उधर देखता हुआ मुस्कुराया। -नहीं आना था, तो न आता… पर बहाना तो ढंग का बनाता… ऐसा क्यों किया उसने…?

वह मन में संजीव के बारे में कयास लगा रहा था। तभी उसे पीछे से जानी-पहचानी आवाज़ सुनायी दी।

-तुमने अवॉर्ड के चेक लौटा क्यों दिये?

दूसरे पल, वह पीछे मुड़ा, तो देखा-वह पास खड़ी उसे देखे जा रही थी। उस पल, प्रकाश थोड़ा असहज हो गया।

-नीलम तुम!

वह अचरज से उसे देखता बोला।

-दिल्ली कब आये…?

-प्रोग्राम से कुछ देर पहले…।

-फिर कॉल करके मुझे बताया क्यों नहीं…? मैं आ रहा हूँ शाम को…।

नीलम उसका चेहरा देखती नाराज़गी से बोली।

-मेरा प्री-प्लान नहीं था यहाँ आने का…। -वह उसे देखकर मुस्कुराता बोला। -सोचा, तुम्हें बोल दूँ… और न आऊँ… तो ये ठीक नहीं होगा…।

-ये क्यों नहीं कहते… मिलना नहीं चाहते मुझसे…। -नीलम उसे देखती फ़ीकी हँसी हँस दी। -तुम्हारे लिये मैं अब इतनी भी नहीं रही… कि कॉल करके बता दो… कि मैं… ख़ैर, तुम फेमस राइटर हो गये… मुझे क्यों बताओगे हर बात…?

-ऐसी बात नहीं… तुम्हारे लिये तो मैं आज भी वही हूँ… पर तुम्हें जब कुछ समझना ही नहीं, तो मैं…। -प्रकाश उसके थोड़ा करीब आया। और उसे देखता बोली। -सच कहूँ… तुम आज भी मुझे…।

तभी मनदीप उन दोनों के पास आकर खड़ा हो गया। और हँसता हुआ बोला।

-ओहो, तुम दोनों यहाँ खड़े… और मैं ऊपर फ्लोर पे खोजता फिर रहा…।

-हम दोनों बच्चे थोड़े हैं जो खो जायेंगे…। -नीलम उसे देखती हुई बोली। -तुम हमारी टेंशन मत लो…। -वह उसे देखकर मुस्कुरायी। -प्रकाश की तो बिल्कुल टेंशन मत लेना… ये अब मेरी कस्टडी में…।

-नीलम, बात खो जाने की नहीं…। -मनदीप उसकी ओर देखता बोला। -ये जनाब मेरे बहुत कहने पे तो आये… अब इन्हें कुछ प्रॉब्लम हो… तो बोलेंगे… बुला तो लिया, पर ख़ुद गायब रहे पूरे टाइम…।

-प्रकाश का ज़िम्मा अब मेरा…। -नीलम उसे देखती बोली। -ये जब तक यहाँ हैं… मेरे साथ रहेंगे…।

-ओ.के., पर शोभा को मैं क्या जवाब दूँगा…। -मनदीप उन्हें देखता, सोचता-सा बोला। -वो तो सुबह से इसका वेट कर रही… दो-तीन बार कॉल भी आ गयी उसकी… घर आना तो प्रकाश को साथ ले आना…।

-शोभा को बोल दो… प्रकाश मेरे साथ चला गया… तुम नहीं बोल पा रहे… तो मैं कॉल कर देती हूँ उसे…। -नीलम एक नज़र उसे देखा। फिर, प्रकाश को देखकर मुस्कुरायी। -मैंने प्रकाश को किडनैप कर लिया…।

-ठीक है, तुम दोनों के बीच में क्या बोल सकता हूँ…। -मनदीप रहस्यमयी ढंग से मुस्कुराया। और फिर, प्रकाश की ओर देखता बोला। -सॉरी माई डियर… तुम फँस गये यहाँ आ के… टेक केयर योर सेल्फ…।

मनदीप उन दोनों को एक नज़र देखा। और फिर, वहाँ से चला गया।

अब वे दोनों ठंड में खुले आसमान के नीचे ख़ामोश खड़े अपने-अपने में खोये इधर-उधर देख रहे थे। मानो वे अज़नबी हों एक-दूसरे के लिये। वे कभी एक-दूसरे को देख रहे थे, तो कभी इधर-उधर। ओवर कोट पहनने के बावज़ूद प्रकाश सिहरन महसूस कर रहा था। उस पल, उसका मन कर रहा था, वह अन्दर जाकर बैठ जाये, पर, वह चाहकर भी नहीं जा रहा था, क्योंकि नीलम साथ थी उसके। और वह उसकी बिना मर्ज़ी के आज भी कुछ नहीं कर सकता।

वह बायीं कलाई पर बँधी घड़ी देखी।

रात के साढ़े नौ बज गये थे।

पास खड़ी नीलम उस पर सरसरी निगाह दौड़ायी।

-प्रकाश, तुम तो बिल्कुल नहीं बदले… आज भी वैसे… जैसे पाँच साल पहले थे… मुझे तो लगा…। -वह उसे ग़ौर से देखती बोली। -सेलीब्रेटी हो गये हो… तो… लेकिन नहीं… अभी भी उसी सिम्पल अन्दाज़ में…।

प्रकाश उसे देखता मुस्कुराया।

-सच्ची यार…! मैं झूठ नहीं बोल रही…।

-थैंक यू फॉर दिस कॉम्प्लिमेंट…। -प्रकाश उसका चेहरा देखता बोला। -सेलीब्रेटी लोगों के लिये हूँ… तुम्हारे लिये… मैं आज भी प्रकाश हूँ… केवल प्रकाश…।

-थैंक यू…।

-किस बात के लिये…?

नीलम उसके थोड़ा करीब आयी।

-तुम्हें नाम से बुला सकती हूँ आज भी उसी हक़ से…।

प्रकाश उसे एक नज़र देखा। पर बोला कुछ नहीं। दूसरे पल, आस-पास नज़रें दौड़ायी।

अब सभी चले गये थे। कुहरे में लैम्पपोस्ट की रौशनी से अभी भी चारों तरफ़ हल्का उजाला था। और नीचे हरी घास पर गिरी ओस की बूँदें चमक रही थीं। लॉन में ख़ामोशी-सी छायी थी। पर, कम्पाउंड के बाहर सड़क से इक्की-दुक्की आती-जाती गाड़ियों का शोर बीच-बीच में ख़ामोशी तोड़ देता। उधर, सिक्योरिटी गॉर्ड्स इंट्रेंस गेट के पास खड़े इधर-उधर देख रहे थे।

ठंड अपना असर दिखाने लगी थी। उस पल, नीलम का चेहरा कुछ गुलाबी हो गया था। और अपनी दायीं हथेली से बायाँ बाज़ू धीरे-धीरे सहला रही थी।

-अब चलें… नहीं तो देर हो जायेगी तुम्हें…।

-क्यों…? -नीलम उसे देखकर मुस्कुरायी। -मेरे साथ अच्छा नहीं लग रहा…?

-ये बात नहीं… सब तो चले गये… अब हम ही बचे यहाँ…। -प्रकाश मेन की गेट तरफ़ इशारा करता हुआ। -गॉर्ड्स हमारा वेट कर रहें… हम यहाँ से जायें… तो वे गेट बन्द करें…।

-तो कहाँ जाओगे…?

-कहाँ क्या…? प्रकाश उसका मुस्कुराता चेहरा देखता बोला। -तुम अपने घर… और मैं होटल…।

नीलम दूसरी तरफ़ देखती बुदबुदायी।

-घ… र…।

प्रकाश उसकी बात ठीक से सुन नहीं पाया, तो वह उसे देखता उससे पूछा।

-कुछ कहा तुमने…?

-नहीं… नहीं…। -वह थोड़ा हड़बड़ाती-सी बोली। -कुछ नहीं…।

-फिर…।

-मैं भी चलती हूँ तुम्हारे साथ…। -वह उसे सवालिया नज़रों देखती हुई। -तुम्हें कोई प्रॉब्लम…?

-नहीं…।

-तो फिर लेट्स कम विद मी…।

नीलम उसे देख, मुस्कुराती बोली।

वे दोनों धीरे-धीरे इधर-उधर देखते बिल्डिंग लॉबी में आये। फिर, कम्पाउंड में आये। और फिर, बाहर इंट्रेस गेट के पास आकर सड़क किनारे फुटपाथ पर खड़े हो गये। दूसरे पल, नीलम उसे खड़े रहने का इशारा किया। और उसे अकेला छोड़ दूसरी तरफ़ चली गयी।

स्ट्रीट लाइट्स की रौशनी उजाला किये थी। लेकिन, कुहरे के चलते दूर तक साफ़-साफ़ कुछ भी दिख नहीं रहा था। सड़क से अभी भी एकाध लोग ठंड के मारे सिकुड़े-सिकुड़े-से भागे जा रहे थे। और थोड़ी-थोड़ी देर में शोर करती गाड़ियाँ कमोबेश तेज़ी से आ-जा रही थीं।

प्रकाश अभी भी फुटपाथ पर ख़ामोश खड़ा, भीतर तक ठंड महसूस करता, नीलम का इन्तज़ार कर रहा था। और इधर-उधर देखता सोच रहा था।

-मनदीप के साथ चला गया होता… तो शोभा से मिल लेता… और उसके बेटे से भी… नीलम को भी मना नहीं कर पाया… कर देता, तो बुरा मान जाती…।

तभी, नीलम कार लिये वहाँ आयी। और उसके पास खड़ी कर दी। दूसरे पल, वह ड्राइविंग सीट पर बैठी खिड़की खोलकर उसे इशारे से बुलाया। तो प्रकाश उसके पास गया। कार का डोर खोला। और उसके बगल वाली सीट पर बैठ गया। नीलम कार आगे बढ़ा दी।

-अकेले चले आये… वाइफ़ क्यों नहीं लाये साथ में…? आयी होती, तो उससे भी मिल लेती…।

नीलम कार ड्राइव करती बोली।

-वाइफ़ होती… तो ले आता…।

प्रकाश उसे देखकर मुस्कुराया।

-शादी क्यों नहीं की तुमने…? -नीलम भर निगाह उसे देखा। और फिर, कार ड्राइव करती, सामने की तरफ़ देखती बोली। -कोई लड़की नहीं मिली या लड़की तो मिली… पर तुमने ख़ुद नहीं की…।

