अमेरिका, ब्रिटेन, चीन के बाद..भारत में भी बढ़ा ‘डिजिटल डिटॉक्स’ का चलन, जानिए इससे कैसे बदलता है आपका रहन-सहन?
ऐश्वर्या जौहरी
आज हर उम्र के लोग चाहें बच्चे हों ,किशोर हों,युवा हों या फिर बुजुर्ग अपना अधिकांश समय सोशल मीडिया के उपयोग में व्यतीत करते हैं । सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक मोबाइल उनके हाथ में रहता है.
क्या होता है ‘डिजिटल डिटॉक्स’ ?
अमेरिका, ब्रिटेन, चीन समेत डिजिटल डिटॉक्स का ट्रेंड धीरे-धीरे भारत में बढ़ रहा है। इसकी सुविधा विशेष प्रकार के कई कैम्प, होटल, रिसॉर्ट आदि दे रहे हैं।
जब कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से स्मार्टफोन, कम्प्यूटर, लैपटॉप और सोशल मीडिया जैसे डिजिटल चीजों से दूरी बना लेता है, या इन सब चीजों से परहेज करता है तो उसे डिजिटल डिटॉक्स कहते हैं।
आजकल लोग डिजिटल डिवाइसेस पर ज़रूरत से ज्यादा समय व्यतीत करते हैं। इससे उनको इतनी लत लग जाती है कि वे मोबाइल के बिना नहीं रह सकते, इसी लत को छुड़वाने के लिए ‘डिजिटल डिटॉक्स’ किया जाता है.
क्यों है ‘डिजिटल डिटॉक्स’ की ज़रूरत?
पिछले कुछ समय से लोगों में खासतौर पर युवाओं में मोबाइल एडिक्शन बहुत तेजी से बढ़ा है. इसके दुष्परिणामों से बचने के लिए डिजिटल डिटॉक्स एक बिल्कुल नए कॉन्सेप्ट के रूप में उभर कर आया है ।
मानसिक स्वास्थ्य, अनिद्रा, डिप्रेशन, तनाव से राहत और सकारात्मक सोच के लिए डिजिटल डिटॉक्स बहुत जरूरी है। डिजिटल डिटॉक्स की वजह से बॉडी क्लॉक के दुरूस्त होने की संभावना बड़ जाती है। इसको अपनाकर लोग अपने में तरोताजा महसूस करते हैं.
ब्रिटेन की मीडिया एंड टेलीकॉम रेग्युलेटर की रिपोर्ट के अनुसार, 34 प्रतिशत इंटरनेट यूजर डिजिटल डिटॉक्स कर चुके हैं।
एक नज़र, आंकड़ों पर
आज लगभग 3.8 बिलियन लोग सोशल मीडिया प्लेटफार्म का उपयोग करते हैं और औसतन लोग इस पर हर दिन 144 मिनट तक खर्च करते हैं ।WHO के अनुमान के मुताबिक 2022 में औसत वैश्विक जीवनकाल 72 वर्ष है।
ऐसे में अगर हम अपना ज्यादातर समय तकनीक और गैजेट्स पर खर्च करना जारी रखते हैं तो औसत जीवनकाल में नकारात्मक ढलान लेने की संभावना बढ़ जाती है।
ऐसे में सवाल उठता है कि आप अपने डिवाइस का उपयोग कर रहे हैं या आपका डिवाइस आपका उपयोग कर रहा है. डिवाइस आपका यूज न करे इसके लिए डिजिटल डिटॉक्स जरूरी है.
मोबाइल एडिक्शन से होता है डिप्रेशन?
आजकल लगभग सभी को मोबाइल एडिक्शन है। युवाओं और टीन एजर्स में मोबाइल फोन एक तरह का ऐसा नशा बन गया है जिसके बिना रहा नहीं जाता।
इस नशे का आलम ये है कि रात को सोते समय भी मोबाइल देखना है, सुबह आँख खुलते ही सबसे पहले फोन पर नोटिफिकेशन देखना होता है। दिन भर के हर क्षण का स्टेटस या स्टोरी डालना एक फैशन सा बन गया है।
स्मार्टफोन जहाँ आज की जीवनशैली का एक अहम हिस्सा बन चुका है वहीं इसका ज़रूरत से ज्यादा इस्तेमाल खतरनाक है ।
कहते हैं न कि हर चीज की अति बुरी ही होती है तो स्मार्टफोन की अधिकता ने भी आज कई तरह की गंभीर बीमारियों को दावत दे दी है।
मोबाइल की लत अनिद्रा की समस्या पैदा करता है । नींद पूरी न होने से दिमाग अशान्त रहता है फिर इंसान चिड़चिड़ा हो जाता है।
मोबाइल एडिक्शन से मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है।इस एडिक्शन से डिप्रेशन भी हो जाता है।
डिजिटल एडिक्शन से कैसे बचें
सबसे पहले तो जरूरत भर के लिए ही मोबाइल और सोशल मीडिया का प्रयोग करें. बेवजह मोबाइल के साथ बिजी नहीं रहें.
महीने भर में एक बार डिजिटल डिटॉक्स करें। अपने परिवार और दोस्तों के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंट करें.
मोबाइल पर ध्यान देने के बजाय, अपनी पसंद की कोई पुस्तक पढ़ें या अपनी हॉबी से संबंधित कोई कार्य करें.
सैल्फी ,हैशटैग और फॉलोअर्स की दुनिया में डिजिटल डिटॉक्स को अपना कर आप भी अपनी रहन-सहन में बदलाव ला सकते हैं और डिप्रेशन फ्री लाइफ जी सकते हैं।