‘रंगबाज’ का रिव्यु: ‘सिवान के साहेब’ का जरुरत से ज्यादा महिमा-मंडन करती है ‘रंगबाज’
नंदराम प्रजापति
बड़े पर्दे (सिनेमा हाल) और छोटे पर्दे (टीवी) के बीच एक तीसरा पर्दा (स्मार्टफोन/लैपटॉप) आ गया है जिसको ध्यान में रखते हुए बड़ी बड़ी वेब सीरीज बन रही हैं. युवाओं को ध्यान में रखते हुए बड़े-बड़े प्रोड्युसर्स बड़ी बड़ी वेबसीरीज बना रहे हैं.
जब एक वेबसीरीज लोगों को पसंद आती है तो फिर उसके कई नए सीज़न भी बनाए जाते हैं पर कहानी लगभग पुरानी रहती है. एक ऐसी है वेबसीरीज है ‘रंगबाज’ है जिसका तीसरा सीजन आ गया है लेकिन इसका नाम रंगबाज़ 3 नहीं रखा गया है. इसका नाम रखा गया है रंगबाज: डर की राजनीति. कैसी है इसकी स्टोरी और कैसी है एक्टिंग, आइए जानते हैं.
रंगबाज 1 और रंगबाज 2 की तरह इसमें भी एक बिहार के बाहुबली नेता की कहानी दिखाई गई है. भले ही इस वेबसीरीज के निर्माता कहें कि इसकी कहानी बिहार के गैंगस्टर और नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन से प्रेरित है, प्रभावित नहीं लेकिन वेबसीरीज देेखने के बाद यही लगता है कि ये पूरी तरह मोहम्मद शहाबुद्दीन पर ही आधारित है.
कैसी है कहानी?
एक ऐसा कुख्यात अपराधी, जो विधायक-सांसद रह चुका है, जिस पर तमाम मुकदमे चले हों, जेल जा चुका हो, जो अपने विरोधियों को सरेआम मौत के घाट उतार देता था.
जो लोग उससे डरते नहीं उनकी हत्या करवा देता था, तेजाब फिंकवा देता था, घर में AK47 राइफलों का पूरा जखीरा रखता था.
ऐसे बाहुबली, अपराधी और गैंगस्टर नेता का ज़रूरत से ज्यादा गुणगान या यूं कहें कि महिमा मंडन किया गया है जिसकी ज़रूरत नहीं थी. शहाबुद्दीन कोई हीरो तो थे नहीं कि उनका इतना महिमा मंडन किया जाए।
कौन थे मुहम्मद शहाबुद्दीन ?
मुहम्मद शहाबुद्दीन बिहार की राजनीति में लंबे समय तक एक चर्चित नाम रहे हैं, खासकर जब तक लालू यादव बिहार की राजनीति का पर्याय रहे, तब तक शहाबुद्दीन का सीवान में सिक्का चलता रहा, सीवान के साहेब शहाबुद्दीन ही रहे।
इसमें शहाबुद्दीन की भूमिका विनीत कुमार सिंह ने निभाई है। वेब सीरीज देखने के बाद तथ्यों की जांच पड़ताल के लिए मुहम्मद शहाबुद्दीन के जीवन पर रिसर्च किया तो पता चला कुछ चीजें सच हैं तो कुछ ख्याली पुलाव।
जो ख्याली पुलाव हैं, उनमें पहला यह कि शहाबुद्दीन की 90 के दशक में नीतीश कुमार को लालू यादव द्वारा पटखनी देने और बिहार का मुख्यमंत्री बनाने में मुख्य भूमिका रही, दूसरा विधानसभा और लोकसभा के चुनावों में शहाबुद्दीन द्वारा प्रत्याशियों को टिकट देने का फैसला करना।
जहां तक सभी को पता है लालू यादव कभी इतने कमजोर तो नहीं रहे कि शहाबुद्दीन उनको अपनी उंगली पर नचाते। इसमें कोई शक नहीं लालू यादव का संरक्षण शहाबुद्दीन पर रहा है और शहाबुद्दीन ने बिहार सरकार की मशीनरी का जमकर फायदा उठाया है।
ऐसे और भी न जाने कितने वेबसीरीज में मौके आते हैं, जब शहाबुद्दीन का जरूरत से ज्यादा महिमा मंडन दिखता है। जिन घटनाओं में सच्चाई है, वह है जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर प्रसाद चंदू की हत्या.
कम्युनिस्ट पार्टियों के नेताओं का अपहरण उनकी हत्याएं, अपने घर AK 47 राइफलों का जखीरा रखना, सीवान में समानांतर सरकार चलाना और पूरी पुलिस फोर्स की शहाबुद्दीन और उसके साथियों के साथ मुठभेड़।
कहानियों में पूरी ईमानदारी के साथ तथ्यों को रखा जाए और जरूरत से ज्यादा महिमा मंडन न किया जाए, बाहुबली राजनेताओं का तो बिल्कुल नहीं इससे समाज में ग़लत संदेश जाता है.
कैसी है एक्टिंग?
जहां तक बात अभिनय की है तो विनीत कुमार सिंह हारुन अली शाह बेग की भूमिका में जमे हैं, जो शहाबुद्दीन पर ही आधारित है। विनीत ने अपनी आवाज पर भी बहुत काम किया है, कभी कभी तो ऐसा लगता है कि आशुतोष राणा से वाॅयस ओवर कराया गया है।
नीतीश कुमार और लालू यादव के किरदार निभा रहे राजेश तेलंग और विजय मौर्य पर लगता है निर्देशक सचिन पाठक ने ज्यादा मेहनत नहीं की है।