प्रकाश कुछ नहीं बोला।

-तुम जवाब नहीं दे रहे…। -वह सिग्नल पर कार रोकती बोली। -तुम चुप क्यों हो…? -वह प्रकाश का ख़ामोश चेहरा देखकर मुस्कुरायी। -समझ गयी… नहीं बताना चाहते… तो मत बताओ…।

इतने में, सिग्नल ग्रीन हो गया। नीलम दायें पैर से एक्सेलेटर दबाया। कार सड़क पर दौड़ने लगी।

प्रकाश सीट पर चुप बैठा कार की खिड़की से बाहर देख रहा था।

बाहर धुंध अब पहले से बढ़ गयी थी। स्ट्रीट लाइट्स की रौशनी का दायरा कम हो गया था। बारह खम्भा रोड की बायीं तरफ़ खड़ी बिल्डिंग्स साफ़-साफ़ दिखायी नहीं दे रही थी। केवल उनके होने का आभास भर हो रहा था। सड़क किनारे फुटपाथ से कोई आ-जा भी नहीं रहा था। हालांकि, पीछे से एकाध गाड़ी आती। और ओवर टेक करके आगे निकल जाती। तभी नीलम कार बायीं तरफ़ मोड़ दी। और कार कनाट प्लेस आउटर सर्किल पर आ गयी।

इस दौरान उन दोनों के बीच ख़ामोशी छायी रही।

-तुम चुप-चुप क्यों हो…? मैं ही बोले जा रही हूँ… तुम भी तो कुछ बोलो… पहले कितना बोलते थे…।

नीलम साथ बैठे प्रकाश को देखती बोली, तो प्रकाश उसे गहरी नज़र से देखा।

-संजीव क्यों नहीं आया… मुझसे नाराज़ है…?

-ये क्या बात हुई… मेरी बात का जवाब दिये नहीं…। -कार ड्राइव करती नीलम सामने की ओर देखती बोली। -उल्टे मुझसे ही सवाल कर रहे…।

कार अब पटेल चौक से होती अशोक मार्ग पर आ गयी थी। और धीमी रफ्तार से सड़क पर दौड़ रही थी।

-किस बात का…?

प्रकाश उसे देखकर मुस्कुराया।

-यही कि अभी तक सिंगल क्यों हो…?

नीलम उसे देखती बोली। और कार रोक दी।

-तुमने कार क्यों रोक दी…?

-तुम्हारी मंज़िल आ गयी… इसलिये…।

वह उसका चेहरा देखती बोली।

-मंज़िल कहाँ किसे मिली, जो मुझे मिल जायेगी…। -वह धीरे से बोला। -लोग सफ़र में तो रहते हैं आख़िर तक…।

सीट पर बैठा प्रकाश कार की खिड़की से बाहर देखा। सड़क किनारे दीवार पर बड़े-बड़े वर्ड्स में लिखा था।

‘ली मेरिडियन’

दूसरे पल, वह बायीं कलाई पर बँधी घड़ी देखी।

घड़ी रात के दस बजा रही थी।

‘ली मेरिडयन’ कैफ़ेटेरिया सफ़ेद रौशनी से भरा था। वेटर टेबल के साथ कुर्सियों पर बैठे, मुँह डुलाते, कप होंठों से लगाते-हटाते लोगों के पास जाते। उनसे ऑर्डर लेते। फिर, वहाँ से चले जाते। और वे दोनों भी लोगों से थोड़ा हटकर खिड़की के साथ वाली टेबल के आमने-सामने कुर्सी पर बैठे थे। उस समय, नीलम ख़ामोशी बैठी इधर-उधर देख रही थी। और कुछ सोच-सी रही थी।

-क्या सोच रही हो…? ऐनी प्रॉब्लम…?

प्रकाश उसका ख़ामोश चेहरा देखता बोला।

-मेरी कभी याद नहीं आयी तुम्हें…?

नीलम के इस सवाल से प्रकाश सहसा चौंक गया। और वह पल भर सोच में पड़ गया। -उसे क्या जवाब दे, क्योंकि उसे उम्मीद नहीं थी, कि वह ऐसा भी कुछ पूछ बैठेगी। -उसे ख़ामोश देख, वह अपलक देखती उससे पूछी।

-चुप क्यों हो प्रकाश…? यार, कुछ तो बोलो…।

-नीलम, बीती बातें भूल जाओ… अब तुम्हारी फेमली है… तुम्हारा अपना घर है… तुम्हारी अपनी दुनिया…। -प्रकाश उसे अपलक देखता बोला। -तुम अपनों को सम्भालो… ज़िन्दगी बेहतर बनाने की कोशिश करो…। -वह ख़ामोश बैठी उसे देख रही थी। दूसरे पल, प्रकाश अगल-बगल देखा। और फिर, उसके चेहरे पर उभरती-मिटती लकीरें देखता हुआ। -नीलम, जो पीछे छूट गया… उस पे बात करने से कोई फ़ायदा नहीं… सिवाय ख़ुद को… अपनों को परेशान करने के…।

-मेरी बात का जवाब, तुम अभी भी तक नहीं दिये…। -नीलम उसे देखकर मुस्कुरायी। -सच में… तुम राइटर लोग… किसी बात का सीधे जवाब नहीं देते…।

-जवाब ही तो दे रहा हूँ तुम्हें… तुम बताओ… कैसे दूँ…?

-कैसे क्या…? सीधे-सीधे, यस या नो…।

नीलम कॉफ़ी कप टेबल पर रख उसे देखती बोली।

-मैं अगर ये कहूँ… तुम मुझे कभी याद नहीं आयी तो…।

सहसा, नीलम अन्दर तक हिल गयी। पर, दूसरे पल, ख़ुद को सम्भालती बोली।

-तुम झूठ बोल रहे न…! -वह उसकी आँखों में देखती बोली। -यक़ीन नहीं हो रहा तुम्हारी बात पे…।

-तुम सही कह रही हो…। -प्रकाश ग़ौर से उसका चेहरा देखता बोला। -मैं तुम्हें कभी भूल नहीं पाया…।

-थैंक यू… मुझे जवाब मिल गया…।

नीलम उसे देखकर मुस्कुरायी।

-बट अब वो पास्ट है… मेरे-तुम्हारे बीच का…। -प्रकाश कुछ सोचता-सा बोला। -इसे अब पास्ट ही रहने दो… नहीं तो सब बिखर जायेगा…।

तभी वेटर उनकी टेबल के पास आकर खड़ा हो गया। दूसरे पल, प्रकाश बिल पे किया। और वेटर वहाँ से चला गया।

उन दोनों के अगल-बगल बैठे दूसरे लोग अब चले गये थे। लेकिन, वे दोनों अभी भी ख़ामोशी से बैठे इधर-उधर देख रहे थे। सहसा, नीलम उसे देखकर बीच की ख़ामोशी तोड़ी।

-प्रकाश तुम ख़ुश हो न… अपनी लाइफ़ से…!

वह कॉफ़ी की आख़िरी सिप गले से नीचे उतारा। और कप टेबल पर रखकर उसे देखा।

-यस… आई एम वेरी हैपी विद माई लाइफ़…।

वह हल्का-सा मुस्कुराया।

-पिर झूठ… सफ़ेद झूठ…। -नीलम उसे देखकर खीझती-सी बोली। -तुम कितना झूठ बोलने लगे यार…।

दूसरे पल, प्रकाश ज़ोर से हँसा।

-वापिस कब जा रहे…?

-कल रात की फ्लाइट से… बाकी देखते हैं…। -वह उसे देखकर हँसा। -कब जाने देती हो…?

-ओ.के. पर… मुझसे बिना मिले मत जाना…। -नीलम टेबल से कार की ‘की’ हाथ में लेकर, उसे देखती बोली। -मैं सी ऑफ़ करने चलूँगी तुम्हें…।

दूसरे पल, वह चुप हो गयी। और ख़ामोशी से कुछ सोचती-सी इधर-उधर देखने लगी। तभी प्रकाश बगल दीवार पर टँगी घड़ी देखी।

रात के पौने ग्यारह बज गये थे।

-अरे यार, बातों-बातों में… टाइम का पता ही नहीं चला…।

-तो क्या हुआ…?

नीलम सहजता से बोली। और ख़ामोशी हो गयी। फिर, वह दुबारा से पहले की तरह कहीं खो-सी गयी।

-सॉरी यार, मेरी वजह से तुम लेट हो गयी…। -प्रकाश उसका खोया-खोया-सा चेहरा देखता हुआ। -घर पे संजीव इन्तज़ार कर रहा होगा…। -वह पल भर रुका। पर, नीलम कुछ नहीं बोली। वह गम्भीर ख़ामोशी बैठी से उसे देख रही थी। दूसरे पल, वह बिना कुछ बोले कॉफ़ी कप उठाया, उसे होंठो से लगाया। कॉफ़ी की आख़िरी सिप गले से नीचे उतारा। खाली कप टेबल पर रखकर, उसे अपलक देखने लगी। तभी प्रकाश उसे देखता बोला। -संजीव से बोल देना… तुम मेरे साथ थी… वो कुछ नहीं बोलेगा… फिर भी, वो कुछ बोले या गुस्सा हो… तो मेरी बात करा देना उससे… मैं ठीक से समझा दूँगा उस बेवकूफ़ को…।

-हम दोनों अब साथ नहीं रहते…। -नीलम उसे गहरी नज़र से देखती बोली। -मेरा उससे डिवोर्स हो गया…।

ये सुनते प्रकाश अन्दर तक हिल गया। वह कुछ उससे पूछ पाता, कि नीलम कुर्सी से उठी। और वहाँ से चली गयी। और प्रकाश अभी भी कुर्सी पर चुपचाप बैठा अपलक उसे जाता देखता रहा।

 

