World Day of Social Justice: देश में नहीं मिल रहा सबको ‘सामाजिक न्याय’..जानिए क्या है इसका उपाय..?
विश्व सामाजिक न्याय दिवस हर साल 20 फरवरी को मनाया जाता है। इसका मकसद है सभी के लिए सामाजिक न्याय सुनिश्चित हो लेकिन क्या हमार देश में गरीबों को सामाजिक न्याय मिल रहा है, आइए जानते हैं
दिवस स्पेशल डेस्क. नई दिल्ली, 20 फरवरी
सामाजिक न्याय का अर्थ है कि समाज में रहने वाले सभी लोगों पारदर्शी तरीके समय से न्याय मिले. 26 नवंबर 2007 में अपने 62वें सत्र में, संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने 20 फरवरी को विश्व सामाजिक न्याय दिवस के रूप में मनाए जाने का ऐलान किया था.
क्या है विश्व सामाजिक न्याय दिवस की थीम?
विश्व सामाजिक न्याय दिवस हर साल किसी एक खास थीम पर मनाया जाता है. इसके माध्यम से इस दिवस के महत्व को रेखांकित किया जाता है. इस थीम के जरिए लोगों को जागरूक करने की कोशिश की जाती है।
इस साल विश्व सामाजिक न्याय दिवस की थीम ‘अचीविंग सोशल जस्टिस थ्रू फॉर्मल एम्प्लॉयमेंट’ है जिसका मतलब है औपचारिक रोजगार के माध्यम से सामाजिक न्याय प्राप्त करना।
सामाजिक न्याय के सिद्धांत
सामाजिक न्याय चार सिद्धांतों- पहुंच (access) , इक्विटी (Equity) , भागीदारी (Participation) और मानवाधिकार (Human Rights) पर टिका है। ये चार सिद्धांत चार खंभे हैं। इनमें से अगर एक भी खंभा कमजोर है तो सही अर्थों में वह सामाजिक न्याय नहीं माना जा सकता।
सबके लिए कैसे सुलभ हो सामाजिक न्याय?
देश की 140 करोड़ लोगों में से गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले 27 करोड़ लोग सबसे अधिक सामाजिक न्याय से वंचित हैं तो पहली प्राथमिकता इन लोगों को सामाजिक न्याय सुनिश्चित कराने की होनी चाहिए.
वैसे तो भारत सरकार ने कई ऐसे आयोगों का गठन किया है जो कि सामाजिक न्याय के हितों के लिए कार्य करते हैं। भारत के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा भी कई योजनाएं चलाई जाती हैं लेकिन जमीनी स्तर पर इन योजनाओं का कितना फायदा मिलता है, ये अपने आप में बड़ा सवाल है.
देश में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से लकेर राष्ट्रीय महिला एवं बाल विकास आयोग हैं जो समाज से भेदभाव, बेरोजगारी और महिलाओं-बच्चों के लिए न्यायिक सुरक्षा देने का कार्य कर रहे हैं लेकिन ये सब देश की विशाल जनसंख्या के लिए बहुत कम है. इनमें से और अधिक तेजी लाए जाने की जरूरत हैं.
सरकारी स्कूलों में गरीब छात्रों के लिए ड्रेस, बुक्स और फीस का लाभ मिलना चाहिए वहीं प्राइवेट स्कूलों को भी सामाजिक जिम्मेदारी के तहत गरीब और जरूरतमंद छात्रों को ये सुविधा दी जानी चाहिए.
इसके अलावा अक्सर ये देखा जाता है कि हमारे देश में लोगों को न्याय मिलने में वर्षों लग जाते हैं. कई बार तो पूरी जिंदगी कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने में निकल जाते हैं इसलिए देश में छोटी अदालतों से लेकर बड़ी अदालतों तक समय बद्ध तरीके से न्याय उपलब्ध कराने का सिस्टम बनाना चाहिए.