अरुणेेश कुमार
जिस दौर में कॉमेडी के नाम पर फूहड़ता होती हो, द्विअर्थी संवाद होते हों, स्टैंड अप कॉमेडी के नाम पर कुछ भी चलता हो, उस दौर में राजू श्रीवास्तव के पुराने कॉमेडी के वीडियोज देखिए तो पता चलेगा कि कॉमेडी के असली मायने क्या होते हैं.
संघर्ष से लेकर सफलता तक राजू श्रीवास्तव देसी बने रहे, आम लोगों के दुख दर्द को समझते रहे तभी आम लोगों से सबसे ज्यादा कनेक्ट होते रहे.
आइए जानते हैं कि राजू श्रीवास्तव का असली नाम क्या था, गजोधर नाम काल्पनिक है या वास्तविक, अमिताभ बच्चन का उनके जीवन पर क्या महत्व रहा? आइए जानते हैं.
पिता से मिली हास्य की विरासत
राजू श्रीवास्तव जन्म से ही प्रतिभाशाली थे, हास्य की विरासत उनके अपने पिता से मिली थी जो अपने समय के प्रसिद्ध हास्य कवि थे. उनके पिता स्टेज पर परफॉर्म किया करते थे.
बचपन से ही स्कूल में, पास पड़ोस में वे अपने पिता की कविता की लाइनों को सुनाया करते थे। वे दूसरों की नकल भी उतारा करते थे.
बचपन में निकालते थे इंदिरा गांधी की आवाज़
राजू के पिताजी को रेडियो सुनने का शौक था वहीं से राजू भी रेडियो में गाने और समाचार सुना करते थे.
जब रेडियो पर वह इंदिरा गांधी की आवाज सुनते तो उनकी नकल करते। इसलिए जब घर में कोई आता तो उनके पिता कहते ‘बेटा बताओ जरा इंदिरा जी कैसे बोलती हैं’।
तब वे इंदिरा गांधी की आवाज निकालते, बाद में इसी मिमिक्री के बलबूते वे कॉमेडी के किंग बने.
राजू के असली नाम और गजोधर नाम की पीछे की कहानी
कानपुर की गलियों से देश दुनिया में नाम कमाने वाले राजू श्रीवास्तव का असली नाम बहुत कम लोगों को पता होगा. उनका असली नाम सत्यप्रकाश श्रीवास्तव था।
उनको गजोधर भैया के किरदार से खूब पहचान मिली। लोगों को लगता है कि गजोधर भैया कोई काल्पनिक किरदार होगा जबकि ऐसा नहीं हैं, हकीकत में गजोधर भैया राजू के ननिहाल बेहटा सशान में थे।
दरअसल वहां पर एक बुजुर्ग गजोधर रहते थे जो बहुत रुक-रुक कर बोला करते थे, उन्हीं का किरदार राजू ने अपनाया जिसे लोगों ने खूब पसंद किया
अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘दीवार’ देखकर बनना चाहते थे हीरो
राजू श्रीवास्तव के जीवन में और करियर में अमिताभ बच्चन का बहुत बड़ा प्रभाव रहा है. दीवार फिल्म देखकर उन्होंने फैसला किया कि वे हीरो बनेंगे.
उन्होंने अपने करियर की शुरुआत ही बिग-बी की मिमिक्री से की थी। एक बार राजू श्रीवास्तव ने खुद एक इंटरव्यु में बताया था कि अमिताभ बच्चन ने खुद उनकी मिमिक्री की तारीफ की थी.
संघर्ष से मिली सफलता
कानुपर की गलियों से निकलकर राजू श्रीवास्तव मायानगरी मुंबई 1990 के आसपास पहुंचे थे लेकिन उनको बहुत संघर्ष करना पड़ा. मुबंई में ऑटो तक चलाना पड़ा, फिल्मों में छोटे मोटे रोल मिले भी मिले पर उन्हें असली पहचान ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज से मिली थी.
फिर जब सफलता मिली तो उन्होंने फिल्मों, टीवी, स्टेज शोज़ सब जगह काम किया. उनकी लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें बिग बॉस 3 में भाग लेने का ऑफर भी मिला था.
किन फिल्मों में किया काम?
राजू श्रीवास्तव ने कई फिल्मों में अपने टैलेंट का जलवा बिखेरा। उन्होंने तेजाब, मैंन प्यार किया, बाजीगर, आमदनी अठन्नी खर्चा रूपइया, वाह तेरा क्या कहना, मैं प्रेम की दीवानी हुँ, बिग ब्रदर, बॉम्बे टू गोवा जैसे कई फिल्में कीं ।
कानपुर में अपने घर को 10 गुना कीमत पर खरीदा
राजू श्रीवास्तव की फैमिली बैकग्राउंड बहुत साधारण थी, कानपुर में उनका आम लोगों की तरह पालन पोषण हुआ.
एक इंटरव्यु में उन्होंने बताया कि दहेज की वजह से उन्होंने अपनी बहन की शादी टूटते हुए देखा, घूस न दे पाने की वजह से अपने भाई की नौकरी छूटते हुए देखी.
एक दौर ऐसा भी आया जब उनके पिता को अपना पुश्तैनी मकान 3 लाख रु. में बेचकर किराए में रहना पड़ा फिर जब वे सफल हुए, पैसे कमाए तो उन्होंने अपना वही घर 10 गुना कीमत यानि 30 लाख में खरीदा और उस पर परिवार सहित रहने लगे.
पिता की तरह बच्चे भी है टैलेंटेड
राजू श्रीवास्तव के बच्चे भी उन्हीं की तरह टैलेंटेड हैं. उनकी बेटी अंतरा डायरेक्टर हैं जिसने ‘फुल्लू’, ‘पलटन’, ‘द जॉब’, ‘पटाखा’ और ‘स्पीड डायल’ जैसी फिल्में की हैं। वहीं उनके बेटे जाने माने सितार वादक हैं। उन्होंने कई शोज अपने पिता के साथ किए हैं.
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