-मेरा उससे डिवोर्स हो गया…।

होटल के कमरे में सफ़ेद रौशनी भरी थी। कमरे रखी हर चीज़ साफ़-साफ़ दिख रही थी।

उस समय, प्रकाश चहल-क़दमी कर रहा था। और बीते दिनों में खोया था।

-वो तो ख़ुद अपनी मर्ज़ी से जुड़ी थी संजीव से… उससे शादी भी अपनी मर्ज़ी से की… फिर क्या हुआ होगा दोनों में, कि वे अलग हो गये… वो भी शादी के तीन साल बीतते-बीतते… कभी उम्मीद नहीं थी… नीलम ऐसा भी फ़ैसला लेगी… या उसकी लाइफ़ में ऐसा भी कुछ होगा…।

प्रकाश के दिल-ओ-दिमाग में उथल-पथल मची थी। कोई दुःख नहीं, नीलम उसकी लाइफ़ में नहीं। पर, उसे अफ़सोस ज़रूर हो रहा था, कि उसकी अच्छी-ख़ासी ज़िन्दगी बिखर गयी।

-नीलम अपनी लाइफ़ का हर फ़ैसला ख़ुद करती रही… उसके किसी भी फ़ैसले पे किसी ने कभी टोका नहीं… चाहे उसके पैरेंट्स हों… चाहे क्लोज़ फैंरड्स हों…। -वह गहरी साँस लेकर बुदबुदाया। -मैंने भी तो उसके किसी फ़ैसले में दख़ल नहीं दिया कभी…। -दूसरे पल, उसे ज़हन में सबकुछ ताज़ा हो आया।

-मैं भी तो करीब रहा हूँ उसके…।

मनदीप और शोभा की शादी वाले दिन प्रकाश और नीलम का जो परिचय हुआ, वह परिचय दोस्ती में तब्दील होता गया। फिर, इत्तेफ़ाक ये हुआ उनका एम.फ़िल कोर्स में एडमिशन सेम यूनिवर्सिटी, सेम डिपार्टमेंट में हो गया। तो वे अक्सर साथ रहने लगे। साथ-साथ रहने से उनमें अंडरस्टैंडिंग बन गयी। पिर तो, प्रकाश और नीलम की दुनिया उन्हीं तक सिमट गयी। वे शहर में जहाँ भी जाते, साथ होते। आदत हो गयी थी उन्हें एक-दूसरे की। और वे दोनों केवल एक-दूसरे के बारे में सोचते, बातें करते।

उस सुबह नीलम उसके घर आयी। प्रकाश कमरे में बेड पर लेटा न्यूज़ पेपर पढ़ रहा था। उसे कमरे में देखते, वह उठकर बेड पर बैठ गया। तो वह उसके पास आयी। और बेड के किनारे बैठ गयी। वे कुछ इधर-उधर, कुछ अपने-अपने टॉपिक से रिलेटेड बातें करने लगे। बातों-बातों में नीलम उससे बोली।

-डू यू नो…? संजीव का एम.टेक. कम्प्लीट हो गया…। -वह ख़ुश होती बोली। -उसकी जॉब लग गयी… और वो कल बैंग्लोर चला गया…।

-ये तो गुड न्यूज़ सुनायी तुमने…।

प्रकाश उसे देखता बोला।

-अच्छा हुआ न उसका…।

नीलम बेड से उठी। और आकर स्ट्डी टेबल के साथ रखी कुर्सी पर बैठ गयी।

-वो जब वापिस आयेगा, तो उससे पार्टी लेंगे… बड़ी वाली…। -वह उसे देखता हुआ। -कैसा रहेगा…!

-अच्छी प्लानिंग… लेकिन, पहले वो वापिस तो आ जाये…। -कुर्सी पर बैठी नीलम उसे देखती हुई। -उस पार्टी में केवल हम नहीं… सारे रहेंगे…।

वे दोनों अपनी-अपनी जगह बैठे आपस में बातें कर रहे थे। तभी प्रकाश की मम्मी वहाँ आ गयीं, तो उनकी बात-चीत का टॉपिक बदल गया।  उसकी मम्मी नीलम के पैरेंट्स का हाल-चाल पूछने लगीं। इस बीच, प्रकाश रूम से उठकर बाहर चला गया। पर वह उसकी मम्मी के पास बैठकर बातें करती रही। थोड़ी देर में, वह तैयार होकर कमरे में वापिस आया। तो उसकी मम्मी बाहर चली गयीं। कुछ देर बाद, वह दोनों के लिये प्लेट में खाना लेकर आयीं। दोनों प्लेट्स बेड पर रखकर चली गयीं। उन्होंने बेड पर साथ बैठकर खाना खाया। और फिर, वे कमरे से बाहर चले गये।

प्रकाश और नीलम, दोनों का एक-दूसरे के साथ रहते, लड़ते-झगड़ते, एक-दूसरे को समझने की कोशिश करते, एक-दूसरे की हेल्प करते, एक-दूसरे के घर आते-जाते एक साल बीत गया। इस दौरान, प्रकाश की दिलचस्पी लिट्ट्रेचर में बढ़ने लगी। इसी दिलचस्पी के चलते, वह लिट्ट्रेचर पढ़ने के साथ-साथ काग़ज़ भी काले करने लगा। नतीज़ा, एम.पिफल. डिर्जे़टेशन कम्प्लीट होते-होते कुछ कवितायें, दो-एक कहानियाँ लिख डालीं। और दिल्ली की फेमस मैगज़ीन में पब्लिश हुईं। उसकी लिट्ट्रेरी क्रिएटिव एचिवमेंट से नीलम बहुत ख़ुश हुई। हालांकि, वह प्रकाश से अक्सर बोलती रहती।

-राइटर लोग दिन-रात राइटिंग करते-करते मरते रहते… उन्हें मिलता क्या…? वे राइटिंग से ख़ुद का ख़र्च तो उठा नहीं पाते… घर का ख़र्च कैसे उठाते होंगे…।

लेकिन, प्रकाश के दिल-ओ-दिमाग़ पर लिट्ट्रेचर पढ़ने, राइटिंग करने का ज़ुनून सवार हो गया उन दिनों। ख़ैर, कुछ महीनों बाद, उन्होंने अपनी-अपनी एम.फ़िल डिज़र्टेशन डिपार्टमेंट में सब्मिट की। फिर, कुछ दिनों में उन दोनों को एमपि़फल की डिग्री मिल गयी। इसके बाद, नीलम पीएच.डी. एडमिशन की प्रीप्रेशन में लग गयी। लेकिन, प्रकाश घर की सिचुएशन देखते जॉब की तलाश में लग गया। उन दिनों, नीलम उसे मेंटली सपोर्ट करती रहती। वह हमेशा उससे बोलती।

-प्रकाश, तुम परेशान मत होओ… सब बेटर होगा… तुम न पेशन्स बनाये रखो… ख़ुद पे कॉनफ़िडेंस रखो… आई एम ऑवेज़ विद यू…।

काफ़ी जद्दोज़हद के बाद, प्रकाश के जॉब की तलाश ख़त्म हुई छोटे-से पब्लिकेशन हाउस में। इससे, उसका नीलम से मुलाक़ातों का दौर कम हो गया। पर, फ़ोन से उनके बीच पहले की तरह रिश्ता बना रहा। वे वीक एंड पर एक-दूसरे से ज़रूर मिलते। घंटों शहर में इधर-उधर घूमते, किसी दिन कनाट प्लेस, किसी दिन लाजपत नगर, तो किसी दिन सरोजिनी नगर। फिर, वे वापिस होते टाइम किसी कैफ़े या रेस्टोरेंट में चले जाते। और एक-दूसरे से अपनी-अपनी ख़ुशियाँ, अपने-अपने ग़म बाँटते।

उस वीक एंड पर वे दोनों कनाट प्लेस के आनन्द कैफ़े में बैठे चाय पी रहे थे। और एक-दूसरे बातें कर रहे थे।

-यार तुम्हें पता चला कि नहीं…?

-बताओगी नहीं… तो मुझे पता कैसे चलेगा…।

-बहुत ढाँसू ब्रेकिंग न्यूज़ है मेरे पास…।

-अब बताओ भी न यार…।

वह चाय का कप टेबल पर रखता बोला।

-तुम्हारे जिगरी दोस्त संजीव… दिल्ली वापिस आ गये…। -वह नाटकीय ढंग से बोली। -जनाब की जॉब भी लग गयी… यहीं गुड़गाँव, किसी कम्पनी में…।

-फिर तो… उसे पार्टी को बोल देना मेरी ओर से…। -प्रकाश ख़ुश होता बोला। -कोई गोलेबाजी नहीं चलेगी…।

-ओ.के., बोल दूँगी उसे…।

कुछ देर, दोनों के बीच ख़ामोशी बनी रही। फिर, वे दोनों कुर्सी से उठे। और कैफ़े से बाहर आ गये।

वह ख़ुशनुमा शाम थी। आसमान साफ़ था। डिस्ट्रिक सेंटर में चहल-पहल थी। छोटी-बड़ी बिल्डिंग्स में दुकानें सफ़ेद रौशनी से भरी थी। हर दुकान में कमोबेश भीड़ थी। लोग शॉपिंग करने में लगे हुए थे। और हम लोग एक मॉल के बाहर खड़े उजबक-से इधर-उधर देख रहे थे। लोग जहाँ-तहाँ अपनों के साथ चहल-क़दमी कर रहे थे। लॉन के किनारे थोड़ी-थोड़ी दूरी पर रखी बेंच पर सटकर बैठे जोड़े होंठ हिला रहे थे।

लगभग आध घंटा हो गया था। लेकिन, मनदीप और शोभा दोनों नहीं पहुँचे थे। उस शाम भी हमें मालूम नहीं था, कि वे दोनों आयेंगे, कि नहीं? और आयेंगे, तो कब तक?

-यार वो तो कहीं दिख नहीं रहें… लग रहा… स्साला, आज भी गोला देंगे दोनों…।

संजीव सिर खुजलाता बोला।

-तू ऐसा क्यों बोल रहा… डोंट वरी, वो आज ज़रूर आयेंगे…।

प्रकाश एक नज़र बगल खड़ी नीलम को देखा। और फिर, संजीव को देखता बोला।

-तू इतने कॉनफ़िडेंस से कैसे कह रहा…?

-आज उन दोनों को मैंने नहीं…। -प्रकाश पहले संजीव की तरफ़ देखा। दूसरे पल, नीलम को देखकर आँख मारी। -नीलम ने इनवाइट किया उन दोनों को…।

-फिर भरोसा कर लेता हूँ उन पे…। -संजीव उसे देखकर बोला। -लेकिन, दस मिनट में वो दोनों नहीं आये… तो पार्टी शुरू कर देंगे…।

-ओ.के.।

मालती, रौनक और शहनाज़ कोरस में बोले।

तभी उन्होंने देखा-मनदीप और शोभा धीरे-धीरे इधर-उधर देखते चले आ रहे।

ख़ैर, वे जब उनके पास आ गये, तो नीलम उन दोनों को गुस्से से देखती बोली।

-अबे, तुम दोनों आज भी लेट…। -वह शोभा को गुस्से से देखती हुई। -आज तो टाइम पे आ जाते…।

मनदीप के साथ खड़ी शोभा मुस्कुरायी। और फिर, मनदीप की तरफ़ इशारा किया।

-मुझसे नहीं, मनदीप से पूछो…।

सहसा, मनदीप ज़ोर से हँसा। फिर, चुप हो गया।

-चलो… जल्दी चलो… पार्टी शुरू करो… यार तुम लोग न…। -वह सभी की तरफ़ देखता बोला। -यहाँ खड़े रह के टाइम वेस्ट मत करो…।

नीलम मुस्कुराती पल भर मनदीप को देखती रही। और पिर, हम सबके साथ डोमिनो के अन्दर चली गयी।

उस शाम डोमिनो में हम सबने एक साथ बैठ कर ख़ूब बातें की। और अपनी-अपनी मनपसन्द चीजे़ं खायीं। और फिर, हम सारे डोमिनो से बाहर आ गये।

अब रात हो गयी थी। लॉन में लैम्पपोस्ट की रौशनी चारों तरफ़ बिखरी थी। हम लोग लॉन में बैठकर कुछ देर एक-दूसरे के साथ मस्ती की, गॉशिप की, टाँग खिंचायी की। और पिर, अपने-अपने घर की तरफ़ चल दिये। लेकिन, ये क्या! घर वापिस लौटते समय, नीलम हमेशा की तरह प्रकाश के साथ आने की बजाय, वह संजीव की कार में बैठकर चली गयी। उस पल, प्रकाश को बुरा तो लगा। पर, वह उससे कुछ बोला नहीं।

ऑफ़िस टाइम ख़त्म होने को था। लेकिन, प्रकाश टेबल पर फ़ाइल खोल, सिर झुकाये किसी बुक का करेक्शन कर रहा था। तभी केबिन में पियोन आया। और उसकी टेबल के सामने खड़ा हो गया।

-प्रकाश सर, एक मैडम आयी हैं… वो…।

सहसा, वह चौंकता-सा उसे देखा।

-वेट… आ रहा हूँ… दो मिनट में…।

दूसरे पल, दीवार पर टँगी घड़ी देखी।

शाम के साढ़े पाँच बज गये थे।

वह फ़ाइल बन्द कर कुर्सी से उठा। और केबिन से बाहर आ गया।

वेटिंग रूम में वह नीलम को देखकर चौंक गया।

-अरे नीलम तुम! यहाँ कैसे? सब ख़ैरियत…! -वह अचरज से उसे देखता बोला। -मुझे तो यक़ीन नहीं हो रहा… तुम मेरी ऑफ़िस में… वो भी बिन बताये…।

-तुम्हें सरप्राइज़ देना चाहती थी, तो आ गयी…। -नीलम उसे देखती बोली। -तुम्हारे घर तो आती रहती हूँ… सोचा आज ऑफ़िस भी देख लूँ…।

प्रकाश कुछ देर इधर-उधर देखता रहा। फिर, वह पब्लिकेशन हेड के केबिन की तरफ़ चला गया। कुछ देर बाद, वह वेटिंग रूम में वापिस आया। और उसके साथ ऑफ़िस से बाहर आ गया।

वे दोनों धौली प्याऊ के फेमस श्यामा रेस्टोरेंट में आये। उन्होंने फास्ट फूड खाये, चाय पी। और वे कुछ देर तक यूँ ही बैठकर गपशप करते रहे। नीलम उसे जब बताया-वह ऑफ़िस आने से पहले, उसके घर गयी थी, उसकी मम्मी से मिल के आ रही। तो पल भर प्रकाश उसे सवालिया नज़रों से देखता रहा। और फिर, वह उसके साथ रेस्टोरेंट से बाहर आ गया।

उस समय, शाम हो गयी थी। वे दोनों चुपचाप सड़क किनारे फुटपाथ पर इधर-उधर देखते धीरे-धीरे चल रहे थे। स्ट्रीट लाइट्स की रौशनी चारों तरफ़ फैली थी। अगल-बगल से लोग आ-जा रहे थे। सड़क पर तेज़ रफ्तार से गाड़ियाँ आ-जा रही थी।

अब वे दोनों बस स्टॉप के बगल चुपचाप खड़े थे। और उनसें थोड़ा हटकर कुछ लोग खड़े हाथों में हैंड बैग लटकाये इधर-उधर देख रहे थे। शायद, वे बस आने का इन्तज़ार कर रहे थे। उस समय प्रकाश किसी सोच में खोया हुआ था। तभी नीलम उसे देखती बोली।

-तुम्हारे ऑफ़िस के क्या हाल-चाल है…?

-फ़िलहाल तो ठीक चल रहा…।

-तुम बहुत अच्छा करोगे फ्यूचर में…। -नीलम उसका ख़ामोश चेहरा देखती बोली। -तुम्हारी राइटिंग बहुत दूर तक ले जायेगी तुम्हें…।

प्रकाश मुस्कुराता उसे एक नज़र देखा।

-मैं सच कह रही हूँ! -वह उसका मुस्कुराता चेहरा देखकर बोली। -और तुम मज़ाक में ले रहे…।

-होप सो… पर, मैं जानता हूँ…। -वह कुछ सोचता-सा बोला। -राइटर्स को ले के तुम्हारी ओपिनयन…।

-वो ओपियन दूसरे राइटर्स की रिगॉर्डिंग… तुम्हारे नहीं…।

वह चुपचाप खड़ी उसे देख रही थी।

-आई नो… वेरी वेल…। -प्रकाश उसे देखता बोला। -बट नॉव लीव दिस टॉपिक…।

प्रकाश चुपचाप उसके चेहरे पर उभरती-मिटती लकीरें देख रहा था। वह कुछ परेशान-सी दिख रही थी। कुछ देर उन दोनों के बीच ख़ामोशी छायी रही।

-प्रकाश, प्रॉमिस करो…। -नीलम उसका ख़ामोश चेहरा देखती बोली। -तुम ग़लत नहीं समझोगे मुझे…।

-मैंने कहाँ कभी ग़लत समझा तुम्हें…।

वह उसके करीब आया। और चुपचाप उसे ग़ौर से देखने लगा।

-तुम बहुत अच्छे हो… तुम्हारे पैरेंट्स भी बहुत अच्छे हैं… तुम प्यार करते हो मुझे… पर…। -वह उसका ख़ामोश चेहरा देखती हुई। -संजीव जब से आया है न… तब से जाने कैसे उसकी तरफ़ खिंचती चली गयी… वो अच्छा लड़का है… वो मेरा ख़याल भी रख रहा…। -वह पल भर प्रकाश का ख़ामोश चेहरा देखती रही। और फिर, सिर नीचे करके बोली। -आई एम सॉरी प्रकाश, तुम्हें ये अभी तक नहीं बताया… डरती थी… कहीं तुम…।

-कौन-सी बात…?

प्रकाश उसे देखता धीरे से उससे पूछा।

वह चुप खड़ा उसका चेहरा पढ़ने की कोशिश कर रहा था।

-कैसे कहूँ तुमसे… समझ नहीं आ रहा…।

नीलम सिर नीचे किये बोली।

-कहो न यार… जो भी मन में हो…।

प्रकाश उसे देखता बोला।

-आई एम वेरी सॉरी प्रकाश, मैं और संजीव शादी कर रहें…।

बोलते-बोलते नीलम की आँखें भर आयीं। और प्रकाश पूरी तरह भीतर तक हिल गया था। लेकिन, दूसरे पल ख़ुद को सम्भाल, वह अपने भीतर उठ रही हलचल उससे छिपाता बोला।

-अरे यार, इसमें सॉरी की क्या बात… ये तो सच में ब्रेकिंग एंड गुड न्यूज़ सुनायी तुमने…। -वह दोनों हाथों से उसका चेहरा ऊपर उठाता हुआ। -तुम मैरिज़ करने जा रही… वो भी मेरे दोस्त से…।

-तुम गुस्सा तो नहीं हो न मुझसे…?

-नहीं, बिल्कुल नहीं…।

वह ज़बरदस्ती मुस्कुराया।

उस पल, नीलम समझ गयी थी कि प्रकाश को बहुत दुःख हो रहा मेरे इस फ़ैसले से। सहसा, नीलम आँखों में आँसू लिये उसके सीने से लग गयी। कुछ पल, वह उसे अपने सीने से लगाये खड़ी रही। और फिर वह उससे अलग हो गयी।

-मम्मी को दे दी ये गुड न्यूज़…?

नीलम ‘न’ में सिर हिलाया।

-क्यों…? ये ख़बर सुन के। -प्रकाश गीली आँखों से इधर-उधर देखता बोला। -मम्मी बहुत ख़ुश होती…।

-हिम्मत नहीं हुई, उन्हें बताने की…।

-ओ.के., मैं बता दूँगा उन्हें…।

वे अब कुछ बोल नहीं रहे थे। वे दोनों अपने-अपने दिल में उठ रही हलचल को दबाने की कोशिश करते, चुपचाप खड़े इधर-उधर देख रहे थे। तभी उसे दूर से एक बस आती दिखी।

-नीलम, तुम्हारी बस आ रही…। -प्रकाश उसे एक नज़र देखा। फिर, तेज़ रफ्तार में आ रही बस को देखता बोला। -तुम इसी से चली जाओ, नहीं तो लेट हो जाओगी…।

वह कुछ नहीं बोली। वह ख़ामोश खड़ी उसे अपलक देख रही थी। और प्रकाश चुपचाप खड़ा कभी नीलम को देख रहा था, तो कभी तेज़ी से आ रही बस को। उस पल, नीलम के मन में हलचल उठ-बैठ रही थी। वह उससे बहुत कुछ कहना चाह रही थी, शायद अपने फ़ैसले की सफ़ाई में। तभी स्टॉप के आगे बस आकर खड़ी हो गयी। दूसरे पल, वह उसे बिना देखे तेज़ी से बस के अन्दर चली गयी। उसके पीछे दूसरे लोग भी बस में चढ़ गये। और बस तेज़ी से आगे बढ़ गयी।

प्रकाश स्ट्रीट लाइट्स की रौशनी में बस स्टॉप के नीचे बेंच पर ख़ामोश बैठा था। उसके दिल-ओ-दिमाग़ में उथल-पुथल मची थी। अनेक सवालात उठ रहे थे। और वह निराश, हैरान-परेशान-सा उजबक की तरह बे-मतलब इधर-उधर देख रहा था।

सहसा, डोर बेल बज उठी। प्रकाश हड़बड़ाकर कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया। मानो वह गहरी नींद में हो। और किसी ने नींद से जगा दिया हो। कमरे में सफ़ेद रौशनी भरी थी। और हर चीज़ साफ़-साफ़ दिख रही थी। फिर, वह चेहरे पर दायीं हथेली फिराता, दरवाजे़ तक आया। दरवाज़ा खोला। सामने होटल का वेटर खड़ा था। दूसरे पल, वह उसे देखकर मुस्कुराया।

-सर, कुछ चाहिये… तो आप कॉल बेल बजा दीजियेगा…। -वेटर उसे देखता बोला। -मैं हाज़िर हो जाऊँगा…।

-इट्स ओ.के. एंड थैंक यू…।

प्रकाश हाथ से बालों को ठीक करता बोला।

-मोस्ट वेलकम सर… गुड नाइट सर…।

वेटर ये कहकर दूसरी तरफ़ चला गया।

प्रकाश अन्दर से दरवाज़ा बन्द कर वापिस आया। और सिर नीचे किये चहल-क़दमी करने लगा।

-मेरा उससे डिवोर्स हो गया…।

वह बुदबुदाया। दूसरे पल, वह बेड के पास आया। और उस पर लेट गया।

-संजीव को मैं अच्छा समझता रहा… अगर उन दोनों में डिफ़रेन्सस आ भी गये… तो आपस में बात करके सुलझाना चाहिये था, न कि डिवोर्स ले के सेपरेट हो जाओ… अब ग़लती किसकी… ये वो दोनों जानते होंगे…।

तभी उसकी नज़र बेड के सामने वाली दीवार पर टँगी घड़ी पर चली गयी।

रात के साढ़े बारह बज गये थे।

प्रकाश साइड टेबल से सेलफ़ोन उठाया। सेलफ़ोन की स्क्रीन ऑन करके, पहले ह्नॉट्सअप मैसेस चेक किया। फिर स्टेट्स। दूसरे पल, सेलफ़ोन की स्क्रीन ऑफ़ कर, साइड टेबल पर रखा। और दायाँ हाथ बेड के सिरहाने ले गया। और फिर, स्विच बोर्ड में से एक स्विच दबा दी। कमरा अँधेरे से भर गया। वह अब आँखें बन्द किये बेड पर लेटा, सोने की कोशिश कर रहा था। पर, नींद उसकी आँखों दूर थी। सहसा, उसे वह शाम याद हो आयी।

उस शाम, रिसेप्शन पार्टी थी नीलम और संजीव की। पार्टी में कुछ ख़ास लोग इनवाइटेड थे। तो पार्टी का अरेंजमेंट घर के बड़े हॉल में थी। मैरिज़ तो दोनों ने चार दिन पहले, मनदीप और शोभा की तरह कोर्ट में कर ली थी। उसमें प्रकाश भी शामिल हुआ। आख़िर, नीलम का ऑर्डर जो था उसे। पर पूरे मैरिज़ प्रॉसिज़र के दौरान वह अमूमन चुप रहा। ख़ास बात ये कि, नीलम और संजीव की शादी में उनके पैरेंट्स की रज़ामन्दी थी। तो पूरे टाइम मैरिज़ रजिस्ट्रॉर आफ़िस में वे भी मौज़ूद रहे।

ख़ैर, प्रकाश अनमने मन से अपने पैरेंट्स के साथ उनकी रिसेप्शन पार्टी में आया। वहाँ न डी.जे. बज रहा था, न कोई डांस कर रहा था। कुछ लोग इधर-उधर खड़े, कुछ कुर्सी पर बैठे गॉशिप्स में लगे थे। थोड़ी देर बाद, उसके पापा-मम्मी तो नीलम के पैरेंट्स के पास चले गये। और वह गिफ्ट लेकर नीलम और संजीव के पास।

राउंड टेबल के चारों ओर मनदीप, शोभा, मालती, शहनाज़, रौनक-सारे उन्हें घेरे बैठे गपशप कर रहे थे। वह उनके बगल खाली कुर्सी पर आकर बैठा, तो नीलम थोड़ा असहज हो गयी। प्रकाश उसे गिफ्ट देने के लिये अपना हाथ उसकी तरफ़ बढ़ाया, तो उससे न ‘थैंक यू’ बोला जा रहा था। और न वह उससे आँखें नहीं मिला पा रही थी। इस बीच, संजीव अपनी जगह खड़ा हो गया।

-यार नीलम, स्माइल प्लीज़…। -प्रकाश उसे देखता बोला। -आई विश यू वेरी वेरी हैपी मैरिड लाइफ़…।

़ा हो गया व ी हैपी मैरिड लाइप़फदूसरे पल, वह नीलम के साथ खड़े संजीव को गले लगाया। और फिर, वहाँ से वापिस चला आया।

उसे घर वापिस आते-आते रात हो गयी। वह चुपचाप कमरे में आया। और ख़ामोशी से बेड पर लेट गया। देर तक, वह बेड पर चुपचाप लेटा रहा। रात नींद कब आयी, उसे मालूम नहीं।

सेलफ़ोन की रिंग बज रही थी। लेकिन, कॉल कोई रिसीव नहीं कर रहा था। सहसा, वह हड़बड़ाता उठकर बेड पर बैठ गया। और दायें हाथ से साइड टेबल से सेलफ़ोन उठाया। और कॉल रिसीव की।

-प्रकाश सर… अभी तक सो रहें…! -उधर से हँसने की आवाज़ आयी। -सूरज निकल आया… दुनिया जाग गयी… आप भी जाग जाइये…।

वह कान से सेलफ़ोन लगाये खिड़की तरफ़ देखा। खिड़की पर लटकते परदे से सूरज की रौशनी कमरे में झाँक-सी रही थी। दूसरे पल, वह बेड पर बैठा इधर से बोला।

-थैंक यू नीलम… जगाने के लिये…।

प्रकाश जँम्हायी लेकर बेड से नीचे उतरा। वह खिड़की के पास आया। और बायें हाथ से खिड़की पर टँगा परदा हटाया। बाहर सड़क किनारे फुटपाथ पर लोग आ-जा रहे थे। सड़क पर तेज़ रफ्तार से गाड़ियाँ दौड़ रही थी। सहसा, उसकी नज़र फुटपाथ पर खड़ी एक दस-बारह साल की लड़की पर पड़ी। वह छोटे-छोटे हाथों में दो-तीन बुक्स लिये खड़ी थी। और आते-जाते लोगों को रोक-रोक कर दिखा रही थी। वह बुक्स बेंचती लड़की को देखते-देखते कहीं खो-सा गया।

-क्या हुआ… कहाँ चले गये यार…?

उधर से दुबारा आवाज़ आयी।

-कहीं नहीं, मैं फ्रैश होने जा रहा हूँ…।

प्रकाश फुटपाथ पर बुक्स बेंचती लड़की को देखता बोला।

-ओ.के. डियर…।

दूसरे पल, प्रकाश बेड के पास आया। और सेलफ़ोन पर बेड पर रखकर वॉश रूम में चला गया। थोड़ी देर बाद, वह जब तैयार होकर वॉश रूम से बाहर आया, तो सहसा चौंक गया। कमरे में नीलम कुर्सी पर बैठी टाइम्स ऑफ़ इंडिया के पन्ने उलट-पलट रही थी।

-नीलम तुम…!! -वह उसे अचरज से देखता हुआ। -तुम तो अभी थोड़ी देर पहले…।

-यस, तब सेलफ़ोन पे थी…। -वह न्यूज़ पेपर साइड टेबल पर रखती बोली। -और अब तुम्हारे सामने…।

-फिर, इतनी जल्दी यहाँ…!

-वो क्या है न… मैंने सोचा जितने टाइम यहाँ हो… उतनी देर तो तुम्हारे साथ रहूँ…। -वह कुर्सी से खड़ी हो गयी। -रात में तो चले जाओगे… फिर जाने कब आओ… और आओ भी, या न आओ… है न…!

वह कुछ नहीं बोला।

-एक बात तो है… न तुम बदले, न तुम्हारी आदतें…।

वह उसे देखकर मुस्कुरायी।

-मैं समझा नहीं कुछ…।

प्रकाश उसे सवालिया नज़रों से देखता बोला।

-तुम अभी भी देर तक सोते हो… देर रात तक जागना नहीं चाहिये…।

वह चुपचाप खड़ा उसे देख रहा था।

-ज़रा टाइम तो देखो…। -नीलम उसे देखती थोड़ा गुस्से से बोली। -कितने बज रहे…।

प्रकाश दीवार पर टँगी घड़ी को देखा।

दिन के ग्यारह बज रहे थे।

वह पल भर नीलम को देखता रहा। और फिर, खिड़की की तरफ़ नज़रें घुमा ली।

-अब यूँ ही खड़े रहोगे…! -उसके पीछे खड़ी नीलम उससे पूछी। -या चलोगे भी…!!

वह पीछे मुड़कर उसे गहरी नज़र से देखा। दूसरे पल, वह बेड के पास आया। और ओवर कोट हाथ में लेकर, उसे इशारा किया। और फिर, वे दोनों कमरे से बाहर आ गये।

वे दोनों होटल की बिल्डिंग से बाहर आये। प्रकाश मेन गेट के पास खड़ा हो गया। थोड़ी देर में, नीलम पार्किंग से कार ले आयी। वह कार का डोर ओपेन कर, उसकी बगल वाली सीट पर बैठ गया।

-कहाँ चलोगे घूमने…? -ड्राइविंग सीट पर बैठी नीलम उसे देखती बोली। -जल्दी बताओ…।

-तुम्हारी मर्ज़ी… जहाँ मन करे…। -प्रकाश मुस्कुराता बोला। -मैं तो तुम्हारी क़ैद में हूँ न… जितने टाइम यहाँ हूँ…।

-तुम्हारे घर चलते हैं, मम्मी-पापा से मिलने…। -वह उसे देखकर गुस्से से बोली। -कितने गन्दे हो… अभी तक नहीं बताया, वो सब कैसे हैं…?

-वो अब यहाँ नहीं रहते…। -वह गहरी साँस लेकर, उसे देखता हुआ। -मेरे साथ शिफ्ट हो गये…।

-कब…?

-दो साल पहले… जब थोड़ा स्टेब्लिश हुआ…। -वह उसे अपलक देखता बोला। -तो उन्हें अपने पास बुला लिया…।

नीलम अब चुप थी। और मन में सोच रही थी। -प्रकाश जब यहाँ से चला गया होगा… तो अंकल-आँटी दोनों अकेले पड़ गये होंगे… और एक मैं हूँ, उनसे मिलने भी नहीं गयी कभी… पर, जाती भी तो किस मुँह से। -उस पल, नीलम ख़ुद में बहुत गिल्ट फ़ील कर रही थी।

-क्या हुआ…? कहाँ खो गयी…?

प्रकाश उसका ख़ामोश चेहरा देखता उससे पूछा।

-कहीं नहीं…।

वह अपराधी की तरह धीरे से बोली। और फिर, कार आगे बढ़ा दी।

उस दिन, वे दोनों पहले लाजपत नगर मार्किट गये। नीलम एक शॉप से प्रकाश के पसन्द की ड्रेस खरीदी। और पैसे प्रकाश से दिलवाये। फिर वे सीधे रिंग रोड पर आ गये।

कार रिंग रोड पर तेज़ रफ्तार में दौड़ रही थी। और वे दोनों अपनी-अपनी सीट पर बैठे बार-बार एक-दूसरे को देख रहे थे। लेकिन, बोल कुछ नहीं रहे थे। नीलम सफ्दरजंग फ्लाई ओवर पर जाने की बजाय, कार लेफ्ट साइड ले आयी। और फिर, फ्लाई ओवर के नीचे से राइट की तरफ़ मुड़ गयी। सिग्लन ग्रीन था, तो वह कार रोकने से बच गयी। वरना लगभग दो मिनट रुके रहना पड़ता उसे। कार ड्राइव करती नीलम सरोजिनी नगर मार्किट के बगल वाली सड़क से होती, लक्ष्मीबाई नगर की ओर आ गयी। और कुछ देर में, कार एक घर के रुक गयी। दूसरे पल, वे दोनों कार से बाहर आ गये।

दोपहर हो गयी थी। आसमान में सूरज चमक रहा था। पर, दिसम्बर की सर्दी में धूप भी अच्छी लग रही थी। वे दोनों कुछ देर बाहर धूप में खड़े इधर-उधर देखते रहे। फिर, वे दोनों घर के दरवाजे़ तक आये। नीलम डोर बेल बजायी। थोड़ी देर में, शोभा ने अन्दर से दरवाज़ा खोला। सामने प्रकाश और नीलम को देखकर, शोभा पीछे की तरफ़ देखती ज़ोर से बोली।

-मनदीप, ये दोनों आ गये…।

और फिर, वह आगे बढ़कर नीलम से लिपट गयी।

मनदीप अन्दर से आया। और उनके पास खड़ा हो गया। वह उन्हें एक-दूसरे से गले लगा देखकर बोला।

-अब लिपटी रहोगी… या इन्हें अन्दर ले चलोगी…।

वे चारों ड्राइंग रूम में आये। और सोफ़े पर बैठ गये।

कुछ देर बाद, वे चारों लंच करने डाइनिंग टेबल के साथ रखी कुर्सियों पर बैठ गये। लंच करते-करते वे एक-दूसरे की लेग-पुलिंग करते रहे। बीते दिनों को याद करते रहे।

लंच करने के बाद, वे चारों आकर दुबारा से सोफ़े पर बैठ गये। और बातें करने लगे।

-शोभा, मैं नाराज़ हूँ तुमसे…।

प्रकाश उसे देखता बोला। सहसा, सारे चुप हो गये। और शोभा उसे सवालिया नज़रों से देखने लगी।

-कल शाम प्रोग्राम में क्यों नहीं आयी…?

-मम्मी की तबियत ख़राब थी…।

वह धीरे से बोली।

-ओह, पर मनदीप ने तो कुछ बताया नहीं मुझे आँटी के बारे में…। -प्रकाश उसे देखता बोला। दूसरे पल, वह मनदीप की ओर देखता हुआ। -यार तू बता देता, तो शाम में ही आ जाता…।

-एक तो सालों बाद आया… तुझे डिस्टर्ब नहीं करता चाहता था…।

-वेरी रांग मनदीप… बता देते… तो हम दोनों शाम में आ जाते…। -नीलम उसे देखकर गुस्सा होती बोली। -पर, अब तबियत कैसी है आँटी की?

-अब पहले से ठीक हैं वो…। -शोभा उसे देखती बोली। -मम्मी-पापा एम्स गये हैं दवा लेने…।

कुछ देर ड्राइंग रूम में ख़ामोशी छायी रही। सब अपनी-अपनी सोच में डूबे हुए थे। तभी प्रकाश ड्राइंग रूम की ख़ामोशी तोड़ता बोला।

-शोभा, लाइफ़ कैसी चल रही… सब ठीक?

-हाँ, मस्त चल रही है… एक-दो साल थोड़ी दिक्कत रही अर्जेस्ट करने में… लेकिन, अब सब ठीक हो गया… मम्मी-पापा काफी दिनों तक नाराज़ रहे हम दोनों से… पूरे टाइम बोलते रहते-मेरी वजह से सारे रिश्तेदार छूट गये… किस-किस को जवाब देते फिरें, कि ग़लती हम बड़ों की नहीं… अपने बेटे की है… रिश्तेदारों को क्या मालूम… मेरे बेटे पे जादू करके लड़की ने अपनी खूबसूरती के जाल में फाँस लिया…।

सहसा, तीनों एक साथ हँस पड़े।

-तुम सारों को मज़ा आ रहा… पर मुझ पे क्या बीतती रही… ये मैं ही जानती हूँ…।

-तुम ग़लत ले रही हो… सब मुझे मालूम है… मनदीप जब कभी कॉल करता, तो तुम्हें लेकर अक्सर बातें होती… क्या-क्या सुनती हो मम्मी से… सारी बातें शेयर करता…।

शोभा थोड़ा गम्भीर हो गयी।

-शुरू-शुरू में तो मम्मी ठीक से मुझसे बात तक नहीं करती थीं… वो रोज़ एक ही बात बोलतीं-अपनी बिरादरी में मनदीप की शादी होती, तो पैसा मिलता… स्टेट्स बढ़ता… पर, पैसा तो मिला नहीं… उल्टे बदनामी झेलो… लोगों के ताने सुनो… ख़ैर, जब मनदीप और मेरी जॉब हो गयी… जॉब के साथ घर भी सँम्भालने लगी… तो धीरे-धीरे उनका गुस्सा कम होता गया… फिर, जब से बेटा हुआ, तो सब ठीक हो गया… अब तो कहती नहीं थकतीं-मेरी बहू लाखों में एक… किसकी बहू है जो नौकरी करती हो… पूरा घर भी सिर पे ढोती हो…।

सहसा, प्रकाश साथ बैठी नीलम को देखा। वह बुत-सी बैठी कहीं खोयी थी।

-तुम कहाँ खो गयी…?

वह उसे देखता उससे पूछा।

-कहीं तो नहीं…।

नीलम हड़बड़ाती-सी बोली।

-प्रकाश अब कब आओगे… आया करो यार… पुराने दोस्तों में तुम्हीं हो… जो आज भी जुड़े हो… बाकी सब तो अपनी-अपनी दुनिया में बिज़ी हो गये… कभी कॉल तक नहीं करते…।

शोभा उसे देखती बोली।

-आना तो चाहता हूँ… पर अब आने की कोई वजह नहीं रह गयी…।

-क्यों…? मैं हूँ, मनदीप है, और ये नीलम…।

शोभा से नीलम का नाम सुनते, वह अन्दर तक सिहर गया। और फिर, वह सोफ़े से खड़ा हो गया। इस दौरान, मनदीप बगल बैठी शोभा को आँखों से कुछ इशारा किया, तो शोभा फिर कुछ नहीं बोली।

-जल्दी आऊँगा…।

-तुम पे भरोसा नहीं… तुम राइटर लोग मूडी ठहरे…।

सहसा, प्रकाश ज़ोरदार ठहाका लगाया। तो तीनों एक साथ हँसते हुए अपनी-अपनी जगह से उठ गये।

मनदीप और शोभा उन्हें पार्किंग तक सी-ऑफ करने आये।

वे दोनों पार्किंग में खड़े बातें कर रहे थे। जबकि नीलम कार के साथ खोयी-खोयी-सी ख़ामोश खड़ी इधर-उधर देख रही थी। तभी प्रकाश तिरछी नज़रों से उसे देखा, तो उसे महसूस हुआ-सुबह से नीलम बातें तो उससे कर रही, लेकिन, जो वह कहना चाह रही, चाहकर भी उससे कह नहीं पा रही। दूसरे पल, प्रकाश बायीं कलाई पर बँधी घड़ी देखी।

घड़ी दिन के साढ़े चार बजा रही थी।

प्रकाश इशारे से नीलम को चलने को बोला। तो वह कार का डोर ओपेन कर ड्राइविंग सीट पर बैठ गयी। और फिर, प्रकाश भी आकर उसकी बगल वाली सीट पर बैठ गया। उसके कार में बैठते, नीलम ने कार स्टार्ट की। और आगे बढ़ा दी।

कार सड़क पर दौड़ रही थी। और इंडिया गेट सर्किल पर आ गयी थी। वे दोनों चुपचाप अपनी-अपनी जगह चुप बैठे थे। प्रकाश कार की खिड़की से बाहर पीछे छूटती एक-एक चीज़ ग़ौर से देख रहा था। इतने में, कार संसद मार्ग की तरफ़ मुड़ गयी। और तेज़ रफ्तार से दौड़ती कार पालिका केन्द्र बस स्टॉप के आगे से होती, कनाट प्लेस आउटर सर्किल पर आ गयी। फिर, कार बाबा खड़क सिंह मार्ग पर आयी। और कॉफ़ी होम के आगे पार्किंग में आकर खड़ी हो गयी।

वे दोनों कार से बाहर आये। और फिर, पार्किंग से बाहर सड़क किनारे आकर खड़े हो गये।

सूरज पश्चिम में नीचे की तरफ़ चला गया था। पर, आसमान में अभी भी उजाला था। बाबा खड़क सिंह मार्ग से गाड़ियाँ धीरे-धीरे आ-जा रही थीं। और लोग शरीर पर गरम कपड़े लादे सड़क के दोनों ओर इधर-उधर चहल-क़दमी कर रहे थे।

नीलम दायें हाथ में लिये सेलफ़ोन की स्क्रीन ऑन करके देखा।

दिन के पाँच बज गये थे।

कुछ देर, वे दोनों गरम कपड़ों से लदे आते-जाते लोगों को देखते रहे। फिर, सड़क पार कर, दूसरी तरफ़ चले गये। और रीगल हॉल के बगल से होते, कनाट प्लेस आउटर सर्किल पर आ गये। इसके बाद, वे धीरे-धीरे चलते के. कामराज मार्ग पर आये। और खड़े हो गये। इस दौरान, वे दोनों कभी आगे-पीछे चल रहे होते, तो कभी साथ-साथ। वे दोनों पूरे रास्ते कमोबेश चुप रहे। वह जब उसकी तरफ़ देखकर कुछ पूछता, तो नीलम ‘हूँ-हाँ’ करके चुप हो जाती। और जब वह उससे कुछ बोलती, तो प्रकाश एकाध लाइन बोल कर चुप हो जाता।

अब वे दोनों आनन्द कैफ़े में टेबल के आमने-सामने कुर्सी पर चुपचाप बैठे थे। और अगल-बगल देख रहे थे। तभी वेटर उनकी टेबल के पास आकर खड़ा हो गया। दूसरे पल, प्रकाश पहले वेटर की ओर देखा। और फिर, ख़ामोश बैठी नीलम की ओर।

-क्या ऑर्डर करूँ…?

-कॉफ़ी…।

प्रकाश उसे एक नज़र देखा। तो वेटर वहाँ से चला गया।

वह अभी भी ख़ामोश बैठी, खिड़की के शीशे से बाहर देख रही थी।

बाहर अब उजाला नहीं था। अँधेरा आ गया था। और वह सबकुछ अपने आगोश में लेने को बेताब दिख रहा था। पर, स्ट्रीट लाइट्स बे-नूर खड़ी थी। कैफ़े आगे से पतली गली से इक्के-दुक्के आ-जा रहे थे। और दीवार से सटकर खड़े पेड़ पर बैठी चिड़ियाँ अपनी भाषा में गाती पल में उड़तीं। और पल में पेड़ की पत्तियों में आकर छिप जातीं।

कुर्सी पर चुप बैठा प्रकाश वेटर का इन्तज़ार कर रहा था। तभी उसकी नज़रें नीलम के ख़ामोश चेहरे पर आकर टिक गयीं। उस पल, वह किसी गहरी सोच में खोयी-खोयी-सी लग रही थी।

-तुम परेशान क्यों हो…? -वह उसका ख़ामोश चेहरा देखता बोला। -कुछ बात है…जो…।

-नथिंग यार… कुछ होता, तो तुम्हें कल शाम में बता देती…। -नीलम सहसा हड़बड़ाती-सी बोली। और फिर, कुछ याद करती-सी बोली। -तुम्हें याद है…! हम यहाँ हर वीक एंड पे आया करते थे…।

-हाँ, इसे कैसे भूल सकता हूँ…।

-यहीं बैठ के हमने कितनी मस्ती की… कितनी बातें की हमने आपस में…। -नीलम उसे देखती बोली। -ये जगह हमारे लाइफ़ का हिस्सा थी तब…। वह कुछ पल चुप रही। और जब वह कुछ नहीं बोला, तो फिर, वह उसे देखती बोली। – तुमहारे जाने के बाद… जब मन उदास होता, तो अकेले आ जाती…. और घंटों बैठी रहती… उतनी देर ऐसा महसूस होता… तुम मेरे साथ हो… और…।

प्रकाश अभी भी अपलक उसे देख रहा था। वह उसे कुछ बोलने वाली थी, कि तभी वेटर दो कप कॉफ़ी लिये आया। और आहिस्ता से टेबल पर रखकर चला गया।

अब वे दोनों ख़ामोशी से कॉफ़ी पी रहे थे। और अगल-बगल बैठे लोगों को देख रहे थे।

-प्रकाश, सॉरी यार…। -वह सिर झुकाये कुछ सोचती-सी बोली। -मैंने बड़ी ग़लती की लाइफ़ में…।

-सॉरी, पर क्यों…? -प्रकाश उसे एकटक देखता हुआ। -तुमने जब कुछ ग़लत किया ही नहीं…।

-नहीं प्रकाश, मैं ग़लत थी…। -वह कॉफ़ी का कप होंठों तक ले आयी। और दूसरे पल, टेबल पर रखती हुई। -मैं संजीव को समझ नहीं पायी… फिर तुम भी तो कुछ नहीं बोले उस टाइम…।

-नीलम, मैं क्या बोलता तुम्हें… तुम दोनों के पैरेंट्स भी रेडी थे…। -प्रकाश उसे देखता बोला। -संजीव को तुम जानती थी… मुझसे भी पहले से…।

-तुम बोलते, तो मैं उससे कभी नहीं जुड़ती…।

नीलम कॉफ़ी कप हाथ में लिये उसे देखने लगी। कुर्सी पर बैठा प्रकाश ख़ामोशी से कॉफ़ी पी रहा था।

-पहले तो नहीं… पर जैसे-जैसे संजीव के करीब गयी… उसे जानती-समझती चली गयी…। -नीलम सिर नीचे किये पल भर चुप रही। और फिर, उसे देखती बोली। -करीब दो साल सब ठीक रहा हम दोनों में…।

वह अब ख़ामोश थी। पल भर के लिये प्रकाश का चेहरा देखा। वह उसे अपलक देख रहा था।

-संजीव सुबह टाइम से ऑफ़िस जाता… और शाम में टाइम पे घर वापिस… वो मेरा, पापा-मम्मी सबका केयर  करता… भाई तो फॉरेन चले गये जॉब करने… तो हम यहाँ तीन जने रह गये… हम दोनों वीक एंड पे पापा-मम्मी से मिलने जाते… फिर, मेरा रिसर्च में एडमिशन हो गया… तो थोड़ा बिज़ी हो गयी… पर हमारे रिश्ते में कोई फ़र्क़ नहीं आया…।

नीलम कुछ देर चुप रही। प्रकाश कॉफ़ी ख़त्म कर, ख़ामोश बैठा उसे देख रहा था। दूसरे पल, वह उसे देखती बोली।

-सबकुछ ठीक चल रहा था हम दोनों में… एक शाम संजीव मुझसे बोला-नेकस्ट मंथ हम गुड़गाँव शिफ्ट हो रहें… मैंने जब इसकी वजह पूछी, तो वह मुझे बताया-यार, यहाँ दूर से पड़ती है ऑफ़िस… आने-जाने में दो-ढाई घंटे लग जाते हैं… उधर रहेंगे… तो टाइम बचेगा… इस पे मैं उससे बोली… वहाँ तो रेंट पे रहना पड़ेगा… तो संजीव बताया-रेंट मुझे ऑफ़िस दे देगी… फिर, मैं उससे बहस नहीं की… और फिर, कुछ दिन बाद हम दोनों गुड़गाँव शिफ्ट हो गये…।

नीलम पल भर इधर-उधर देखती रही। और फिर, गहरी साँस लेकर बोली।

-लास्ट डे आफ ईयर था उस दिन… मैं पूरे दिन घर पे रही… कहीं बाहर नहीं गयी… वो सुबह बोल के गया- मैं दोपहर में आ जाऊँगा ऑफ़िस से हाफ डे ले के… मम्मी-पापा से मिलने चलेंगे… लेकिन, दोपहर छोड़ो, वह देर शाम तक नहीं आया… तो मैं परेशान हो गयी… उसे कुछ हो तो नहीं गया… कहीं किसी प्रॉब्लम में न फँस गया हो… मैंने तुरन्त उसकी ऑफ़िस में कॉल की, तो मालती से पता चला, वो बिज़ी है इंपोर्टेंट मीटिंग में…।

दूसरे पल, बगल बैठे कपल को एक नज़र देखा। प्रकाश चुप बैठा उसे अपलक देख रहा था।

-मैं तुम्हें बताना भूल गयी… मालती की जॉब संजीव ने अपनी कम्पनी में लगवायी थी… तुम तो यहाँ से चले गये… तो तुम्हें पता नहीं इस बारे में… ख़ैर, मुझे कोई एतराज़ नहीं हुआ… आख़िर, उसे जॉब की ज़रूरत थी… ये बात मुझे संजीव ने ख़ुद बतायी, उसकी ज्वाइनिंग वाले दिन…।

नीलम अगल-बगल बैठे लोगों पर सरसरी नज़रें दौड़ायी। और फिर, प्रकाश का ख़ामोश चेहरा देखती बोली।

-तो मैं बता रही थी तुम्हें… उस शाम संजीव मीटिंग की वजह से जल्दी नहीं आया… तो देर शाम कॉल करके मम्मी-पापा को बोल दिया, हम लोग नहीं आ पायेंगे… वो किसी ज़रूरी मीटिंग के चलते अभी तक नहीं आये… ख़ैर, उस शाम उसका इन्तज़ार करते-करते रात हो गयी… तो मैं ड्राइंग हॉल में आकर सो गयी… और मेरी आँख खुली तो डोर बेल की आवाज़ से… मैंने फ्लैट का मेन गेट खोला… संजीव फ्लैट के अन्दर आया… और बोला-सॉरी यार, लेट हो गया… मीटिंग में रहना ज़रूरी था मेरा… फिर, बेड रूम में चला गया… उस समय, मैं कुछ नहीं बोली उससे… क्योंकि ऑफ़िस मीटिंग की वजह से वो पहले भी लेट नाइट घर आता रहा… ये बात तो आयी-गयी हो गयी… हमारे बीच कोई बहसबाज़ी भी नहीं हुई इसे लेकर…।

प्रकाश पीछे की तरफ़ देखता इशारे से वेटर को बुलाया। तो वह उसके पास आया। दूसरे पल, वह ओवर कोट की जेब से रूपये निकालकर, कॉफ़ी का बिल चुकाया। और फिर, वह नीलम का चेहरा देखता बोला।

-अब चलें यहाँ से…?

नीलम उसे देखती उससे पूछी। दूसरे पल, प्रकाश कुर्सी से खड़ा हो गया। उसे खड़ा देख, नीलम भी कुर्सी से उठ गयी।

वे दोनों के. कामराज मार्ग पर ख़ामोश खड़े इधर-उधर देख रहे थे।

उस समय, रात हो गयी थी। स्ट्रीट लाइट्स की सफ़ेद रौशनी हर तरफ़ फैली थी। सड़क पर तेज़ रफ्तार से गाड़ियाँ दौड़ रही थीं। बदन पर गरम कपड़े लादे लोग, फुटपाथ पर तेज़ क़दमों से आ-जा रहे थे।

ठंड उस दिन भी अपने शबाब पर थी। पर, आसमान बिल्कुल साफ़ था। आसमान में अकेले या झुंड में चकमते तारे आपस में खेलते-से लग रहे थे। और बड़ा-सा चाँद उनकी निगरानी करता-सा।

अब वे दोनों ख़ामोशी से धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे। प्रकाश सड़क के दोनों तरफ़ खड़ी बिल्डिंग्स, फुटपाथ पर आते-जाते लोगों को ग़ौर से देखता धीमे क़दमों से चल रहा था। और सोच रहा था, शायद नीलम की सुलझी-उलझी ज़िन्दगी के बारे में।

तभी प्रकाश के बगल चलती नीलम उसका चेहरा देखती बोली।

-फिर कुछ दिनों के बाद, संजीव एक वीक के लिये ऑफ़िशयल टूर पे चला गया… उन्हीं दिनों मुझे रिसर्च फ़ाइनल करनी थी… तो अकेली होने से पापा के घर चली गयी… लेकिन, वो तीन दिन में ही वापिस आ गया… पर बन्दे ने इसकी मुझे भनक नहीं लगने दी… जब भी उसे कॉल करती, तो उधर से वो बोलता-यार, मैं अभी बाहर हूँ… इस पे मैं उसे ‘टेक केयर’ बोलकर कॉल डिसकनेक्ट कर देती… ख़ैर, मैं जब पापा के घर से वापिस गुड़गाँव आयी… तो शाम में मनदीप और शोभा मिलने आये… बातों-बातों में शोभा ने मुझे बताया-संजीव का मालती से अफ़ेयर चल रहा… मनदीप मुझे कल रात में बताया… उसकी ये बात सुन के, सहसा मैं तो चौंक गयी… दूसरे पल, क्लियर करने के लिये मैं उससे दुबारा पूछी, तो वह बोली-यार मैं तेरी बेस्ट फैंड हूँ… तुझसे झूठ क्यों बोलूँगी… फिर भी, मुझे यक़ीन नहीं हुआ उस पे… पर, शक तो हो ही गया था… तो अगले दिन संजीव के ऑफ़िस चली गयी बिना उसे बताये… पहले भी मैं दो-तीन बार उसकी ऑफ़िस जा चुकी थी ऑफ़िशयल ऑकेज़न पे… ख़ैर, ऑफ़िस में जब उसके जूनियर से बात की… तो मेरा शक यक़ीन में बदल गया… फिर, उसी दिन घर आ के उसका लैपी ऑन करके मेल्स चेक किये… फिर, उसका एफ़.बी. मैसेंजर… मैं तो हैरान रह गयी… साल भर से संजीव और मालती में चैटिंग चल रही थी… चैटिंग में दोनों ने ऐसी-ऐसी बातें लिखी थी, कि मैं बता नहीं सकती तुम्हें… और मालती को क्या बोलूँ, वो मेरी दोस्त हो के भी… शॉर्टकट में कहूँ तो संजीव को ले के शोभा की बात सही निकली…।

नीलम का गला भर आया। तो वह चुप हो गयी।

अब वे दोनों रीगल के पास खड़े, इधर-उधर देख रहे थे। स्ट्रीट लाइट्स की रौशनी चारों तरफ़ उजाला किये थी। कनाट प्लेस आउटर सर्किल पर टै्रफ़िक होने की वजह से गाड़ियाँ शोर करती आगे की तरफ़ धीरे-धीरे रेंग रही थी। लेकिन, पैदल आने-जाने वाले न के बराबर दिख रहे थे। ठंड अब पहले से बढ़ गयी थी। वे दोनों थोड़ी सिहरन महसूस कर रहे थे। और ख़ामोशी से खड़े एक-दूसरे को देख रहे थे।

प्रकाश को ख़ामोश देख, नीलम उसे देखकर प़फीकी हँसी हँसती बोली।

-उसके बारे में ये सब जानने पर भी कुछ दिनों तक एवाइड करती रही… पर उन दोनों के बीच ये सिलसिला नहीं रुका… तो एक शाम वह जब घर आया… तो मैंने सीधे-सीधे मालती से उसके अफ़ेयर की बात की… तो वह चौंक गया… वह कुछ बोल नहीं रहा था… केवल चुपचाप खड़ा मुझे देख रहा था… वह जब कुछ नहीं बोला… तो मैं उससे बोली-संजीव, मैं तुम्हें माफ़ करने… सबकुछ भूलने को तैयार हूँ… तुम अगर मालती से सारा रिश्ता ख़त्म कर दो तो… उस समय, तो वो सॉरी बोल के मेरी सारी बातें मान ली… लेकिन, उसने मालती से अफ़ेयर ख़त्म नहीं किया… तो उससे डिवोर्स लेने सिवाय और कोई रास्ता नहीं रह गया… फिर, मम्मी-पापा से बात की, तो वे भी तैयार हो गये…।

नीलम बोलती-बोलती चुप हो गयी।

अब वे दोनों कॉफ़ी होम के पास खड़े थे। दूसरे पल, प्रकाश ख़ामोश खड़ी नीलम को देखा। उसके चेहरे पर आँसुओं की बूँदें छलक आयी थीं। लेकिन, वह उससे कुछ बोल नहीं पा रहा था। केवल ख़ामोशी से उसे देख रहा था। तभी नीलम उसका ख़ामोश चेहरा देखती बोली।

-प्रकाश, एक बात बोलूँ…?

प्रकाश ‘हाँ’ में सिर हिलाया।

-संजीव से डिवोर्स लेने के कुछ दिनों बाद… सुबह ड्राइंग हाल में सोफ़े पे बैठे मैं और पापा चाय पी रहे थे… तभी पापा बातों-बातों में बोले-बेटा… प्रकाश को छोड़ना… तुम्हारी ग़लती थी… फिर, वो तुम्हारे बारे में पूछे, तो कुछ नहीं बोली…। -नीलम चेहरे पर छलक आये आँसुओं को पोंछती फ़ीकी हँसती बोली। -तब मुझे कुछ नहीं मालूम था-तुम क्या कर रहे… किस जगह रह रहे… अगर पता होता, तो उसी समय तुम्हारे पास आ जाती हमेशा-हमेशा के लिये…। -नीलम कुछ देर चुप रही। फिर उसे देखती बोली। -तुम्हारे बारे मैंने मनदीप से पूछा, तो उसे भी ठीक-ठीक कुछ मालूम नहीं था… फिर लास्ट ईयर तुम्हारी बुक रिलीज़ का प्रोग्राम जब टेलीविज़न पे देखा… तो जान पायी, कि तुम बड़े राइटर बन गये…।

प्रकाश ख़ामोशी से उसे देख रहा था।

-तुम्हारी फ्लाइट कब की है…?

नीलम उसे देखती भरे गले से बोली।

-रात एक पैंतालीस की…।

-फिर कब आओगे…?

वह रुआँसी होती बोली। और चुप हो गयी।

प्रकाश कुछ पल उसे देखता रहा। फिर, उसे अपलक देखता अपना दायाँ हाथ उसकी तरफ़ बढ़ाया, तो नीलम अचरज से अपनी तरफ़ बढ़ा उसका हाथ, उसका ख़ामोश ग़मगीन चेहरा देखने लगी। वे दोनों बिल्कुल ख़ामोश थे। कुछ बोल नहीं रहे थे। वे भूल-से गये थे, कि वे कहाँ, किस जगह खड़े। उन्हें ठंड का भी एहसास नहीं हो रहा था। जबकि दूसरे लोग ठंड में सड़क से सिकुड़े-सिकुड़े से भागे जा रहे थे। तभी सड़क से तेज़ रफ्तार में एक गाड़ी शोर करती गुज़री। सहसा, वे दोनों होश में आ गये। मानो वे किसी दूसरी दुनिया में चले गये थे कुछ पल के लिये। दूसरे पल, नीलम गहरी नज़र से बिल्कुल करीब खड़े प्रकाश का चेहरा देखती, अपना दायाँ हाथ उसके हाथ के पास ले गयी।

अब उनके हाथ एक-दूसरे के हाथों को छू रहे थे। और वे दोनों एक-दूसरे को अपलक देख रहे थे।

Bureau Report, YT News

YT News is a youth based infotainment media organization dedicated to the real news and real issues. Our aim is to “To Inform, To Educate & To Entertain” general public on various sectors Like Politics, Government Policies, Education, Career, Job etc. We are on the news, analysis, opinion and knowledge venture. We present various video based programs & podcast on You Tube. Please like, share and subscribe our channel. Contact Us: D2, Asola, Fatehpur Beri Chhatarpur Road New Delhi-110074 Mail ID: Please mail your valuable feedback on youngtarangofficial@gmail.com

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button